लखनऊ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जयापुर गांव को छोड़ आदर्श ग्राम योजना के तहत उत्तर प्रदेश के लगभग सभी सांसदों द्वारा गोद लिए गये गांवों की स्थिति अभी भी बदहाल है।
कांग्रेस, सपा, बसपा जैसे प्रमुख दलों के राष्ट्रीय अध्यक्षों ने भी इसी सूबे के गावों को गोद लिया है लेकिन प्रशासनिक हाकिमों की लापरवाही और जनप्रतिनिधियों की उदासी के चलते इन गांवों के निवासी अब अपने को ठगा महसूस कर रहे हैं।
जनप्रतिनिधियों की उदासी का आलम यह है कि सूबे के करीब 65 फीसदी सांसद अभी तक अपने सांसद निधि का एक भी पैसा विकास के कार्यों में नहीं खर्च कर पाये हैं। सोनिया गांधी तो गोद लिए हुए गांव को एक बार देखने तक नहीं गयीं, जिसे लेकर गांववालों में बड़ा आक्रोश है।
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद नरेंद्र मोदी स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर 15 अगस्त को जब पहली बार लाल किले से देश को सम्बोधित कर रहे थे तो उन्होंने हर सांसद से अपने क्षेत्र में 2016 तक एक गांव और 2019 तक दो गांव विकसित करने की बात कही थी। बाद में 11 अक्तूबर 2014 को लोकनायक जय प्रकाश के जन्मदिन पर उन्होंने आदर्श ग्राम योजना की शुरूआत की। इस योजना में गांवों को विकसित करने का कार्य सांसद निधि से ही करने का प्रावधान किया गया है। इस योजना के लिए कोई अतिरिक्त धनराशि केंद्र अथवा राज्य सरकार द्वारा नहीं दी जा रही है।
योजना प्रारम्भ होने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आदर्श ग्राम योजना के तहत अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी के जयापुर गांव को गोद लिया। इसके बाद समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने अपने संसदीय क्षेत्र आजमगढ़ के तमोली गांव को गोद लिया। बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी लखनऊ के माल गांव को गोद लिया है।
कांग्रेस अध्यक्ष और रायबरेली की सांसद सोनिया गांधी ने 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के अमर सेनानी राना बेनी माधव बख्श सिंह के पैतृक गांव उड़वा को प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना में चुना है। जबकि उनके बेटे और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने अमेठी के जगदीशपुर ब्लाक के डीह गांव को गोद लिया।
प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की सांसद पत्नी डिंपल यादव ने अपने संसदीय क्षेत्र इत्र नगरी कन्नौज के सैयदपुर सकरी गांव को गोद लिया है। केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने लखनऊ के बेंती को और बॉलीवुड स्टार हेमा मालिनी ने अपने संसदीय क्षेत्र मथुरा के रावल गांव को गोद लिया है।
उप्र में 80 लोकसभा सीट है और यहां से राज्य सभा के लिए लगभग 31 सदस्य हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार प्रदेश के करीब सभी 111 सांसदों ने आदर्श ग्राम योजना के तहत एक-एक गांव गोद लिया है। सांसदों द्वारा गांव गोद लेने के बाद लोगों में बड़ी प्रसन्नता थी कि अब उनके गांव में विकास की गंगा प्रवाहित होगी।
मोदी सरकार के एक साल होने को जब हुए तो हिन्दुस्थान समाचार ने सांसदों द्वारा गोद लिए गये इन गांवों की हकीकत जानने के उद्देश्य से एक पड़ताल करायी तो पता चला कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जयापुर गांव को छोड़कर लगभग सभी सांसदों के गावों की हालत पहले से भी ज्यादा बेहाल है। सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव और कुछ अन्य सांसदों के गावों में भी थोड़ा बहुत काम देखने को मिला है।
हिन्दुस्थान समाचार की टीम को आदर्श गांवों से जो रिपोर्ट मिली है, उनमें से कुछ की हकीकत इस प्रकार है-
नरेंद्र मोदी का गांव
उप्र में आदर्श गांवों में सबसे अधिक फायदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा गोद लिए गए जयापुर गांव को हुआ है। छह माह पहले तक जयापुर गांव वाराणसी-इलाहाबाद हाइवे के पास होते हुए भी अनजान था। लेकिन, जबसे मोदी ने जयापुर को प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना के तहत गोद लिया है, पूरा देश इसके बारे में जान गया है। यहां बस मॉल और अस्पताल नहीं है, मगर काफी कुछ शहर से भी आलीशान हो गया है। साल भर में मोदी ने इस गांव की तस्वीर ही बदल दी है। देखने पर ऐसा लगता है जैसे मोदी जयापुर को सिंगापुर बनाना चाहते हैं।
गांव पहुंचते ही सीमेंटेड टाइल्स बनाने वाली मोबाइल फैक्ट्री नजर आई। सामने की कुर्सी पर बैठे मनोज अंटाला ने बताया, पिछले चालीस दिनों से गांव के रास्तों पर टाइल्स बिछा रहे हैं। टाइल्स बनाने की मशीन से लेकर निर्माण सामग्री तक सब गुजरात से लेकर आए हैं। बताने लगे, यहां पानी और सोलर लाइट का जो भी काम हुआ, वह भी गुजरात की संस्था ने कराया है।
गांव में बस स्टैंड बना दिया गया है और यात्रियों की सुविधा के लिए प्रतीक्षालय का निर्माण भी करा दिया गया है। बस स्टैंड के पास 6 महीने पहले झोपड़ी बनाकर रहने वाले 14 परिवारों को पक्का मकान दिया गया है। गांव में हो रहे विकास कार्यों से गाँव की प्रधान दुर्गावती देवी बहुत खुश हैं।
पूछने पर उन्होंने कहा कि यहाँ के लोग बड़े किस्मत वाले हैं जो मोदी जी ने इस गांव को गोद लिया। मोदी ने केवल एक साल में गांव में बहुत काम कराया है। उन्होंने कहा की पहले गांव में हमेशा अँधेरा रहता था लेकिन अब पूरी रात रोशनी रहती है। गांव में अभी तक 250 शौचालय बन चुके हैं और 200 का काम जारी है। स्कूल और कॉलेज पर भी काम हो रहा है।
गांव में यूनियन बैंक, स्टेट बैंक और सिंडिकेट बैंक की शाखाएं लग चुकी हैं और नया नया डाकघर भी बन चुका है। गांव के मुख्य रास्ते और पगडंडियां भी सौर ऊर्जा की स्ट्रीट लाइट से लैस हो चुके हैं। ग्रामीण कहते हैं कि पूरी रात अब गांव में रोशनी रहती है। पूरे गांव में 100 से भी अधिक लाइटें लगाई जा चुकी हैं। इसके अलावा गांव में 25 किलोवाट के दो सोलर पंप और लग रहे हैं ताकि गांव में लोगों को 24 घंटे बिजली दी जा सके।
सोनिया गांधी का गांव
कांग्रेस अध्यक्ष और रायबरेली की सांसद सोनिया गांधी ने 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के अमर सेनानी राना बेनी माधव बख्श सिंह के पैतृक गांव उड़वा को प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना में चुना है। राना बेनी माधव ने अंग्रेजों के खिलाफ खुलकर युद्ध लड़ा था। आखिर तक वह अंग्रेजी सेना के हाथ नहीं लगे। ब्रिटिश हुकूमत ने उनके किले को तोपों से उड़ा दिया था। अवध में राना को आज भी याद किया जाता है। उड़वा आज काफी पिछड़ा गांव है।
ऐसे में सोनिया गांधी ने जब इस गांव को गोद लिया तो लगा कि कांग्रेस अध्यक्ष ने आजादी के महानायक का गांव चुनकर शहीदों की स्मृतियों को जीवंत बनाने का प्रयास किया है। लेकिन, गांव का दौरा करने पर पता चला कि विकास कार्यों की बात तो दूर गोद लेने के बाद सोनिया गांधी ने इस गांव का एक बार दौरा तक नहीं किया।
ग्रामीणों को इस बात का मलाल है कि सांसद ने उड़वा गांव को गोद तो ले लिया, लेकिन न तो उसे देखने आईं और न ही उनका कोई नुमाइंदा लोगों का दुखदर्द जानने आया। सांसद निधि से विकास के लिए अभी तक फूटी कौड़ी भी नहीं मिली। गांव वालों ने बताया कि उन्हें लोग बताते हैं सड़क और हैंडपंपों के लिए प्रस्ताव बनाए गए हैं। लेकिन इन प्रस्तावों पर धन कब मिलेगा, कब विकास होगा, इस बारे में किसी को कुछ नहीं पता।
मुलायम सिंह यादव का गांव
आजमगढ़ के पल्हनी विकास खंड का तमौली गांव वाराणसी के जयापुर के बाद पूर्वांचल का दूसरा गांव है, जिस पर देश भर की निगाहें टिकी हैं। कारण, सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत इसे सपा मुखिया और आजमगढ़ सांसद मुलायम सिंह यादव ने गोद ले रखा है। जिला मुख्यालय से सटा होने के बाद भी यह गांव गुमनाम था। इसमें भू-भाग और खेती-बाड़ी तो थी पर विकास की रफ्तार नहीं थी। सात पुरवों में बंटा घनी आबादी वाले यादव बहुल इस गांव की पहचान इसके पूर्व केवल आपराधिक घटनाओं को लेकर थी। मगर, नेताजी के गोद लेते गांव में रहने वालों की सोच बदली, पड़ोस के ग्रामीणों का नजरिया बदला। आंखों में विकास के सपने चमके।
कुछ योजनाओं का खाका भी तैयार है और उनके मूर्त रूप लेने का इंतजार है, जबकि तेजी के साथ निर्माणाधीन मेडिकल कालेज, सीसी रोड ने गांव की सूरत और सीरत बदल दी है। गांव में डेयरी और स्टेडियम के खुलने का रास्ता साफ हो गया है। गांव के समग्र विकास के लिए 31 परियोजनाओं पर काम चल रहा है।
जिला विकास अधिकारी जगतनारायण राय ने बताया कि तमौली योजनाओं को अमली जामा पहनाए जाने को लेकर 14 व 15 मई को गांव में समन्वय के लिए बैठक हो चुकी है। सभी को सांसद योजना की गाइडलाइन उपलब्ध कराई जा चुकी है। गांव की सबसे बड़ी समस्या है पानी की निकासी। गांव में नाला बनाने का काम जगह-जगह विवाद के चलते रुका हुआ है। आपसी वैमनश्यता के ज्वार में डूबा रहने वाला कुनबा अब विकास पर एकजुट दिखता है। गांव के अंदर के मार्ग की दशा खस्ताहाल है। जिन परियोजनाओं पर काम शुरू होना है, उसमें सड़क को भी दुरुस्त करना है।
राजनाथ का गांव
देश के गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने लखनऊ के पास बेंती गांव गोद लिया है, लेकिन पांच महीने बीतने के बाद भी यह गांव अपने विकास की बाट जोह रहा है। राजनाथ सिंह के गोद लेने से पहले इस गांव की जो हालत थी, आज भी जस की तस बनी हुई है। सड़कें, पानी, कॉलेज और अस्पताल जैसी कई मूलभूत सुविधाएं अभी भी इस गांव की पहुंच से कोसों दूर नजर आती हैं। हिन्दुस्थान समाचार की टीम ने जब इस गांव का रियलिटी चेक किया, तो दावों की सारी हकीकत सामने आ गई। बीते 10 अप्रैल को लखनऊ आए राजनाथ सिंह ने एलान किया था कि बेंती गांव के विकास का खाका खींच लिया गया है। जल्द ही वहां विकास कार्य शुरू कर दिए जाएंगे, लेकिन यहां जब लोगों से बात की गई, तो पता चला कि परवान चढ़ी उनकी उम्मीदों ने अब दम तोड़ना शुरू कर दिया है।
छह दिसंबर, 2014 को राजनाथ सिंह बेंती गांव में ओरिएंटल बैंक की शाखा का उद्घाटन करने आए थे। इसके बाद बैंक की ओर से ही 10 हैंडपंप लगवाए गए, जबकि इस गांव में अभी भी 30 हैंडपंप की दरकार है। बेंती गांव के प्रधानपति गिरीश तिवारी का कहना है कि राजनाथ सिंह को गांव गोद लेने के बाद आम सहमति से 20 मांगों का प्रस्ताव भेजा गया था।
हालांकि, लंबा वक्त बीत जाने के बाद भी उन्हें अब तक कोई जवाब नहीं मिला है। गांव में रहने वाले अमित दीक्षित ने बताया कि पांच महीने में यहां विकास के नाम पर कोई काम नहीं हुआ है। हालांकि राजनाथ सिंह कहते हैं कि बेंती गांव के विकास का खाका खींचा जा चुका है, लेकिन योजनाओं को धरातल पर आने में वक्त लगेगा।
अन्य आदर्श गांव
बसपा सुप्रीमो मायावती का गोद लिया हुआ लखनऊ के पास का माल गांव, राहुल गांधी का डीह गांव, देवरिया सांसद और केन्द्रीय मंत्री कलराज मिश्र का प्यासी गांव, कुशीनगर के सासंद राजेश पांडेय का गोपालगढ़ गांव, बागपत सांसद डा. सत्यपाल सिंह का पलड़ी गांव, मुजफरनगर से सांसद डाक्टर संजीव बालियान का रसूलपुर जाटान गांव, उन्नाव के सांसद सच्चिदानन्द श्रीहरि साक्षी महराज का टीकर गढ़ी गांव, इलाहाबाद के सांसद श्यामा चरण गुप्त द्वारा गोद लिया बैदवार कला गांव, फूलपुर के सांसद केशव प्रसाद मौर्य का जैतवारडीह गांव, फैजाबाद के सांसद लल्लू सिंह का तिदोली गांव, बस्ती के सांसद हरीश द्विवेदी का अमोढ़ा गांव, मेरठ लोकसभा क्षेत्र से सांसद राजेंद्र अग्रवाल का गोद लिया हुआ गांव भगवानपुर चट्टायन, बुलंदशहर के सांसद डाॅ. भोला सिंह का भोपतपुर गांव, प्रतापगढ़ सांसद कुंवर हरिवंश सिंह का शाहबरी गांव और कौशाम्बी के सांसद विनोद सोनकर का शमसाबाद गांव यद्यपि सांसदों द्वारा गोद लेने के बाद आदर्श गांवों की श्रेणी में तो आ गया है, और इन गांवों के रहने वाले भी शुरू में तो बड़े खुश थे कि अब उनके यहां हर तरह की सुविधाएं मुहैया हो जायेंगी। लेकिन उनके सपने अब धीरे-धीरे धूमिल हो रहे हैं।
इन सभी गांवों को सांसदों द्वारा गोद लिए छह महीने से अधिक बीत गये हैं लेकिन विकास की एक भी योजना जमीनी स्तर पर इन गांवों में नहीं दिखायी दे रही है। कुछ लोग इसमें राजनीति का भी खेल मान रहे हैं। उनका आरोप है कि विकास की योजनाएं सांसदों द्वारा जिला प्रशासन को भेजी गयी हैं लेकिन अधिकारियों की लापरवाही के कारण उनका क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा है। चूंकि प्रदेश के 80 सांसदों में 71 भाजपा के व दो भाजपा समर्थित अपना दल के हैं और प्रदेश में सपा की सरकार है इसलिए अधिकारियों की लापरवाही के पीछे दलगत राजनीति की भी बात कही जा रही है। वैसे, इसमें सांसदों की उदासीनता भी एक कारण माना जा रहा है।
65 फीसदी सांसदों ने साल भर में नहीं खर्च किया एक भी पैसा
उत्तर प्रदेश के कुल 80 लोक सभा सदस्यों में से 52 सांसदों (65 प्रतिशत) ने पिछले एक साल में अपने संसदीय क्षेत्रों में एक भी पैसा अपनी संसदीय निधि से नहीं किया। इन सांसदों में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव और केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह का भी नाम शामिल है।
गौरतलब है कि भारत सरकार सांसदों को हर साल पांच करोड़ रुपए अपने क्षेत्र में विकास के लिए देती है। दरअसल वर्ष 2011 से पहले इस निधि के तहत हर सांसद को अपने क्षेत्र के विकास के लिए दो करोड़ रुपये मिलते थे, लेकिन जुलाई 2011 में यह धनराशि बढ़ाकर पांच करोड़ रुपये कर दी गयी। जिस समय सांसद निधि की धनराशि बढ़ाई गयी थी, इसकी खूब तारीफ हुई थी। सांसदों ने उस वक्त इसे अपने क्षेत्र के लिए वरदान बताया था, लेकिन वक्त बीतने के साथ ही सांसद निधि इस्तेमाल करने से वे शायद कतराने लगे हैं।
सांसद विकास निधि खर्च करने में कुछ केंद्रीय मंत्री भी फिसड्डी हैं। राजनाथ सिंह, कलराज मिश्र, उमा भारती, महेश शर्मा, साध्वी निरंजन ज्योति और मनोज सिन्हा ने निधि से पूरे साल एक रुपया भी खर्च नहीं किया। वहीं वाराणसी से सांसद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने करीब 40 लाख रुपए खर्च किए हैं जबकि प्रो0 राम शंकर कठेरिया ने 1.01 करोड़ और मेनका गांधी ने 1.22 करोड खर्च किया है।
सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव की पार्टी और परिवार से पांच सांसद हैं,
जिनमें उनके भतीजे धर्मेन्द्र यादव, अक्षय यादव और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव ने इस साल निधि खर्च नहीं की। सिर्फ मुलायम के पौत्र और मैनपुरी से सांसद तेज प्रताप ने ही अपनी सांसद निधि से 66 लाख रुपए खर्च किए हैं।
अमेठी से सांसद राहुल गांधी विकास निधि खर्च करने के मामले में औरों से आगे हैं। उन्होंने पांच करोड़ की निधि में से 1.86 करोड़ रुपया खर्च किया है। हांलाकि उनकी मां और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अपनी सांसद निधि से कुछ नहीं खर्च किया।
सबसे ज्यादा खर्च करने वालों में कुशीनगर से भाजपा सांसद राजेश पांडेय उर्फ गुड्डू हैं। जिन्होंने पांच करोड़ में से 2.46 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। लेकिन, डा0 मुरली मनोहर जोशी और योगी आदित्यनाथ ने एक पैसा भी नहीं खर्च किया। वहीं, मथुरा की सांसद हेमामालिनी ने 49 लाख, अलीगढ़ के सतीश कुमार ने 1.43 करोड़ और अम्बेडकरनगर के सांसद हरिओम पांडेय ने चार लाख रूपए खर्च किए हैं। सुल्तानपुर के सांसद वरुण गांधी ने 1.78 करोड़ रुपए सांसद निधि से खर्च किए हैं।
अपना दल की मिर्जापुर से सांसद अनुप्रिया पटेल और प्रतापगढ़ से सांसद कुंवर हरिवंश सिंह ने निधि खर्च न करने वालों में अपना नाम दर्ज कराया है। हांलाकि अनुप्रिया ने 48 लाख खर्च करने की सिफारिश की है, लेकिन यह राशि अभी खर्च नहीं हो सकी है।
ये रहे सबसे फिसड्डी
राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह के बेटे और एटा के सांसद राजबीर सिंह, डुमरियागंज के जगदम्बिका पाल, अकबरपुर के देवेन्द सिंह, इलाहाबाद के श्यामा चरण गुप्ता, आंवला के धर्मेन्द्र कुमार, बागपत के सत्यपाल सिंह, बहराइच की साध्वी सावित्री बाई फुले, बलिया के भारत सिंह, बांसगांव के कमलेश पासवान, बाराबंकी की प्रियंका सिंह रावत, बरेली के संतोष कुमार गंगवार, भदोही के वीरेन्द्र सिंह, चंदौली के महेन्द्र नाथ पाण्डेय, इटावा के अशोक कुमार दोहरे, फैजाबाद के लल्लू सिंह, फर्रुखाबाद के मुकेश राजपूत, हमीरपुर के कुंवर पुष्पेश सिंह चंदेल, हाथरस के राजेश कुमार दिवाकर, जालौन के भानुप्रताप सिंह वर्मा, संतकबीरनगर के शरद त्रिपाठी, जौनपुर के कृष्ण प्रताप, कौशांबी के विनोद कुमार सोनकर, मुरादाबाद के कुंवर सर्वेश कुमार, लालगंज के नीलम सोनकर, बस्ती के हरिश्चन्द्र और बिजनौर के कुंवर भारतेन्द्र, फूलपुर के केशव प्रसाद मौर्या, मछलीशहर के रामचरित निषाद, महराजगंज के पंकज, मेरठ के राजेन्द्र अग्रवाल, मिश्रिख से अंजू बाला, मोहनलालगंज के कौशल किशोर, गाजियाबाद के विजय कुमार सिंह, सलेमपुर के रवीन्द्र कुशवाहा, संभल के सत्यपाल सिंह, फतेहपुर सीकरी के बाबूलाल और शाहजहांपुर के कृष्णा राज।