भोपाल। उच्च न्यायालय की न्यायाधीश जस्टिस सुश्री वंदना कसरेकर की एकलपीठ ने पुलिस थानों की जमीनें जियो रिलायंस कंपनी को लगभग फोकट में दे देने के मामले की जांच तीन महीनों के भीतर करके हाईकोर्ट रजिस्ट्रार को सूचित करने के निर्देश दिए हैं।
इस गोलमाल से राज्य शासन के लगभग 1400 करोड़ रुपए के राजस्व की हानि होने की शिकायत एक जनहित याचिका के माध्यम से की गई थी। रिट याचिका क्रमांक डब्ल्यूपी 14637 । 2015 के तहत ये निर्देश 08 सितंबर को याचिका के निपटारे के दौरान दिए गए।
अधिवक्ता अमिताभ गुप्ता ने ये मामला माननीय अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया। माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष भोपाल के नागरिक आलोक सिंघई की ओर से दायर इस याचिका में कहा गया था कि पूर्व पुलिस महानिदेशक नंदन दुबे के निर्देश पर रिलायंस जियो कंपनी को ये जमीनें लगभग फोकट के भाव आबंटित कर दी गईं हैं।
सूचना के अधिकार अधिनियम के अधीन प्राप्त जानकारियों में ये खुलासा हुआ था। इन दस्तावेजों में जानकारी सामने आई कि ये जमीनें निजी कंपनी को बगैर किसी भुगतान के दी गईं हैं। कंपनी ने इन जमीनों को केवल अनापत्ति के आधार पर हड़प लिया। इस संबंध में कोई विधिवत करार नहीं किया गया है।
याचिकाकर्ता ने ये आरोप भी लगाया है कि तत्कालीन पुलिस महानिदेशक नंदन दुबे ने इन जमीनों के आबंटन के एवज में निजी लाभ भी प्राप्त किया था। जब उनके सामने ये तथ्य लाए गए तो उन्होंने चुप्पी साध ली ।
अधिकारियों की बैठक में दिए गए उनके निर्देशों के बाद ही पुलिस मुख्यालय ने दबाव डालकर पुलिस अधीक्षकों से जमीन आबंटन प्रक्रिया पूरी करवाई थी। मुख्यालय की ओर से लिखे गए पत्रों में सर्वोच्च प्राथमिकता लिखकर दबाव डाला गया। शिकायत कर्ता ने इस मामले की शिकायत सभी सक्षम अधिकारियों को की थी। इसपर जब लोकायुक्त की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की गई तो मामला उच्च न्यायालय पहुंचा।
याचिका कर्ता ने उच्च न्यायालय के निर्देश के बाद अपनी याचिका वापस ले ली थी कि वह इस मामले की विधिवत शिकायत लोकायुक्त के समक्ष करेगें। इस निर्देश के बाद विधिवत शपथ पत्र पर की गई शिकायत पर जब चार महीनों तक कोई कार्रवाई नहीं की गई तो एक बार फिर उच्च न्यायालय में ये प्रकरण दायर किया गया।
मामले की सुनवाई के दौरान लोकायुक्त के अधिवक्ता पंकज दुबे ने आश्वासन दिया कि याचिका कर्ता की शिकायत पर विधि अनुसार कार्रवाई की जाएगी। इस पर एकलपीठ ने लोकायुक्त को तीन माह में इस शिकायत पर कार्रवाई करने के निर्देश देते हुए याचिका का निराकरण कर दिया।