चंडीगढ़। पंजाब में अगले वर्ष होने वाले विधान सभा को लेकर सभी राजनीतिक दल अपनी-अपनी चुनावी रणनीति बनाने में व्यस्त हैं। सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने एक तरीके से उम्मीदवारों की पड़ताल भी प्रारम्भ कर दी है।
लेकिन अभी तक सूबे की सत्ता में विगत दस सालों से अकाली दल के साथ भागीदार भारतीय जनता पार्टी ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं। भारतीय जनता पार्टी की रणनीति आगामी विधान सभा चुनाव में क्या होगी, इसको लेकर उसके सहयोगी अकाली दल के भी माथे पर चिंता की लकीरें खींच रही हैं। इस परेशानी को विगत दिनों अमृतसर में हुए भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक ने और भी बढ़ा दी है।
सूत्रों की माने तो इस बैठक में भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश की कोर कमेटी ने ही नहीं, बल्कि सामान्य कार्यकर्ताओं ने भी राष्ट्रीय संगठन महामंत्री रामलाल के सामने खुलकर अकाली दल द्वारा किये जा रहे भेद-भाव को व्यक्त करते हुए विधान सभा चुनाव में अकाली दल से अलग होकर चुनाव लड़ने की मांग कर डाली थी।
इसी अक्रोश का परिणाम था कि खुद राष्ट्रीय संगठन मंत्री को मंच से कार्यकर्ताओं से आह्वाहन करना पड़ा कि वह अन्याय का प्रतिकार ही ना करें, बल्कि जनता के बीच जाकर इसका दमदार विरोध दर्ज कराएं। पंजाब की राजनीति में संभवतः पहली बार भारतीय जनता पार्टी के किसी बड़े व निर्णायक नेता द्वारा कार्यकर्ताओं से इस प्रकार की अपील किया गया है।
भारतीय जनता पार्टी के इस रूख को देखते हुए अकाली दल भी अपनी अलग रणनीति बनाने में जुट गयी है। हालांकि अकाली रणनीतिकार काफी समय से इस पर काम कर रहे थे। इसकी कमान खुद बादल परिवार की बहु व केन्द्रीय मंत्री हरसिमरत कौर ने थाम रखी है।
इसकी रणनीति के तहत विगत दिनों केन्द्रीय मंत्री ने तीसरे मोर्चे के कुछ वरिष्ठ नेताओं से दिल्ली में मुलाकात किया था। लेकिन इस मुलाकात को केवल एक औपचारिक मुलाकात ही अकाली दल द्वारा बताया जा रहा था।
किन्तु पंजाब भाजपा के इन दिनों बदले व आक्रामक तेवरों को देखते हुए अकाली दल के रणनीतिकार आगामी विधान सभा चुनाव में तीसरे मोर्चे के साथ मैदान में कुदने की रणनीति पर भी गंभीरता से विचार कर रहे हैं।