कोटा। गोवर्द्धनमठ पुरी पीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य निश्चलानन्द सरस्वती ने कहा कि देश की यह विडंबना रही है कि 70 वषों में अभी तक भारत को इसके अनुरूप योग्य शासक नहीं मिला है।
भारत में कूटनीति के तहत विदेशी षडयंत्र से यहां धर्मगुरूओं की उपेक्षा की जा रही है इस कारण देश अवनति की ओर बढ़ रहा है, हमारा देश विश्वगुरू की उपाधि भी खो चुका है। शंकराचार्य निश्चलानन्द सरस्वती कोटा में आयोजित आध्यात्मिक प्रवचन, दर्शन एवं दीक्षा प्रश्नोत्तरी के दौरान बुद्धिजीवियों को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने विज्ञान, वैदिक गणित, अध्यात्म एवं धर्म से जुड़ी जिज्ञासाओं एवं वेदनाओं के सवालों के जवाब में कहा कि मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति तब होती है जब उसके तन-मन के विकार दूर हो जाते हैं। वैदिक गणित एक दर्शन है जो वेदों ने दिया है। वेदों के ज्ञान के आधार पर भारत ने शून्य का आविष्कार किया है।
हिन्दू धर्म से जुड़े एक सवाल के जवाब में शंकराचार्य जी ने कहा कि वैदिक सनातन धर्म व सिद्धांतों को अपनाकर हम विश्व की समस्त विषमताओं, विवशताओं व कठिनाईयों को दूर कर सकते हैं और भारतीय सनातन सिद्धांतों के माध्यम से विश्व में सर्वोपरि हो सकते हैं।
शंकराचार्य ने बुद्धिजीवियों की जिज्ञासाओं का समाधान करते हुए भारतीय संस्कृति, सदभाव व एकता तथा वास्तविक विकास को कायम रखने का आव्हान किया। उन्होंने वेदोक्त धर्म के मर्म को समझकर उसको जीवन के कार्य, व्यवहार और आचरण में अपनाने की बात कही।
धर्म की रक्षा करने वाले खुद गुरू व संत कूटनीति के शिकार हो रहे हैं। आज इस कूटनीति के कारण आडम्बर व ढोंगी बाबाओं की फौज तैयार हो गई है, जिससे सनातन धर्म की कीर्ति धूमिल हो रही है, साथ ही देश में लगभग 112 शंकराचार्य पैदा हो गए हैं।
आज शासन तंत्र दिशाहीन व्यापार तंत्र के अधीन हो गया है इस कारण राजतंत्र उनके अधीन हो चुका है, अतःदिशाहीन शासन से सनातन संस्कृति के अस्तित्व पर संकट खड़ हो गया है।
उन्होंने कहा कि विदेशों में धर्मगुरूओं का बड़ा सम्मान होता है, जहां उन्हें राष्ट्रपति के समान अधिकार मिलते हैं, जबकि भारत में शंकराचार्य को यह सम्मान नहीं मिलता है।
मानव मूर्ति बनाने व स्थापित करने के एक सवाल के जबाव में उन्होंने कहा कि शुक्र नीति के अनुसार केवल 05 देवता ही पूजनीय हैं, इनके अलावा यदि मानव मूर्ति बनती है तो शुक्र नीति के अनुसार यह ईश्वर का तिरस्कार है।