सिरोही। सिरोही में 32 जगहों पर लगाए गए सीसीटीवी कैमरों के मामले में अतिरिक्त जिला कलक्टर प्रहलादसहाय नागा की अध्यक्षता में बनी जांच समिति ने इसमें अनियमितता और मिलीभगत मानी है।
चूंकि टेंडर प्रक्रिया से ही अनियमितता हुई है, 39 लाख रुपये से ज्यादा राशि ठेकेदार फर्म को दे भी दी गई है। इस राशि को आयुक्त, जेईएन, ठेकेदार और स्टोर कीपर समेत अन्य के द्वारा आपराधिक साजिश रखते हुए राजकोष को नुकसान पहुंचाने या गबन करना माना जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। वैसे इस जांच में अभी भी कई बिन्दुओं पर एक्सपर्ट कमेटी के माध्यम से काम करवाना जरूरी है, लेकिन प्रथम दृष्टया इस जांच रिपोर्ट में ऐसे तथ्य आ चुके हैं जो इसमें शामिल सभी पक्षों को सलाखों के पीछे पहुंचाने के लिए काफी हैं। सबगुरु न्यूज ने शुरू से ही इस प्रकरण में जो अनियमितताएं बताई थी, वह सब उजागर हुई हैं। पहले स्तर पर प्रस्ताव और निविदा में ही समिति ने अनियमितता पाई।
प्रस्ताव में रखा धोखे में
इस प्रकरण के प्रकाश में आने के बाद गोपालन मंत्री ओटाराम देवासी के निर्देश पर जिला कलक्टर ने एडीएम के नेतृत्व में जो कमेटी गठित की उसमें जिला परिषद के सहायक लेखाधिकारी सुमित देव, ई-गवर्नेन्स के उप निदेशक सुदर्शनसिंह, कोषाधिकारी माणकलाल चैहान शामिल थे। इस कमेटी को पार्षदों ने जो शपथ पत्र दिये थे, उसमें इन लोगों ने बताया बोर्ड की बैठक में आठ सीसीटीवी कैमरे लगाने की बात हुई थी, जिसकी लागत दस लाख रुपये से ज्यादा नहीं होगी, लेकिन इस पर भी बाद में विस्तृत चर्चा करने का प्रस्ताव रखा था। इसकी पालना नहीं करते हुए सीधे ही एक करोड रुपये से ज्यादा लागत के कैमरों की खरीद का आर्डर दे दिया। कमेटी ने माना है कि बिना किसी आपात स्थिति के जिस तरह से सात दिन में ही सारी खरीद करके पैसा दे दिया गया, वह मिलीभगत की ओर इशारा कर रहा है।
निविदा में अनियमितता
इस प्रकरण की निविदा प्रकरण में ही साजिश साबित हो जा रही है। यह पूरा सौदा एक करोड रुपये का था। सबगुरु न्यूज ने बताया था कि इसमें राजस्थान स्टोर परचेज रूल के अनुसार पचास हजार रुपये से ज्यादा सर्कुलेशन वाले एक राज्य स्तरीय तथा एक राष्ट्रीय स्तर के समाचार पत्र में टेंडर दिया जाना चाहिए। जांच समिति ने भी यही तथ्य दिए। उसने बताया कि ऐसा किया जाना चाहिये था, लेकिन जोधपुर के दैनिक जनगण तथा जयपुर के सांध्यकालीन अखबार सीमांत संदेश में इसे प्रकाशित करवाया गया। यह नियमानुसार नहीं था।
ई-टेंडर होना था
जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि यह टेंडर पचास लाख रुपये से ज्यादा का था, ऐसे में इसका ई-टेंडर भी किया जाना था। लागत एक करोड की है तो इसके लिए न्यूनतम मियाद भी कम से कम 30 दिन दी जानी थी, लेकिन इसका टेंडर सात दिन की अवधि में ही कर दिया गया। जैसा कि सबगुरु न्यूज ने अपनी खबर में हवाला दिया था कि इसकी अवधि आपात स्थिति में कम की जा सकती है, वह भी 15 दिन, इससे कम नहीं। ऐसा ही जांच समिति ने राजस्थान सामान्य वित्त नियमों के हवाले से जांच रिपोर्ट में बताया है। इस सौदे के लिए 39 लाख 24 हजार 323 रुपये का भुगतान कर दिया गया है और 66 लाख 28 हजार 223 रुपये का बिल पेंडिंग है। इस संपूर्ण प्रकरण में पैसे के लेन-देन में तत्कालीन जनप्रतिनिधि, आयुक्त, जेईएन, स्टोरकीपर की क्लीयरेंस और हस्ताक्षर हैं।
यह बिंदु भी जांचने जरूरी
यह जांच रिपोर्ट विस्तृत नहीं है। जांच रिपोर्ट में भी सूक्ष्म जांच करने पर और अनियमितताएं सामने आने की बात लिखी है। सवाल यह भी है कि अहमदबाद और मुंबई की जिन कंपनियों ने इसमें टेंडर डाले उनके पास जोधपुर और जयपुर के एक अनजान स्थानीय समाचार पत्र में छपा विज्ञापन पहुंचा कैसे। इसे पहुंचाने वाले नगरपरिषद के कार्मिक थे या फिर कोई स्थानीय दलाल। ऐसे है तो इन दलालों और कार्मिकों भी इस साजिश का हिस्सा होने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है। प्रारम्भिक जांच रिपोर्ट के आधार पर न्यायालय में इस्तगासा करवाकर पुलिस जांच में इस पूरे तंत्र की बखिया उघाडी जा सकती है।