जयपुर। राजस्थान में सत्तारुढ बीजेपी के भीतर चल रहा घमासान नासूर का रूप लेता जा रहा है। पार्टी विद द डिफरेंस का दम भरने वाली इस पार्टी की जो छिछलेदारी हो रही है उससे संगठन और सरकार दोनों की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह लग रहा है। वरिष्ठ नेता एवं विधायक घनश्याम तिवाडी ने मुख्यमंत्री के खिलाफ खुली जंग छेडी हुई है। वे विधानसभा के भीतर से लेकर बाहर भी मजबूत विपक्ष की भांति सरकार को घेरने में कोई कोर कसर नहीं छोड रहे।
अनुशासनहीनता का नोटिस मिलने के बाद घनश्याम तिवाडी नरम पडने की बजाय और भी मुखर हो गए साथ ही संगठन तथा आला नेताओं को खुद पर कार्रवाई की चुनौती दे डाली। वे किसी सूरत में मुख्यमंत्री के विरोध से पीछे हटने को तैयार नहीं दिखते। दीनदयान वाहिनी के बैनर तले जिस तरह वे राज्यभर में अपनी टीम तैयार करने में जुटे हैं उससे साफ है कि वे आगामी चुनाव में बीजेपी से इतर खम ठोंक सकते हैं।
बहरहाल बंगला नंबर 8 को लेकर मुख्यमंत्री राजे के खिलाफ उनकी मुहीम क्या करिश्मा दिखाती है यह वक्त ही तय करेगा। मुख्यमंत्री निवास की बजाय राजे का बंगला नंबर 13 में रहना एक बडा सवाल बनता जा रहा है। इसको लेकर तिवाडी ने राजे को 10 दिन का अल्टीमेटम दिया हुआ है कि वे इस दौरान बंगला नंबर 13 खाली करें और मुख्यमंत्री के अधिकारिक निवास में शिफ्ट हो, अन्यथा वे बडा आंदोलन करने को मजबूर होंगे।
हाल ही में मुख्यमंत्री के नाम तिवाडी द्वारा मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को लिखा गया खुला पत्र खूब सुर्खियां बटोर रहा है। पत्र का मूल सार इस प्रकार है।
माननीय मुख्यमंत्रीजी,
आशा है आप कुशल होंगी। इस पत्र के माध्यम से राजस्थान की जनता की भावनाएं आपके सामने प्रकट कर रहा हूं। आपसे अपेक्षा है कि इस पर गम्भीरता पूर्वक विचार कर आप प्रदेश हित में निर्णय लेंगी।
26 अप्रेल 2017 को GST के लिए बुलाए गए विधानसभा के विशेष सत्र के अन्तिम दिन सदन के सारे नियम और परम्पराओं को ताक पर रखकर आख़िरी क्षणों में जिस प्रकार अफरा-तफरी में “राजस्थान मंत्री वेतन (संशोधन) विधेयक 2017” पारित करवाया गया, वह जनहित में नहीं था।
इस बारे में मैंने विधानसभा में भी अपनी टिप्पणी दर्ज करवाई और सार्वजनिक रूप से भी कहा कि इस विधेयक के माध्यम से राजस्थान में जागीरदारी प्रथा तथा प्रिवी-पर्स की पुनर्स्थापना का काम हो रहा है — जो घोर अलोकतांत्रिक है।
बहुत ही चतुराई के साथ इस विधेयक का नाम आपने “राजस्थान मंत्री वेतन विधेयक” रख दिया जिससे ऐसा लगे कि यह विधेयक मंत्रियों के वेतन-भत्तों से सम्बंधित है। लेकिन इस विधेयक को लाने का आपका मूल लक्ष्य (1) सिविल लाइंस के बंगला नम्बर 13 पर आजन्म क़ब्ज़ा, (2) चुनाव हार जाने के बाद भी ख़ुद के लिए जीवन भर के लिए कैबिनेट मंत्री का दर्ज़ा क़ायम करना, तथा (3) अपनी सुख-सुविधा के लिए जनता की गाढ़ी कमाई में से जीवन भर के लिए लगभग एक करोड़ रुपए साल की सुविधाओं का इंतज़ाम करने का था।
आपका यह प्रयास राजस्थान में जागीरदारी प्रथा और प्रिवी-पर्स की पुनर्स्थापना का प्रयास है। राजस्थान की जनता इससे आक्रोशित है। राजस्थान की जनता ने इतने बहुमत से यह सरकार इसलिए नहीं बनाई कि आप इस बहुमत का निजी हितों के लिए मनमाना उपयोग करें। यही नहीं वर्तमान में आप एक साथ दो सरकारी बंगले काम में लेते हुए राजस्थान की जनता की गाढ़ी कमाई का मनमाना इस्तेमाल भी कर रहीं हैं।
गुरुवार, 8 जून को प्रेस वार्ता करके मैंने सरकार से यह माँग की थी कि या तो सिविल लाइंस बंगला नम्बर 13 को मुख्यमंत्री का आधिकारिक निवास घोषित किया जाए अथवा मुख्यमंत्री इसे ख़ाली कर 8 सिविल लाइंस के आधिकारिक निवास में जाएं। 8 सिविल लाइंस में मुख्यमंत्री के रूप में हीरालालजी शास्त्री, टीकारामजी पालीवाल, जयनारायणजी व्यास, मोहनलालजी सुखाड़िया, बरकतुल्लाजी खान, हरिदेवजी जोशी, जगन्नाथजी पहाड़िया, शिवचरणजी माथुर, तथा भैरोंसिंहजी शेखावत जैसे क़द्दावर जननेता रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत भी इस निवास में रहे।
आप स्वयं भी पिछली बार जब मुख्यमंत्री थीं, तब इसी निवास में रहीं। लेकिन इस बार आपने योजनाबद्ध रूप से 13 नम्बर में ही रहना जारी रखा, ताकि आपके ख़ाली किए जाने के बाद यह किसी और को आवंटित न हो जाए जिससे आप इसे बाद में ख़ाली न करवा सकें। इस तरह मुख्यमंत्री पद से हट जाने के बाद भी आपका इस बंगले पर आजन्म क़ब्ज़ा बना रहे यह आपकी योजना में प्रारम्भ से था।
लेकिन जब सुप्रीम कोर्ट नें यह निर्णय दे दिया की पूर्व मुख्यमंत्री दो माह से अधिक सरकारी बंगलों में नहीं रह सकते तो यह विधेयक लाकर चोर दरवाज़े से आपने सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की उपेक्षा कर दी। न्यायालय की भावना के ख़िलाफ़ राजस्थान विधानसभा में “राजस्थान मंत्री वेतन (संशोधन) विधेयक 2017” पारित करवा कर आपने देश की न्याय व्यवस्था को भी अप्रत्यक्ष रूप से चुनौती दी है।
राजस्थान की जनता की यह भावना है कि आपके द्वारा किया जा रहा उसकी सम्पदा का मनमाना दुरुपयोग बंद हो। इस मुद्दे को लेकर प्रदेश भर में आम व्यक्ति के मन में रोष है। लेकिन मुझे आश्चर्य है कि आप फिर भी मौन हैं। कहीं ये मौन इस बात का परिचायक तो नहीं कि आप या तो जनता की भावनाओं के प्रति बेपरवाह हैं या सरकार के बचे हुए कार्यकाल में आपका लक्ष्य ख़ुद और ख़ुद के परिवार के लिए केवल जीवन भर की सुख-सुविधा जुटाने का रह गया है?
जबसे मैंने राजस्थान की जनसंपदा की सुरक्षा की यह माँग प्रारम्भ की तबसे आपके मातहत मुझ पर दबाव बनाने के लिए लगातार हमला बोल रहे हैं। ऐसे लोगों पर तो मैं कानूनी कार्रवाई कर ही रहा हूँ। लेकिन आपको मैं इस बात की दाद देता हूं कि आपने उनको आगे करके अपने आप को सुरक्षित रख लिया। जिससे कभी कोई कानूनी नुक़सान हो भी तो उनका ही हो, आप ख़ुद बची रहें। यह आपके बारे में सर्वविदित है ही कि आप “यूज़ एंड थ्रो” में विश्वास रखतीं हैं।
इन लोगों के साथ भी काम निकल जाने के बाद यदि आपका यही व्यवहार रहे तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। आपको तो नित नए मोहरे सदैव मिल ही जाएंगे। इसलिए आपको इन लोगों की चिंता होगी भी नहीं, और करनी भी नहीं चाहिए। मुझे इस बात का भी पूरा विश्वास है कि इस पत्र के मिलने के बाद “तोता रटंत” के लिए फिर किसी मोहरे को आगे लाया ही जाएगा अथवा कोई षड्यंत्र रचा ही जाएगा।
मैंने प्रेस वार्ता में कहा था — अगर दस दिवस के भीतर सरकार इस बारे में निर्णय नहीं लेती है तो मैं “एकात्म सत्याग्रह” करूँगा। आपको इस पत्र के माध्यम से विदित करवा रहा हूं कि अभी भी समय है, आप प्रदेश की जनसंपदा पर से अपना क़ब्ज़ा छोड़ मुख्यमंत्री के आधिकारिक निवास 8 सिविल लाइंस में चलीं जाएं और राजस्थान की जनता की भावना का मान रखें। साथ ही मंत्री वेतन विधेयक में पूर्व-मुख्यमंत्रियों के लिए किए गए प्रावधानों को भी वापस लें, ताकि लोकतंत्र को वैधानिक लूटतंत्र बनने से बचाया जा सके।
आपके उत्तम स्वास्थ्य की कामनाओं सहित।
सधन्यवाद, आपका ही,
घनश्याम तिवाड़ी 18 जून 2017, जयपुर