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फिल्म समीक्षा : फिल्म का नाम रंगून निकली बेरंगी - Sabguru News
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फिल्म समीक्षा : फिल्म का नाम रंगून निकली बेरंगी

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फिल्म समीक्षा : फिल्म का नाम रंगून निकली बेरंगी
Rangoon Movie Review : kangana ranaut, shahid kapoor's film is a royal misfire
Rangoon Movie Review : kangana ranaut, shahid kapoor's film is a royal misfire
Rangoon Movie Review : kangana ranaut, shahid kapoor’s film is a royal misfire

विशाल भारद्वाज हिंदी फिल्मों के उन महान फिल्मकारों में से हैं, जो सीधी बात कहने के लिए भी टेढ़ा रास्ता चुनने को फिल्मकारी मानते हैं और अपनी ही फिल्मों का सत्यानाश करके खुश हो जाते हैं। रंगून में भी विशाल भारद्वाज ने यही किया।

दूसरे विश्व युद्ध के बैकड्रॉप पर एक पीरियड फिल्म बनाना आसान नहीं था। इसके लिए बड़े बजट की जरूरत थी। विशाल को निर्माता साजिद नडियाडवाला ने सब कुछ मुहैया कराया। समय, पैसा और कलाकारों को लेकर कोई समस्या नहीं थी, न ही समस्या कहानी को लेकर थी।

समस्या खुद विशाल थे, जिनकी समझदारी फिल्म पर एक बार फिर बुरी तरह से हावी हो गई और फिल्म का पंचर हो गया। कहानी ब्रिटिश राज की भारतीय सेना से शुरू होती है, जो दूसरे विश्वयुद्ध में हिस्सा ले रही थी।

जमादार नवाब (शाहिद कपूर) उन लड़ाकों में था। कहानी का दूसरा छोर एक अभिनेत्री जूलिया (कंगना) का था, जो फिल्मों में अपनी स्टंटबाजी और डांस के लिए मशहूर रही। फिल्म कंपनी के प्रोड्यूसर मालिक बिलिमोरिया (सैफ अली खान) से उनका अफेयर था, जो पहले से शादीशुदा था।

बर्मा में लड़ रहे सैनिकों के मनोरंजन के लिए जूलिया को भेजा गया, तो उसकी हिफाजत की जिम्मेदारी जमादार नवाब को दी गई और बीच रास्ते में दोनों को एक दूसरे से प्रेम हो गया। यहां से मामला लव ट्रायंगल का बन गया, जिसमें जूलिया दो प्यार करने वालों के पाट में फंस गई और साथ ही एक शाही तलवार के साथ इस फिल्म को देशभक्ति के जज्बे से भी जोड़ दिया गया।

क्लाइमैक्स का जिक्र करना ठीक नहीं होगा। ये फिल्म विशाल भारद्वाज की नाकामयाबी का एक दस्तावेज है। उनके पास एक बेहतरीन फिल्म बनाने का मौका था, लेकिन ये मौका उन्होंने अपनी सोच के चलते गंवा दिया और अपने साथ कलाकारों की मेहनत भी ले डूबे।

किसी भी फिल्म की कामयाबी का आधार ये होता है कि किरदारों के साथ फिल्म देखने वाला दर्शक कैसे जुड़ पाता है। इस फिल्म में ऐसा नहीं हो पाता। लंबे-लंबे बोरिंग सीन फिल्म को पका डालते हैं और दर्शकों को बोरियत में बांध देते हैं।

कहानी ढीली और जब कहानी कहने वाला महाढीला हो, तो फिल्म का कचूमर बनना तय हो जाता है। जहां तक कलाकारों की परफॉरमेंस की बात है, तो जब किरदारों का आधार ही कमजोर हो, तो परफॉरमेंस पर भी असर होता है। फिर भी अपने-अपने किरदारों में कंगना, सैफ और शाहिद ने कोई कसर नहीं रखी। परदे पर उनकी मेहनत भी झलकती है।

कंगना ने एक बार फिर फिल्म को अपने में समाहित कर लिया। इस ट्रायंगल में किरदार और परफॉरमेंस में सैफ थोड़ा पीछे रह गए। इमोशनल सीनों में शाहिद फबते हैं, तो डांस और एक्शन के अलावा भावुकता में कंगना लाजवाब रही हैं। एक और जो किरदार याद रह जाता है, वो ब्रिटिश आर्मी का अफसर, जो हिंदी शायरी से मनोरंजन के पल जुटाता है।

निर्देशक के तौर पर विशाल पूरी तरह से फेल साबित हुए हैं। फिल्म का गीत-संगीत भी बहुत अच्छा नहीं रहा। कैमरावर्क, सेट और एक्शन सीन फिल्म के अच्छे पक्ष हैं। क्लाइमैक्स बेहूदा है। फिल्म का बजट बड़ा है। प्रमोशन भी बड़े स्तर पर हुआ। बड़े सितारों के चलते उम्मीदें भी सातवें आसमान पर हैं, लेकिन फिल्म देखकर मायूसी के अलावा कुछ नहीं रहता।

फिल्म का नाम रंगून है, लेकिन ये बेरंगी फिल्म है, जिसमें मनोजंरन के नाम पर जो कुछ भी है, वो कोफ्त, झुंझलाहट और मायूसी के अलावा कुछ नहीं रहने देता। ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर झटका साबित होगी।