आज प्रकृति ने गजब की चाल खेली। रणनीति ओर कूटनीति का बादशाह सारा खेल भूल गया।उसके चोसर के मोहरे बने उसके साथी, उसका हाल देखकर भाग गए।
आखिर वो भी खिलाड़ी था इतनी आसानी से हार नही मान सकता था। वो अपने विरोधी की अगली चाल के इन्तजार मे था। उसने कूटनीति अपनाते हुए चिल्लाना शुरू कर दिया। उसके चिल्लाने से एकाएक सभी का ध्यान भंग हुआ।
मुख्य ध्येय की तरफ जाने का रास्ता वो सभी का रोकता इस से पहले ही वो खुद भी किसी के ईशारे पर सम्मोहित हो गया। उसकी बनाई योजना धराशायी हो गई। वो एक नारी शक्ति से हार गया ओर वो हारता भी क्यों नहीं, क्योंकि उसकी हार में ही उसका मकसद हल हो रहा था। वो पिटता रहा तो भी डटा रहा।
आसमान को भी शर्म आ गई उसका गुरूर सारा खत्म हो गया। आसमान सोचता रहा कि मुझे बनाने वाले को भी मै अपनी छांव तले बचा नहीं पा रहा हूं। वो चिखा चिल्लाया लेकिन प्रचण्ड हवाओं की रफ्तार से उसकी आवाज दब गई। उसकी धरती भी डोल रही थी। अग्नि से तेज तपता सूर्य भी बर्फ के अंगारे ऊगल रहा था। पानी बर्फ बन रूप परिवर्तन कर चुका था।
प्रकृति के पंच महाभूत आज प्रकृति के सामने ही आत्मसमर्पण कर खडे थे। कालबेला ने पंच महाभूतों के स्वामी जगदीश को भी आज जगत जननी राधा जी की चाल में फंसा दिया था।कान्हा राधा जी की चाल समझ नहीं पाए क्योंकि वे राधा जी के प्रेम पाश में जकड गए। राधा जी ने चालाकी से तिरछे नैण कर उनके पास आने का ईशारा किया।
कन्हैया उस समय सब कुछ भूल गए कि आज वे राधा जी ओर उनकी सखियों को रंगने आए हैं। उन्होंने राधा जी के इशारे पर सब सखाओं को को छोड़कर राधा जी के पास अकेले ही आ गए। कान्हा जैसे ही राधा जी के पास आए राधा जी की सखियों ने उन्हें हर तरफ से घेर लिया।
सारी सखियों ने कान्हा को पकड लिया ओर राधा ने खूब अच्छी तरह से लाल पीले रंगों से कान्हा को रगड दिया। काले कान्हा को राधा जी ने लाल रंग से रंग दिया। कान्हा बेबस हो गए।कान्हा के यह हाल देख उसके सखा सभी भाग गए।
जीवन मे कइ बार ऐसा होता है कि हम एक उदेश्य को पूरा करने के लिए जैसे ही आगे बढते हैं वैसे तो एक लोभरूपी बाधा हमें घेर लेती है और हम अपने उद्देश्य से भटक जाते हैं और नई परेशानी मे फंस जाते हैं। प्रेम करना ओर बुद्धिमान होना यह नदी के किनारे की तरह होते हैं। अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए एकाग्रचित हो कर काम मे लग जाने में ही कल्याण संभव है।