स्वामी रामदेव के स्पष्टीकरण से उनकी दवा पर उठा विवाद शान्त हुआ। उन्होंने उक्त दवा के नाम के संदर्भ में संस्कृत साहित्य और आयुर्वेद परम्परा का उल्लेख किया।
रामदेव ने यह साबित करने का प्रयास किया कि इस दवा का लाभ निःसंतान दम्पत्ति को हो सकता है। पुत्र या पुत्री के आधार पर कोई भेद नहीं किया गया।
संस्कृत व आयुर्वेद के जानकार इस बात को बेहतर ढंग से समझ सकते हैं। लेकिन सामान्य व्यक्ति भी इसका अनुमान अवश्य लगा सकता है। आयुर्वेद हजारों वर्ष पहले का चिकित्सा शास्त्र है। यदि पुत्र प्राप्ति की दवा इतनी सुलभ होती, तो अब तक जनसंख्या का संतुलन किस प्रकार का होता, यह अनुमान लगाया जा सकता है।
सच्चाई यह है कि इस दवा का अस्तित्व हजारों वर्ष से है, फिर भी केवल पुत्र प्राप्ति हेतु इसका उपयोग नहीं हुआ। सन्तान के अर्थ में इसका नामकरण हुआ। इतना अवश्य है कि आज संस्कृत या आयुर्वेद का ज्ञान उतना प्रचलित नहीं है। ऐसे में रामदेव दवा के नामकरण को स्पष्ट कर देते, तो उनके विरोधियों को इस प्रकार का मौका नहीं मिलता।
जनसामान्य में भी भ्रम की स्थिति नहीं बनती। रामदेव जानते हैं कि जब से उन्होंने योग से बीमारी निवारण को लोकप्रिय बनाने का अभियान चलाया है, तब से अनेक बहुराष्ट्रीय कंपनियां उनकी बड़ी विरोधी हो गयी हैं। इसमें दवा कंपनियों के अलावा कोल्ड ड्रिंक्स व फास्टफूड बनाने वाली कंपनियां भी शामिल हैं। दवा कंपनी क्यों चाहेंगी उनकी बिक्री कम हो।
लोग आधा घंटा योग करेंगे, स्वस्थ रहेंगे तो उनकी बिक्री कम होगी। इसी प्रकार कोल्ड ड्रिंक्स की कोई कंपनी रामदेव को कैसे पसन्द कर सकती है, रामदेव सार्वजनिक रूप से नारा लगाते हैं- कोल्डड्रिंक्स मतलब टाॅयलेट क्लीनर। फास्ट फूड के बहिष्कार का भी वह आह्वान करते हैं।
कोल्ड ड्रिंक के बहिष्कार का भी वह आह्वान करते हैं। कोल्ड ड्रिंक की जगह वह छाछ तथा फास्ट फूड की जगह चना-चबैना खाने की सीख देते हैं। जाहिर है लोगों को स्वस्थ बनाने के अभियान में उन्होंने अपने बहुत ही शक्तिशाली विरोधी बना लिये हैं।
इसके अलावा जब से रामदेव ने भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान छेड़ा है, तब से अनेक लोग उन्हें अपना शत्रु मानने लगे हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में उन्होंने नरेन्द्र मोदी का समर्थन किया था। क्योंकि वह मानते थे कि मोदी को अपने लिए धन-दौलत नहीं चाहिए, तथा वह भ्रष्टाचार को बर्दास्त नहीं कर सकते। वह घोटालों को मौन रहकर देखते नहीं रह सकते। मोदी से राजनीतिक विरोध हो सकते हैं। लेकिन यह उनकी ईमानदारी प्रमाणित है। रामदेव का सोचना गलत नहीं था।
पिछले कुछ समय से रामदेव कह रहे हैं कि मोदी को काम करने का मौका मिलना चाहिए। जैसी अर्थव्यवस्था, कृषि, उद्योग आदि की दशा उन्हें विरासत में मिली है, उसे ठीक करने के लिए एक वर्ष पर्याप्त नहीं हैं ऐसे में उन्हें पर्याप्त समय मिलना चाहिए। इसके बाद भी जमीनी सुधार दिखाई ना दे, तो मोदी के विरोध का विकल्प खुला रहेगा। लेकिन क्या यह अन्याय नहीं कि मनमोहन सिंह को दस वर्ष मिले जबकि नरेन्द्र मोदी का मूल्यांकन 10 महीने में शुरू हो गया।
जाहिर है स्वामी रामदेव के इस बहुआयामी अभियान से जहां बहुराष्ट्रीय कंपनियों की नाराजगी बढ़ी, वहीं राजनीतिक हल्के में भी उनके विरोधी कम नहीं हैं। यही कारण था कि संप्रग शासन के दौरान अनेक एजेंसियां उन्हें फंसाने का जाल बिछाए बैठी थीं।
पतंजलि संस्थान की एक-एक दवा में मिलावट तलाशने का अभियान चलाया गया, लेकिन कुछ मिला नहीं। इससे रामदेव की दवाओं की विश्वसनीयता बढ़ गयी। लोगों ने सोचा कि जिसकी दवाओं की जांच के पीछे सरकार पड़ी हो, उसमें कुछ भी गलत वह तलाश नहीं सकी। ऐसे में उनकी दवाओं पर विश्वास किया जा सकता है।
यह विवरण देने का खास उद्देश्य था। जिस दवा की चर्चा 2007 में हो चुकी थी। सरकार उसकी जांच करा चुकी थी। दवा का निर्माण पूरी तरह आयुर्वेदिक पद्धति से हुआ था। सरकारी तथा मेडिकल के सभी नियमों का पालन किया गया था। उसमें उल्लेख था कि इसका सेवन निःसंतान स्त्री के लिए लाभप्रद हो सकता है।
2007 के उस मसले को आज उठाने की आवश्यकता क्या थी। जिस बात का समाधान हो चुका था, उसे आठ वर्ष बाद पुनः विवादित रूप में प्रदर्शित करने की आवश्यकता क्या थी। क्या यह उतना सीधा मसला है, जितना दिखाई देता है, या इसके पीछे कोई रहस्य है।
इसे उठाने का समय भी गौरतलब है। रामदेव की संस्था नेपाल के भूकम्प पीडि़तों की सेवा में लगी है। करीब एक लाख लोगों ने उनके शिविर में शरण ली। पांच हजार से अधिक अनाथ बच्चों की पूरी जिम्मेदारी उठाने का संकल्प उन्होंने लिया है। इसमें उनकी पढ़ाई-लिखाई ही नहीं जीविकोपार्जन और विवाह कराने तक की जिम्मेदारी उन्होंने उठाने की घोषणा की। क्या इसकी सराहना नहीं होनी चाहिए।
जब रामदेव इस कार्य में लगे थे तभी संसद में तीस रुपए वाली दवा का पैकेट लहराया जाता है, कहा जाता है कि रामदेव कन्या विरोधी हैं। इतना ही नहीं इस पैकेट को हरियाणा और केन्द्र की भाजपा सरकार से जोड़ा जाता है। प्रधानमंत्री के बेटी बचाओ बेटी बचाओ अभियान का उल्लेख किया जाता है।
आरोप इस प्रकार लगाया जा रहा था जैसे भाजपा सरकारों ने मात्र एक दवा के लिए रामदेव को ब्राण्ड एम्बेसडर बना दिया। आरोप बड़ी गभ्भीरता से लगाया गया। सपा की चर्चित पूर्व अभिनेत्री राज्यसभा सदस्य भी बालिका सुरक्षा का दम भरने लगी। सरकार के स्वास्थ्य मंत्री ने मामले की जांच कराने का आश्वासन दिया।
रामदेव ने सफाई दी तो आरोप लगाने वाले विशेषाधिकार की बात करने लगे। बेशक एक बार दवा की पुनः जांच हो जाए, लेकिन इस पर भी विचार होना चाहिए कि संस्कृत व आयुर्वेद के जानकारों से सलाह लिए बिना आरोप क्यों लगाया गया तथा इस मामले को नरेन्द्र मोदी और मनोहरलाल खट्टर से क्यों जोड़ा गया।
इसके अलावा आरोप लगाने से पहले क्या इस पर विचार नहीं होना चाहिए कि रामदेव के सामाजिक अभियान में नारी सशक्तीकरण की बात भी शामिल है। उन्होंने पुत्र-पुत्री के भेद के बिना सबके लिए योग सुलभ कराया है।
राजनीतिक सीमाओं के कारण किसी की सराहना भले ना करें, लेकिन ऐसे आरोप लगाने से बचना चाहिए जिससे हमारे प्राचीन ज्ञान पर ही विवाद शुरू हो जाए। रामदेव ने कोई नया आविष्कार नहीं किया, वह हजारों वर्ष की धरोहर को सर्वसुलभ बनाने का प्रयास कर रहे हैं।
डाॅ. दिलीप अग्हिोत्री