जगदलपुर। शिक्षा जैसे पवित्र पेशे में भी अब व्यवसायिकता ने अपने पैर पसार दिये है तथा इस पेशे में भी अब लूट तंत्र विकसित हो गया है। नया शिक्षा सत्र शुरू होते ही अभिभावकों की जेबें कटनी शुरू हो गई हैं। शहर के अधिकांश निजी स्कूलों में सीबीएसई पैटर्न की पढ़ाई होती है।
निजी प्रकाशकों एवं सीबीएसई पाठ्यक्रम वाले निजी स्कूलों व स्टेशनरी दुकानों की साठगांठ से पालकों जेबें ढ़ीली हो रही है। बाजार की स्थिति यह है कि बाजार की एनसीआईआरटी की पुस्तकों के मुकाबले निजी प्रकाशकों की पुस्तकें आठ गुना तक महंगी है और इन महंगी पुस्तकों की सूची अभिभावकों का थमा कर निजी स्कूल के मालिक मालामाल हो रहे है।
यह भी पता चला है कि कुछ पुस्तकें तो केवल मोटे कमीशन के लालच में कोर्स में शामिल की गई है। अब स्कूल शिक्षा का मंदिर न रह कर मुनाफे की पाठशाला बन गया है। भले ही शासन प्रशासन शिक्षा के मामले में डींगें हांकता हो, लेकिन सच बेहद कड़वा और महंगा है।
गौरतलब है कि निजी स्कूल में महंगी पुस्तकें व महंगी फीस होने के कारण पालकों पर बोझ बढ़ गया है। निजी स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ा रहे अभिभावकों ने बताया कि सत्र शुरू होते ही पालकों को स्कूल से पर्ची मिल जाती है। फलां दुकान से पुस्तकें, फलां दुकान से यूनिफार्म के साथ ही स्कूल से ही टाई, बेल्ट लेने की बाध्यता है।
पालक भी एक छत के नीचे सभी सुविधाएं पाकर सामग्रियां खरीद लेते है। अभिभावकों की कमाई का 65 प्रतिशत हिस्सा बच्चों की पढ़ाई पर निकल जाता है।
हाल यह है कि निजी स्कूल में सीबीएसई पैटर्न वाली पुस्तकों मेें 2016-17 में पहली कक्षा की पुस्तकें 2650 दूसरी कक्षा की 2640 तीसरी कक्षा की 2837 चौथी 3096 पांचवी 3197 छटवीं 3234 सातवीं 3456 तथा आठवीं कक्षा की पुस्तकें 4,111 रूपये में मिल रही है।
अधिनियम में इस तरह की मनमानी करने वाले निजी स्कूलों पर कड़ी कार्यवाही का प्रावधान है। संचालकों द्वारा तय दुकानों से किताबों की बिक्री होती है तो इसकी शिकायत मिलने पर स्कूल की मान्यता भी रद्द करने का प्रावधान है।
फिर व चाहे स्कूल मा.शिक्षा बोर्ड का हो या सीबीएसई पाठ्यक्रम को हो। शहर के कई नामी इंग्लिश मिडियम स्कूलों और कई नामी स्टेशनरी दुकानों की साठ गांठ से स्कूल और दुकान मालामाल हो रहे हैं और पालक कंगाल।
कक्षा 12 तक की विद्यार्थियों के लिए वार्षिक फीस 29 हजार 600 रूपये निर्धारित किया गया है। नवमीं से दसवीं तक के विद्यार्थियों के लिए 25 हजार 900 छटवीं से आठवीं तक के विद्यार्थियों को 19 हजार तथा पहली से पांचवी तक के विद्यार्थियों के लिए 16 हजार 350 रूपए निर्धारित है।
इस तरह निजी स्कूलों की मनमानी के चलते वार्षिक शुल्क में वृद्धि के साथ-साथ आने जाने हेतु बस के शुक्ल देेने के अलावा जैसे अन्य खर्चों के लिए पालक के पसीने छूट रहे है। जिसका सबसे अधिक आर्थिक असर मध्यमवर्गीय परिवारों पर पड़ रहा है।