पटना। जिस प्रकार एक म्यान में दो तलवार नहीं रह सकता उसी प्रकार एक गठबंधन में दो दलित नेता नहीं रह सकते हैं।
यह इस बात से साबित हो गया है कि एनडीए में एक दलित नेता पहले से विराजमान थे दूसरे हरिजन नेता के आते हीं पहले हरिजन नेता ऐसे बिदके हैं जैसे लाल कपड़ा देखकर सांड़ बिदकता है।
काफी दौर धूप और भाषणबाजी के बाद पूर्व मुख्यमंत्री और हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) के संयोजक जीतन राम मांझी भाजपा नेताओं के दिल्ली दरबार में सिरदा देकर एनडीए में शामिल हो गए।
एनडीए में शामिल होते हीं उन्होंने विधानसभा चुनाव के लिए सीटों की दावेदारी तो कर दी लेकिन मुख्यमंत्री पद की दावेदारी से पीछे हट गए। मांझी एनडीए में अपनी साख जमाने के लिए भाजपा के तर्ज पर कई कार्यक्रम भी किया।
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर एक अणे मार्ग पर अपने साथियों के साथ योग कार्यक्रम भी किया। इस अवसर पर उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी काफी भला-बुरा कहा।
राजनैतिक रूप से जीतन राम मांझी के पक्ष में बोलने वाले दलित नेता रामविलास पासवान पहले तो उनके पक्षधर बने रहते थे लेकिन एनडीए में मांझी के आते हीं उनके तेवर बदल गए। उन्हें लगने लगा है कि मांझी के एनडीए में आ जाने से उनके कद में कटौती हो सकती है।
वैसे भी रामविलास पासवान अपने को दलितों के स्वयंभू नेता मानते रहे हैं। इसलिए उन्होंने उन्होंने अलग से अपनी पारिवारिक पार्टी लोजपा बना रखी है। जो इन दिनों एनडीए की घटक पार्टी है।
मांझी के एनडीए में शामिल होते हीं उनके माथे पर बल पड़ने लगे हैं। पासवान खुलेरूप से मांझी के खिलाफ तो कुछ भी नहीं बोल रहे हैं लेकिन मांझी के समर्थकों के खिलाफ उन्होंने आग उगलना शुरू कर दिया है।
पासवान ने कभी लोजपा के प्रदेश अध्यक्ष रहे नरेन्द्र सिंह को मुद्दा बनाकर मांझी पर अपना निशना साध रहे हैं। पासवान का कहना है कि नरेन्द्र सिंह ने उनके साथ गद्दारी की है और मांझी गद्दारों के मुखिया बने हुए हैं।
उन्होंने साफ शब्दों में कहा है कि मांझी के गद्दार विधायकों एनडीए में शामिल नहीं किया जाए। पासवान के बयान पर लोजपा के प्रदेश अध्यक्ष पशपति नाथ पारस ने भी मांझी के खिलाफ अनाप-शनाप बोलना शुरू कर दिया है।
पासवान के परिवार को लगने लगा है कि यदि मांझी एनडीए में अपना स्थान सुरक्षित करा लिया तो आगे पासवान के सामने दिक्कतें आ सकती हैं। ऐसे में अब वे खुलकर मांझी का विरोध करने लगे हैं।
मांझी और पासवान के इस लड़ाई में भाजपा मूकदर्षक बनी हुई है। वहीं रालोसपा भी इन दोनों की लड़ाई से अपने को अलग रखा है।