मुंबई। राहुल ढोलकिया के निर्देशन में बनी शाहरुख खान की रईस गुजरात के संगठित अपराधिक गिरोह पर है, जो इस राज्य में शराब पर पाबंदी के बाद भी साल में 25 हजार करोड़ का कारोबार करता है। जाहिर है कि इस अवैध कारोबार को पुलिस प्रशासन से लेकर राजनीतिक तंत्र तक का समर्थन मिलता है।
गुजरात के कच्छ इलाके में शराब के इसी अवैध कारोबार में एक बच्चे के शामिल होने और फिर उसके इस कारोबार में शिखर से लेकर पतन के सफर को लेकर कहानी का ताना बाना रचा गया है। फिल्म का कथासार कच्छ इलाके के एक छोटे से शहर में रईस (शाहरुख खान) अपनी मां के साथ रहता है। पिता की मौत हो चुकी है। मां किसी तरह से उसकी परवरिश कर रही है।
बचपन में ही रईस शराब तस्करी के कारोबार में घुस जाता है। पहले किसी गिरोह के लिए काम करने के बाद जब रईस अपना कारोबार शुरू करना चाहता है, तो दूसरे गिरोह उसके रास्ते की रुकावट बनते हैं। अपनी मंगेतर मोहसिना (माहिरा खान) और दोस्त सादिक (मोहम्मद जीशान अय्यूब) के साथ रईस उन रुकावटों को दूर करता है और राजनेताओं के साथ सैटिंग करके अपना धंधा जमा लेता है, लेकिन तेजतर्रार पुलिस अधिकारी मजूमदार (नवाजुद्दीन सिद्दकी) रईस के कारोबार के लिए बड़ी चुनौती साबित होता है।
इस चुनौती से निपटने के लिए रईस खुद राजनीति के मैदान में आता है। चुनाव लड़कर नेता बन जाता है, लेकिन मजूमदार की चुनौती कम नहीं होती। रईस के कारोबार को चौपट करने वाला मजूमदार आखिरकार रईस पर लगाम लगाने में कामयाब हो जाता है। पैसों की जरूरत में शराब के नाम पर बम विस्फोटकों की तस्करी रईस की जिंदगी की आखिरी और सबसे बड़ी भूल साबित होती है, जिसकी कीमत उसे जान देकर चुकानी पड़ती है।
रईस अपनी बीवी मोहसिना और बेटे को अकेला छोड़ पुलिस और राजनीति के बेरहम सिस्टम का शिकार होकर दुनिया से रुखसती करता है। रईस की कहानी का फॉरमेट 80 का दशक है, जब गुजरात में शराब पाबंदी के बाद भी महाराष्ट्र और आसपास के इलाकों से गुजरात में धड़ल्ले से अवैध शराब की तस्करी होती थी। पेट पालने की गरज से बचपन से क्राइम की दुनिया में आ जाने और बड़े होकर इस दुनिया में छा जाने वाले हीरोज की तमाम कहानियां बॉलीवुड में बन चुकी हैं।
ये कहानी काफी हद तक वंस अपॉन ए टाइम इन मुंबई (अजय देवगन, कंगना और इमरान हाश्मी) की याद भी दिलाती है। कहानी का स्ट्रक्चर काफी मिलता है। रईस जिस राजनैतिक सिस्टम से अपने दुश्मनों को निपटाकर कामयाबी पाता है, वही सिस्टम आगे जाकर उसकी जान का दुश्मन बन जाता है। राहुल ढोलकिया और उनके लेखकों की टीम ने फिल्म की धांसू शुरुआत की। बेहद तेज रफ्तार दिलचस्पी के साथ रईस का सफर तमाम मसालों के साथ आगे बढ़ता है।
इमोशन, एक्शन, रोमांस, आइटम सॉन्ग और डायलॉगबाजी का हर मसाला फिल्म के पहले हाफ को जबरदस्त पैसा वसूल बना देता है, लेकिन सेकेंड हाफ में फिल्म का सफर डगमगाने लगता है। जहां रईस राजनीति के चक्र में फंसता है, वहीं से फिल्म कमजोर होना शुरू हो जाती है। क्लाइमैक्स में तो और कोई चारा ही नहीं था, लेकिन क्लाइमैक्स में रईस का हीरोज्म खत्म हो जाता है और मजूमदार की तरफ शिफ्ट हो जाता है, जो कहीं से रईस का हीरो नहीं बन सकता।
फिल्म की पंच लाइन सॉलिड हैं। बनिए का दिमाग, मियां भाई की डेरिंग.. तालियां पिटवाता है, तो अम्मी कहती हैं कि कोई धंधा छोटा नहीं होता और धंधे से बड़ा धर्म नहीं होता.. सॉलिड रहे हैं, लेकिन इन सबमें आगे रहा है, बैटरी मत कहना.. जो हर बार तालियां बजवाता है। कलाकारों का अभिनय रईस के टाइटल रोल में शाहरुख खान की धमाकेदार वापसी हुई है।
सालों तक रोमांस की बयार बहाने के बाद शाहरुख खान इस फिल्म से कंप्लीट मसालेदार फिल्म के हीरो के तौर पर लौटे हैं और हर रंग में रंगे हुए नजर आते हैं। ये फिल्म उनके फैंस का दिल जीतने वाली है। रईस की भूमिका को शाहरुख ही निभा सकते थे। इस फिल्म से बॉलीवुड में कदम रखने वाली पाकिस्तानी अभिनेत्री माहिरा खान को बहुत ज्यादा कुछ नहीं था, लेकिन जो मिला, वो उन्होंने बढ़िया अंदाज में किया।
वे मोहसिना के रोल में अपना असर छोड़ने में कामयाब रही हैं। शाहरुख खान के बाद अगर कोई तालियां बंटोरता है, तो वे नवाजुद्दीन हैं, जिन्होंने मजूमदार के रोल में कमाल का काम किया है। उनकी मौजूदगी फिल्म के परदे को जीवंत कर देती है। आंखों से अभिनय और जोरदार संवादों ने नवाज की परफॉरमेंस को और जानदार बना दिया। रईस के दोस्त के रोल में जीशान एक बार फिर बहुत अच्छे रहे।
सहायक भूमिकाओं में अतुल कुलकर्णी, नरेंद्र झा, (शराब माफिया के बॉस) बेहतरीन रहे हैं। लैला मैं लैला.. में सनी लियोनी की अदाएं दर्शकों का दिल जीतने वाली हैं। निर्देशन राहुल ढोलकिया का निर्देशन पहले हाफ में जितना चुस्त रहा, दूसरे हाफ में नहीं रहा। दूसरे हाफ में वे समझ नहीं पाए कि रईस के किरदार का क्या करें।
बम विस्फोटों की तस्करी के केस में पुलिस एनकाउंटर के शिकार रईस का अंत उसके हीरोज्म को खत्म कर देता है। सेकेंड हाफ और क्लाइमैक्स में उनके निर्देशन को और बेहतर होना था। फिर भी पहले हाफ को शानदार बनाने का क्रेडिट भी राहुल ढोलकिया के निर्देशन को जाता है, जिन्होंने पहली बार शाहरुख खान के साथ काम किया है।
गीत-संगीत
रईस का गीत-संगीत ग्रेट नहीं है, लेकिन अच्छा कहा जा सकता है। लैला मैं लैला.. का क्रेज हो गया। जालिमां.. भी हिट हो गया। परदे पर दोनों गाने प्रभावशाली हैं। राम संपत ने बतौर संगीतकार मेहनत की है और उनकी मेहनत काफी हद तक सफल रही है। तकनीकी पहलू लोकेशन और सेट से लेकर तकनीकी स्तर पर फिल्म ए क्लास है। सिनेमैटोग्राफी, कोरियोग्राफी शानदार हैं।
दूसरे हाफ में एडीटिंग थोड़ी कमजोर है, लेकिन ज्यादा नहीं फिल्म की सबसे बड़ी खूबी- शाहरुख खान का स्टारडम, नवाजुद्दीन की अदायगी और जोरदार संवाद फिल्म की कमजोरी- पहले के मुकाबले कमजोर सेकेंड हाफ, कमजोर क्लाइमैक्स बॉक्स-ऑफिस फिल्म का बजट 100 करोड़ के आसपास है। ओपनिंग सॉलिड है। पांच दिन का वीकेंड है।
राकेश रोशन की काबिल से मुकाबला है, फिर भी रविवार तक फिल्म 100 करोड़ के क्लब में तो आ जाएगी। बाकी आगे रविवार के बाद तय होगा एक नजर में-रईस में शाहरुख खान के स्टारडम और परफॉरमेंस की रईसी है, जिससे दर्शक अभिभूत हो जाते हैं। तमाम मसालों से भरपूर रईस शाहरुख के स्टारडम को फिर से स्थापित करने का काम करने में सक्षम है। उनके फैंस के लिए ये किसी जैकपॉट से कम नहीं है।
रेटिंग 3 स्टार
मुख्य कलाकार- शाहरुख खान, माहिरा खान, नवाजुद्दीन सिद्दीकी, मोहम्मद जीशान अय्यूब, अतुल कुलकर्णी, नरेंद्र झा, जयदीप अलहावत, उत्कर्ष मजूमदार, प्रमोद पाठक, उदय टिकेकर और सनी लिओनी (लैला मैं लैला..)
बैनर- रेड चिल्ली एंटरटेनमेंट, एक्सेल एंटरटेनमेंट
निर्माता- गौरी खान, रितेश सिधवानी, फरहान अख्तर
निर्देशक- राहुल ढोलकिया
लेखक- राहुल ढोलकिया, हरित मेहता, आशीष वसी, नीरज शुक्ला
कैमरामैन- के यू मोहनन
एडीटर- दीपा मेहता
कास्ट्यूम डिजाइनर- शीतल शर्मा
एक्शन डायरेक्टर- रवि वर्मा
डांस डायरेक्टर- बौस्को, सीजर, राजीव सूरती, बिंद्रा, अर्श तन्ना
गीतकार- जावेद अख्तर, अमिताभ भट्टाचार्य
संगीतकार- राम संपत, आकाश कौशिक
गायक- अरिजीत सिंह, हर्षदीप कौर, भूमि त्रिवेदी, सुखविंदर सिंह, मिका सिंह, तरन्नुम मलिक, केके, रोशन राठौड़, राम संपत और पवनी पांडे (लैला मैं लैला..),