हैदराबाद। मई में जब प्रो कबड्डी लीग के आयोजकों ने घोषणा की कि यह लीग अब आठ की बजाय 12 टीमों की होगी और सवा तीन महीने तक इसके 138 मैच खेले जाएंगे तो सबके मन में यही सवाल आया कि कहीं इसकी बढ़ी हुई अवधि लोगों को बोर तो नहीं करेगी?
लीग को शुरू हए दो दिन बीत चुके हैं और नए सिरे से सजी टीमों के बीच प्रतिस्पर्धा का जो स्तर देखने को मिल रहा है, उससे यही लगता है कि यह लीग अंतिम चरण तक उत्सुकता के चरम को बरकरार रखने में सफल रहेगी।
बीते चार सीजन की बात और थी। आठ टीमों के बीच सवा महीने तक मुकाबले होते थे। लीग चट शुरू होती थी और पट खत्म भी हो जाती थी। लेकिन, जब से टीमों की संख्या 8 से 12 की गई और इसकी अवधि बढ़ाई गई और साथ ही इसके फारमेट में बदलाव किया गया, लगातार इस बात पर चर्चा जारी रही कि क्या यह लीग अंत तक अपना पेस और लोगों के बीच उत्सुकता के स्तर को बनाए रख पाएगी?
पांचवें सीजन का पहला मैच मेजबान तेलुगू टाइटंस और नई प्रवेशी तमिल थलाइवाज के बीच हुआ। यह मैच एक तरह से एकतरफा रहा लेकिन दूसरे मैच में पुनेरी पल्टन ने पूर्व चैम्पियन यू-मुम्बा को मात देकर इस लीग के रोमांचक सफर की शुरूआत की। पुणे की टीम अनापेक्षित तौर पर मैट पर बेहतर दिखी जबकि भारतीय टीम के कप्तान अनूप कुमार की देखरेख में खेल रही यू-मुम्बा टीम अपने स्तर के साथ न्याय नहीं कर पाई।
मई में पांचवें सीजन के लिए हुई नीलामी के बाद सभी टीमों की शक्ल बदल गई। रिटेन किए गए एक-एक अहम खिलाड़ी के अलावा सभी टीमों में लगभग सभी नए चेहरे शामिल हुए। इसके साथ यह चर्चा आम हो गई कि दो महीने बाद लीग शुरू होनी है और एक-दूसरे के साथ तालमेल बनाने में खिलाड़ियों को दिक्कत आ सकती है, लेकिन दरअसल ऐसा हुआ नहीं। सभी टीमें लीग की शुरूआत के साथ एक इकाई के तौर पर पिरोई हुई दिखीं और सबसे अहम बात यह रही कि क्षमता के मामले में कोई किसी से कमतर नहीं दिखा।
पुणे ने जिस अंदाज में यू-मुम्बा को हराया वह इस बात का प्रतीक है कि खिलाड़ी पिछले सीजन में चाहें जिस टीम के लिए खेले हों, नए सीजन के लिए वे पूरी तरह अपने नए साथियों के साथ मानसिक तौर पर जुड़ चुके हैं। पुणे के कप्तान दीपक निवास हुड्डा ने इस बात पर मुहर लगाई। दीपक ने कहा कि जून में कैम्प में पहली बार मिलने के साथ ही वह तथा उनके साथी एक परिवार की तरह जुड़ गए।
सभी टीमों के साथ यही हुआ है। मौजूद चैम्पियन पटना पाइरेट्स को ही लीजिए। उसने जिस श्रेष्ठता से शनिवार को टाइटंस को दोयम साबित किया, वह यही साबित करता है कि सभी टीमों ने भरपूर तैयारी की है और और आसानी से हथियार डालने को तैयार नहीं हैं। साथ ही दो अलग टीमों से दिग्गज खिलाड़ियों की भिड़ंत इस लीग को और रोमांचक बना रही है।
मसलन, उद्घाटन मैच में टाइटंस के कप्तान राहुल चौधरी और भारतीय टीम को विश्व कप दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले थलाइवाज के कप्तान अजय ठाकुर के बीच टक्कर थी। राहुल इस टक्कर में जीत गए लेकिन अगले ही मैच में उन्हें पटना के कप्तान प्रदीप नरवाल ने हर लिहाज से दोयम साबित कर दिया। इसके अलावा दीपक ने अनूप को व्यक्तिगत प्रतिस्पर्धा में दोयम साबित किया।
दिल्ली दबंग टीम ने शनिवार को जयपुर पिंक पैंथर्स को हराया। यह मैच इस लीग में टीमों के बीच प्रतिस्पर्धी श्रेष्ठता को दर्शाता है। मिराज शेख की टीम ने भारत के सबसे बड़े आलराउंडर मंजीत चिल्लर और पूर्व कप्तान जसवीर की टीम को जिस तरह पटखनी दी, उससे शुरुआत के साथ ही लीग में रोमांच आ गया। इससे पहले हुए सात मुकाबलों में से छह बार जयपुर ने जीत हासिल की थी। इससे यह साबित हुआ कि अंत तक नतीजे हमारी उम्मीदों से उलट आएंगे।
शुरूआत अच्छी हुई है और उम्मीद है आने वाले दिनों में भी कांटे के मुकाबले होंगे। और फिर, कबड्डी का जन-जन से जुड़ा होना इस लीग की लोकप्रियता को बनाए रखेगा। आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक कबड्डी के गढ़ माने जाते हैं। यहां इस लीग की प्रतिष्ठा में कोई आंच नहीं आने वाली। जहां तक नए आयोजन स्थलों की बात है तो उत्तर प्रदेश, गुजरात और हरियाणा से आई नई टीमें भी लोगों को अपने मोहपाश में बांधे रखने में सफल रहेंगी।
इसका कारण यह है कि हरियाणा पहले ही कबड्डी का गढ़ रहा है। जहां तक अहमदाबाद की बात है तो वहां के लोगों ने विश्व कप के दौरान यह साबित कर दिया था कि उन्होंने इस खेल को दिल से स्वीकार कर लिया है। यूपी में कबड्डी के चाहने वालों की कोई कमी नहीं। राहुल, यूपी टीम के कप्तान और कबड्डी के सबसे महंगे खिलाड़ी नितिन तोमर भी यूपी से हैं। ये इस राज्य में कबड्डी के ब्रांड एम्बेसडर हैं और इनकी तथा दूसरे कई खिलाड़ियों की बदौलत कबड्डी यहां भी अपना झंडा बुलंद रखने में सफल रहेगी।