अजमेर। अजमेर में आयोजित श्रीराम नाम परिक्रमा महोत्सव के दौरान धर्म के साथ राष्ट्रभक्ति का संगम भी देखने को मिला। शाम के सत्र में आरएसएस के विभाग प्रचारक धर्मराज ने उपस्थित जन के बीच अपने उदबोधन में कहा कि किसी देश की पहचान उसकी सभ्यता, दर्शन और संस्कृति से होती है।
उन्होंने कहा कि हर देश की सभ्यता में बदलाव होता रहता है लेकिन संस्कृति और दर्शन हमेशा मूल रूप में विद्यमान रहते हैं। भारत की पावन धरा को कई बार विदेशी आक्रांताओं की कुदृष्टि का भाजन बनना पडा है। उन्होंने इसकी संस्कृति को तोडने के लिए के भरसक प्रयास किए। लेकिन इस धरती ने उनको अपने में समाहित कर लिया।
संतों की जगाई अलख और आध्यात्मिक जोत के चलते संस्कृति बनी रही। लेेकिन अंग्रेजों ने इस देश पर आधिपत्य के बाद जो तरीका अपनाया उससे हमारी संस्कृति पर भी आक्रमण का कुप्रयास हुआ। वे कुछ हद तक सफल भी रहे। हमारी शिक्षा पद्धति को बदला गया।
हम आजाद भले हो गए लेकिन अंग्रेज हमें मानसिक गुलामी की तरफ ढकेल गए, इसका प्रभाव यह है कि 1 जनवरी को नववर्ष मनाए जाने का चलन पड गया। जबकि सनातन संस्कृति में चेत्र शुक्ल प्रतिपदा को नया साल मनाया जाता रहा है।
अंग्रेजों द्वारा देश में जो मानसिक गुलामी के बीज बो दिए गए उससे मुक्ति के लिए संतगणों के प्रयास जारी है, बस इसमें एक आहूति हमें भी देनी है ऐसा संकल्प राम नाम की परिक्रमा कर जरूर करें।
जीते जी राम नाम जपों, लिखों : दिलखुशराम महाराज
इस अवसर पर राम नाम परिक्रमा के मौके पर रामस्नेही संप्रदाय एवं नांद गौशाला के संत दिलखुशराम महाराज ने उपस्थित भक्तों के बीच भगवान राम की महिमा का बखान करते हुए कहाकि स्वयं को जानने का मार्ग ही राम है। राम नाम के स्मरण मात्र से समस्त देवी देवताओं का वंदन हो जाता है। राम अदभुत शब्द है, यानी राम से बढकर राम का नाम है।
धरती, आकाश, पाताल और जीव जंतु सभी में राम विराजते हैं। महाराज ने भक्तों को सीख देते हुए कहा कि जीते जी राम नाम जपों, लिखों, इसे सुनों और सुनाओं। इससे बढकर राम को पाने का और कोई सरल मार्ग नहीं हो सकता। राम नाम जप लें तो जन्मों के पाप मिट जाएंगे।
मीरा, रैदास कबीर भक्ति में इतना लीन हो गए कि प्रभु के बिना उन्हें कुछ सूझता ही नहीं था। बस परमात्मा के द्वार पर जाते समय हद्य शुद्ध होना चाहिए। अपने भीतर के राम को जगा लेंगे तो भारत एक बार फिर विश्वगुरु के आसन पर विराजित हो जाएगा।
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