सबगुरु न्यूज-जयपुर। राजस्थान विधानसभा चुनाव 2013 में भाजपा के चुनाव प्रचार याद होगा। तब मुख्यमंत्री एक रथ लेकर राज्यभर में निकली थी। यात्रा का नाम था सुराज संकल्प यात्रा। क्या था ये सुराज, कौनसा सुराज लाना था, आखिर कहां अटक गया मुख्यमंत्री का ये सुराज, क्या सुराज की किरपा कहीं अटकी हुई है जो अब तक राजस्थान की जनता तक पहुंच नहीं पाई।
अब चूंकि ये यात्रा और ये अभियान खुद वसुंधरा राजे लेकर निकली थी तो ये सोचना तो बिल्कुल बेमानी होगा कि यह कैम्पेन किसी और ने उन पर थोपा होगा। तो फिर उनका सुराज उन्होंने परिभाषित भी किया हुआ होगा। उनके लिए सुराज की परिभाषा जो भी हो, लेकिन जनता ने उन्हें जिस सुराज के लिए वोट दिया उसके लिए उन्हें ऐसा कुछ नहीं करना था, जिसमें ढाई साल लग जाए।
राजस्थान की आम जनता जो सुराज चाहती है, वो बहुत ही आसानी से उसे एक दिन में दिया जा सकता है। वो सुराज है कि किसी नगर पालिका या पंचायत में उसे अपने जन्म, मृत्यु, मकान के नक्शे, नामांतरण के लिए रिश्वत नहीं देनी पडे।
वो सुराज इसमें है कि उसे किसी पंचायत में दी गई एक दिन में हल होने वाली समस्या के निराकरण में प्रसूति काल जितना समय नहीं लगे। वो सुराज इस बात में है कि उसे राजस्व विभाग में अपनी खेत का म्यूटेशन करवाने के लिए अपनी चप्पलें नहीं घिसनी पडे।
दिनचर्या में आसानी से होने वाले काम को वो नियत समय में पूरा चाहता है। इससे ज्यादा सुराज का मतलब एक आम राजस्थानी का नहीं है। इसके लिए न तो राजकोष में खजाना भरा होने की जरूरत है, न ही स्टार्ट अप और फाॅरेन इंवेस्टर्स को आमंत्रित करने के लिए करोडों रुपये खर्च करके रिसर्जेंट राजस्थान आयोजित करने की जरूरत है। जरूरत है तो सिर्फ इच्छाशक्ति की।
लोक सेवाओं की गारंटी और सेवा समय पर नहीं देने वाले की जवाबदेही निर्धारित करने की। यूं पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत लोक सेवा गारंटी अधिनियम देकर गए थे, लेकिन राजे सरकार ने मनरेगा के साथ इसकी भी हत्या कर दी और जवाबदेही तो वह किसी की निर्धारित करने की इच्छुक ही नहीं है।
यही कारण है कि जिला कलक्टर तक यह मानने लगे हैं कि वर्तमान सरकार सिर्फ उनकी सीआर खराब करने में लगी है। जयपुर में उनकी भी सुनवाई नहीं है। यदि भाजपा को वाकई सुराज लाना है तो उसे पब्लिक डिलीवरी सिस्टम राशन की दुकानों की बजाय सरकारी कार्यालयों में सुधारनी होगी, तभी राजस्थान सरकार का या यूं कहें मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का सुराज का संकल्प पूरा होगा।
वर्ना योजनाएं तो पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी बहुत गिनवाई थी, लेकिन सरकारी कार्मिकों ने उनके कार्यकाल में भी पब्लिक वर्क की डिलीवरी में जो भ्रष्टाचार करके जनता के साथ व्याभिचार किया उसका प्रतिकार जनता ने 2013 में लिया और यही हाल रहा तो भाजपा से 2018 में ले लेंगे। क्योंकि भाजपा यह भूल जाए कि आगामी चुनाव उसे 2013 और 2014 की तरह फलोटिंग वोटों से नहीं बल्कि अपने ही कार्यकर्ताओं के वोटों के दम पर जीतना है।
ढाई साल में राजस्थान में भाजपा के कार्यकर्ताओं की जो दुर्गत राजे सरकार ने की है वह 33 जिलों में किसी से छिपी नहीं है। हालात यह हैं कि घिसी पिटी योजनाओं के अलावा समाज के अधिसंख्य लोगों को राहत देने वाली कोई उपलब्धि जनता को बताने के लिए भाजपा के पास नहीं है।
क्योंकि यह तय है कि एनएसजी में जगह मिलने से राजस्थान के अंतिम छोर पर अपने काम करवाने के छटपटा रहे आम आदमी का काम नहीं होगा। उसके लिए लोक सेवा की गांरटी और जनता का काम तय समय में पूरा नहीं करने वाले कार्मिक और अधिकारी की जवाबदेही तय करना ही होगा। अन्यथा 2018 में जनता कांग्रेस की तरह भाजपा की जवाबदेही तय कर देगी।
खुद मुख्यमंत्री को यह समझना होगा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की बजाय राजस्थान वासियों को खुश करना होगा, संभवतः बाडाबंदी करके राज्यसभा चुनावों में अपने विधायकों को तो बगावत से रोेक लिया, लेकिन इस तरह से आम मतदाता को अगले चुनाव में रोकना असंभव होगा।
-परीक्षित मिश्रा