रात्रि के अन्धकार का भेदन करती हुई जब सूर्य की किरण पूर्व दिशा से पृथ्वी पर पडती है तो वह सवेरा बनकर लोगों की दिनचर्या का शुभारंभ करती है। इसके साथ मानव मस्तिष्क में एक नई ऊर्जा का संचार होता है। सूर्य को जगत के जीवों की आत्मा तथा चन्द्रमा को जगत का मन माना गया है।
सूर्य स्वयं प्रकाशित है, जो जगत के सभी ग्रह और उपग्रह व समस्त ब्रह्मांड को अपने प्रकाश से प्रकाशित करता है। पृथ्वी पर सूर्य के प्रकाश की किरण सदा एक सी नहीं होती है। हर दिन हर माह सूर्य के प्रकाश की गति बदलती रहती है।
विशेष कर सूर्य जब ब्रह्मांड की 31 डिग्री में प्रवेश करता है तो वह वृषभ तारा राशि आकृति के सामने से गुजर अपनी धूप को भी अहसास करा देता है कि अभी वह अपनी प्रचंडता के यौवन पर है और धूप को भी अत्यधिक गर्म किरण, गर्मी लाकर पसीने निकाल देती हैं।
आकाश मण्डल की 31 से 90 डिग्री में चलकर सूर्य वृषभ और मिथुन राशि तक अत्यधिक ऊषण होकर जल स्रोतों को अपनी तीव्र गर्मी से सुखा देता है ओर बादलों का गर्भ ठहरा देता है। हवा से संघर्ष कर, यह बादल, अपना गर्भ मानसून के रूप में उठा कर बरसात करवा देता है।
यही सृष्टि के उत्पादन का सूत्र है यथा गर्मी, पानी का मिलन बादल तथा बादल और हवा का मिलन फिर नया पानी बन जाता है। आदिकाल से चली आ रही प्रकृति के सृष्टि सृजन की बारम्बारता की कहानी है।
ज्येष्ठ ओर आषाढ मास की यह सूर्य की गर्मी सूर्य की धूप को भी अत्यधिक गर्म बना उसके पसीने बहा देती है। जीवों के शरीर में विराजमान आत्मा भी स्वयं प्रकाशित होती है और उसी के प्रकाश से यह शरीर व मन प्रकाशित होते हैं।
मन जब एकाग्र चित होता है तो यह आत्मा शरीर को अत्यधिक प्रकाशित कर असाधारण ऊर्जा का संचार कर शरीर के कई आन्तरिक कार्यो को बढा कर नवीन शक्ति का निर्माण कर नये सृजन को अंजाम देती है। यही नया सृजन ज्ञान, कर्म और भक्ति के मार्ग खोलता है।
बस यहीं से कर्म के रूप में समर्पण तथा भक्ति के रूप में प्रेम व ज्ञान के रूप में एकाग्रता सक्रिय होकर नवीन सृष्टि सृजन का कार्य कर एकाग्रता से प्रेम मे समर्पित हो जाती है। बस यहीं प्रकृति व पुरूष का मिलन हो जाता है।
सौजन्य : भंवरलाल