![जाट आरक्षण पर 16 साल बाद आया हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला जाट आरक्षण पर 16 साल बाद आया हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला](https://www.sabguru.com/wp-content/uploads/2015/08/hcjaipur.jpg)
![rajasthan High Court judgment on jat reservation in OBC category](https://www.sabguru.com/wp-content/uploads/2015/08/hcjaipur.jpg)
जयपुर। जाटों को ओबीसी कोटे के तहत दिए जा रहे आरक्षण पर 16 साल बाद राजस्थान हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला सोमवार को आया।
एडवोकेट सुनील जैन के अनुसार जाटों को साल 1999 से दिए जा रहे आरक्षण के खिलाफ याचिका पर सुनवाई होने के बाद अपने फैसले में मुख्य न्यायाधीश सुनील अंबवानी व अजीत सिंह ने जाट आरक्षण से जुड़े मामले में अहम फैसला सुनाते हुए धौलपुर और भरतपुर के जाटों का आरक्षण रद्द कर दिया हैं साथ ही ओबीसी कमीशन को अगले 4 माह में मामले में रिव्यू करने की बात कहीं हैं।
राजस्थान हाईकोर्ट ने 9 जुलाई को मामले में सुनवाई पूरी कर निर्णय सुरक्षित रख लिया था। साल 2001 से धौलपुर और भरतपुर के जाटों को दिया जा रहा आरक्षण का लाभ निरस्त करने और शेष राजस्थान में जाटों को आरक्षण बनाए रखते हुए सरकार को निर्देशित किया है कि वह एक स्थायी कमिशन का गठन करे। यह कमिशन आर्थिक व सामाजिक सर्वे कर यह तय करे कि जाट वर्ग को आरक्षण की जरूरत है अथवा नहीं।
![rajasthan High Court judgment on jat reservation in OBC category](https://www.sabguru.com/wp-content/uploads/2015/08/hig.jpg)
गौरतलब है कि सुप्रीमकोर्ट ने भी 15 मार्च 2015 को रामसिंह बनाम भारत सरकार के मामले में भी राजस्थान के अलावा अन्य नौ राज्यों की सेंट्रल की ओबीसी लिस्ट में शामिल जाटों को आरक्षण का निरस्त कर दिया था।
मालूम हो कि 27 अक्टूबर 1999 में केन्द्र सरकार ने जाटों को आरक्षण संबंधी नोटिफिकेशन जारी किया था। इसके बाद राजस्थान में भी 3 नवम्बर 1999 को जाटों को ओबीसी सूची में शामिल कर आरक्षण का लाभ दिए जाने बाबत नोटिफिकेशन जारी कर दिया गया। भरतपुर व धौलपुर के जाटों के लिए 2001 में अलग से नोटिफिकेशन जारी कर ओबीसी आरक्षण के तहत लाभ दिया जाने लगा।
एनसीबीसी की रिपोर्ट के आधार पर 3 नवम्बर 1999 को जाटों को राज्य में आरक्षण दिया गया था। लेकिन उसके बाद जाट आरक्षण मामले में याचिका दायर होने के बाद हाईकोर्ट को सुनवाई पूरी करने में 16 वर्ष लगे. 16 वर्ष पूर्व हाईकोर्ट में जाटों को ओबीसी में आरक्षण देने के खिलाफ रतन बागड़ी व अन्य आठ लोगों ने याचिका दायर की थी। इसमें पांच याचिकाऐं वर्ष 1999 में और एक याचिका वर्ष 2000 में दायर हुई।. बाकी याचिकाऐं इसके बाद दायर हुई।
याचिका में कहा गया कि आरक्षण सम्पन्नता के लिए नहीं उत्थान के लिए होता है. जाटों का पिछड़ापन अध्ययन द्वारा सामने आ सकता है लेकिन इस पर कभी भी सही अध्ययन नहीं हुआ. नौकरी व चुनाव के लिए एक सूची है मौजूदा सांसद व विधायाकों की संख्या के आधार पर जाटों को पिछड़ा नहीं माना जा सकता।
मामले की बीते 16 साल तक चली सुनवाई चलती रही। मई और जुलाई माह में इस मामले की निरन्तर सुनवाई चली और कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। गुर्जरों की तरफ से इस मामले में पैरवी एडवोकेट शैलेन्द्र सिंह व सुनील जैन ने की।
ओबीसी कमीशन की राय होगी अहम
हाईकोर्ट में 9 जुलाई को सुनवाई पूरी होने से पहले 6 जुलाई को हुई सुनवाई में हाईकोर्ट ने प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग में जाट समाज को आरक्षण मुददे को लेकर ओबीसी आयोग की स्थिति के बारे में पूछताछ की। कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा कि मामले को यदि आयोग को भेज दिया जाऐ तो इस पर उसकी क्या मंशा होगी।
हाईकोर्ट ने सुप्रीमकोर्ट के निर्णय की चर्चा की इस पर जाट समाज की ओर से हाईकोर्ट में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट ने अन्य राज्यों के संबंध में भी निर्णय दिया है। लेकिन उन राज्यों में आरक्षण यथावत है। हाईकार्ट में विधायक नवीन पिलानिया की ओर से जाट आरक्षण के पक्ष में कहा गया कि राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की वर्ष 2014 की रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट द्वारा मान लिय गया है। ऐसे में राष्ट्रीय आयोग की वर्ष 1997 की रिपोर्ट अब गौण हो गई है।
राष्ट्रीय आयोग की रिपोर्ट पर केन्द्र सरकार की सेवाओं में भरतपुर और धौलपुर को छोड़कर अन्य जिले में जाट समाज के लोगों को आरक्षण का लाभ मिलेगा। हाईकोर्ट में जाट समाज की ओर से कहा गया कि हाईकोर्ट को मामला सुनने का अधिकार नहीं है। क्योंकि पिछड़ा वर्ग आयोग को अध्ययन के लिए अपने मानक तय करने का अधिकार है उसमें हाईकोर्ट दखल नहीं कर सकता।