लखनऊ। उत्तर प्रदेश बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी ने योगी सरकार द्वारा सरकारी खर्चे पर अयोध्या में दीपावली मनाने और भगवान राम की 108 फिट ऊंची प्रतिमा स्थापित किए जाने के ऐलान पर ऐतराज जताया है।
कमेटी का कहना है कि ऐसा लगता है कि सूबे की सरकार सर्व धर्म की न होकर खुद को विशेष धर्म का मानने वालों की सरकार समझकर कार्य कर रही है। कमेटी ने बुधवार को न्यायालय में चल रहे बाबरी मस्जिद के स्वामित्व मामले को लेकर बैठक की और इस मामले की पैरवी के लिए कमेटी के संयोजक जफरयाब जीलानी को अधिकृत किया।
मौलाना मो. इदरीस बस्तवी की अध्यक्षता में बुधवार को बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी की बैठक हुई। बैठक में प्रदेश सरकार द्वारा अयोध्या में सरकारी स्तर पर दीवाली मनाने तथा रामचंद्र जी की प्रतिमा स्थापित करने के निर्णय का मुद्दा छाया रहा।
बैठक में चिंता जाहिर करते हुए कहा गया कि प्रदेश की वर्तमान योगी आदित्यनाथ की सरकार स्वयं को एक विशेष धर्म को मानने वालों की सरकार समझकर कार्य कर रही है। जबकि भारत के संविधान के अनुसार सरकार का संबंध किसी धर्म विशेष से नहीं होता है। सभी धर्मो का आदर करना और सभी धर्मो के मानने वालों को समान रूप से देखना हर सरकार का कर्तव्य है।
एक्शन कमेटी ने वर्तमान योगी सरकार के अयोध्या में सरकारी स्तर पर दीपावाली मनाने और सरकारी खर्च से भगवान राम की 108 मीटर या 108 फिट ऊंची प्रतिमा बनाने को भी देश के धर्मनिर्पेक्ष स्वरूप तथा संविधान की धारा 27 की सरासर अवहेलना बताया। साथ ही इन धार्मिक कार्यो को असंवैधानिक तथा गैरकानूनी करार दिया।
कमेटी ने माना कि दोनों ही कार्यक्रम किसी मुस्लिम धर्मस्थल या बाबरी मस्जिद के स्थान पर नहीं हो रहे हैं फिर भी कमेटी ने मुसलमानों से शांति की अपील की है और कहा है कि इन कार्यो को रोकने अथवा उनमें किसी प्रकार से व्यवधान उत्पन्न करने का प्रयास नहीं किया जाए ताकि प्रदेश में अमन व शांति का वातावरण बना रहे।
बैठक में सर्वोच्च न्यायालय में चल रहे बाबरी मस्जिद मुकदमे पर भी चर्चा की गई। कमेटी को मुकदमे की वर्तमान स्थिति से अवगत कराया गया। बैठक ने मुसलमानों की ओर से की जाने वाली पैरवी पर संतोष व्यक्त किया और भविष्य की रणनीति तय करने के लिए कमेटी के संयोजक जफरयाब जीलानी को अधिकृत किया।
कमेटी ने कहा कि अपीलों की सुनवाई में विभिन्न दस्तावेजी सुबूत तथा विभिन्न कानूनी बिंदुओं पर चर्चा होनी है, इसलिए किसी प्रकार की जल्दबाजी नहीं होनी चाहिए तथा सभी पक्षकारों को बहस का पूरा अवसर देने के बाद ही निर्णय होना चाहिए।