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मजबूत पैरवी के अभाव में छिना भरतपुर और धौलपुर के जाटों का आरक्षण : डूडी - Sabguru News
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मजबूत पैरवी के अभाव में छिना भरतपुर और धौलपुर के जाटों का आरक्षण : डूडी

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मजबूत पैरवी के अभाव में छिना भरतपुर और धौलपुर के जाटों का आरक्षण : डूडी
rajasthan high court quashes jat quota in bharatpur and dholpur districts
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जयपुर। राजस्थान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी ने कहा है कि कांग्रेस ने भरतपुर और धौलपुर जिलों के जाटों को आरक्षण दिलाया था लेकिन इनका आरक्षण छिनने के लिए प्रदेश की मौजूदा सरकार सीधे तौर पर जिम्मेदार है।

यदि राज्य सरकार ने भरतपुर और धौलपुर जिलों के जाटों को मिले हुए आरक्षण का हाईकोर्ट में मजबूती से पक्ष रखा होता तो आज यह स्थिति नहीं आती। लेकिन इन दोनों जिलों के जाटों की वस्तुस्थिति को सही ढ़ंग से प्रस्तुत नहीं किया गया। जिससे इनके साथ अन्याय हो गया।
नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी ने कहा कि भरतपुर और धौलपुर के जाटों को ओबीसी वर्ग में आरक्षण का उतना ही अधिकार है जितना प्रदेश के दूसरे जिले के जाटों व अन्य आरक्षित जातियों को है। उन्होंने कहा कि यह राजनीतिक मुद्दा नहीं है बल्कि यह इन दोनों जिलों के जाट समाज के सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक उत्थान का प्रश्न है।

डूडी ने कहा कि भरतपुर और धौलपुर में जाटों की रियासत अवश्य रही है लेकिन यहां किसानों के सशक्त आंदोलन से उपजी चेतना की पृष्ठभूमि में रियासतों का उद्भव हुआ था। किसानों के संघर्ष, स्वाभिमान और स्वातंत्र्य चेतना से उपजा आंदोलन इन दोनों जाट रियासतों का प्राणतत्व रही है।

इन दोनों जिलों का सामान्य जाट मेहनतकश ग्रामीण किसान रहा है तथा उसकी समस्याएं और चुनौतियां उसी तरह की हैं जो कि प्रदेश के इन जिलों के जाटों व आरक्षित वर्ग की है। इसलिए कांग्रेस शासन में इन दोनों जिलों के जाटों को आरक्षण में सम्मिलित किया गया था।
रामेश्वर डूडी ने कहा कि भरतपुर और धौलपुर जिले की सामाजिक एवं आर्थिक पृष्ठभूमि पर भी गौर करने की जरूरत है। इन जिलों में सिंचाई और पेयजल की व्यापक समस्या है। इन जिलों में जमीन की पैमाइश का बीघा सिर्फ १९०० गज का है जबकि प्रदेश के अन्य जिलों में यह बीघा ३०२५ गज का होता है।

इन दोनों जिलों में बड़े जमींदार कहे जाने वाले किसानों के पास भी सामान्यतया एक सौ बीघा जमीन नहीं है और इनकी एक सौ बीघा कहलाने वाली जमीन वस्तुत साठ बीघा की ही होती है। इन जिलों के अधिकांश जाट जो कि गांवों में रहते हैं तथा पशुपालन और खेती पर पूरी तरह निर्भर हैं उनके पास खेती के लिए औसतन डेढ़ बीघा (2750 गज)भूमि भी नहीं है।

इन जिलों में सिंचाई के संसाधन नहीं है और उपलब्ध भूमिगत जल बहुत गहराई पर है तथा यहां के लोग खारे पानी के संकट से भी जूझ रहे हैं। इन जिलों में दो-तिहाई हिस्से में सिंचाई की माकूल व्यवस्था नहीं होने से खेती के हालात औसत से भी खराब हैं।

रामेश्वर डूडी ने कहा कि भरतपुर और धौलपुर जिलों का विकास उस तरह नहीं हो सका है जैसे प्रदेश के दूसरे जिलों का हुआ है। इन जिलों में औद्योगिक प्रगति नहीं हो सकी है। भरतपुर जिले की आबादी के घनत्व के अनुरूप यहां भूमि का क्षेत्रफल अत्यंत कम है।

इन सभी आधारों के अनुसार इन दोनों जिलों के जाट भी अन्य पिछड़ा वर्ग में आरक्षण के पूर्णतया हकदार हैं। लेकिन मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे इन जिलों के जाटों का पक्ष हाईकोर्ट में सही तरीके से रखवाने में असफल रही हैं और इन जिलों के लोगों के साथ हुए अन्याय के लिए मुख्यमंत्री पूरी तरह जिम्मेदार हैं।

नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि इन दोनों जिलों के जाटों के पक्ष को भी अन्य पिछड़ा वर्ग के रिव्यू के लिए बनने वाले आयोग में सुना जाना चाहिए और राज्य सरकार को इन दोनों जिलों के जाटों को भी पुन: आरक्षण दिलाने के लिए न्यायपालिका सहित सभी उपयुक्त मंचों पर पहल करनी चाहिए।

डूडी ने कहा कि यदि राज्य सरकार इस मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट में प्रभावी ढ़ंग से नहीं उठायेगी तो वे विभिन्न जन संगठनों को साथ लेकर इसे सभी उपयुक्त मंचों पर पूरी मजबूती से उठायेंगे।