जयपुर। संघ परिवार की ओर से जयपुर के प्राचीन एवं ऐतिहासिक मंदिरों को हटाने के विरोध में 9 जुलाई को दो घंटे तक चक्का जाम किया जाएगा। भाजपा की ओर से आंदोलन को टालने की तमाम कोशिशें नाकाम रही है।
संघर्ष समिति का कहना है कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जो शपथ पत्र दिया है उसमें 58 हजार मंदिर हटाना प्रस्तावित है। आंदोलन को लेकर कांग्रेस के तल्ख तेवर देखने को मिल रहे हैं।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट ने कहा है कि मंदिर टूटने के बाद जो आंदोलन हो रहा है, वह बहुत बड़ा धब्बा है। संघ परिवार और भाजपा घडि़याली आंसू बहाकर जनता को बहकाना चाहते हैं।
वहीं पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि मंदिर टूटने की कार्रवाई हमारी सरकार में होती तो ये लोग दंगे भड़का देते। उधर, इस मामले में भाजपा की ओर से कोई भी नेता प्रतिक्रिया देने के लिए तैयार नहीं है।
मंदिर बचाओं संघर्ष समिति के संयोजक बद्रीनारायण चौधरी ने कहा कि हिन्दू समाज और अनेक सामाजिक संगठन शुरू से ही मंदिरों को हटाने का विरोध कर रहे हैं। लेकिन सरकार की ओर से इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया।
मजबूरन समाज को सड़कों पर उतरना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार ने जो सुप्रीम कोर्ट में जो शपथ पत्र दिया है उसमें 58 हजार धार्मिक स्थलों को हटाया जाना प्रस्तावित है।
संघ परिवार ने चक्का जाम की सभी तैयारियों को अंतिम रूप दे दिया है। हिन्दू जागरण मंच के बैनर तले शहर के प्रमुख चौराहों पर सुबह 9 से 11 बजे तक चक्का जाम होगा। आंदोलन को व्यापक जनसमर्थन मिल रहा है। शहर के प्रमुख जातिय संगठनों, व्यापार मंडलों साथ ही कई सामाजिक एवं धार्मिक संगठनों ने चक्का जाम का खुलकर समर्थन किया है।
मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने छोड़ी राजधानी
प्रस्तावित चक्का जाम से एक दिन पहले ही मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे मध्यप्रदेश के दतिया जिले में अपनी कुलदेवी के दर्शन के लिए रवाना हो गई है। राजे वहां प्रसिद्ध शक्तिपीठ पीतांबरा मंदिर मेें मां बगुलादेवी की पूजा अर्चना करेंगी। दतिया यात्रा के बाद मुख्यमंत्री का धौलपुर रूकने का कार्यक्रम बताया जा रहा है। वहीं भाजपा शहर सांसद रामचरण बोहरा भी जयपुर से बाहर चले गए हैं, वे अब 13 जुलाई को जयपुर पहुंचेंगे।
सरकार और कोर्ट के आदेश के इतर भी हटाए मंदिर
संघ परिवार की ओर से आंदोलन का ऐलान करने के साथ ही जब प्राचीन मंदिरों को हटाने के बारे में पड़ताल की गई तो कई चौंकाने वाली जानकारियां सामने आई। दरअसल 30 मंदिर तो ऐसे हटा दिए गए जिनके बारे में न तो कोर्ट ने कहा था और न ही सरकार ने लिखित आदेश दिया था।
सरकार में पदस्थ उच्च अधिकारियों के मौखिक आदेश से ही यह मंदिर हटाए गए। खुद नगरीय विकास मंत्री राजपाल सिंह शेखावत ने जब अधिकारियों से हटाए गए मंदिरों की सूची मांगी तो इनमें तीस मंदिर ऐसे थे जिनके लिए न तो कोर्ट ने कहा और न ही सरकार ने आदेश दिया। अब सवाल उठता है आखिर अधिकारियों ने अपने स्तर पर ही मंदिरों को हटाने का फैसला कैसे कर लिया।
मुख्यमंत्री के सबसे करीबी अधिकारी ही कर रहे थे खेल
सूत्रों के मुताबिक जिन अधिकारियों ने मंदिरों को हटाने की कार्रवाई को अंजाम दिया है, वे मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के काफी करीबी माने जाते हैं। राजधानी को वर्ल्ड क्लास सिटी का दर्जा दिलाने के लिए खुद मुख्यमंत्री की पसंद पर इन्हें राजधानी में तैनात किया गया है।
इनमें जयपुर विकास प्राधिकरण के आयुक्त शिखर अग्रवाल, कलेक्टर कृष्ण कुणाल के नाम शामिल है। इतना ही नहीं ये अधिकारी मुख्यमंत्री कार्यालय से एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी के निर्देश पर पूरी कार्रवाई को अंजाम दे रहे थे। मुख्यमंत्री के सचिव को सारे अभियान की पल-पल की जानकारी दी जा रही थी।