धूलभरी आंधियों ओर लू के प्रचण्ड थपेडों ने फूल को अपने यौवन पर आने से पहले ही जख्मी कर दिया ओर उसे जमीन पर पटक कर चरणों की धूल बना कर काल के गाल में डाल दिया।
बदनसीबी है उस फूल की जो अपने पूर्ण यौवन पर आने के बाद भी खिल नहीं पाया। रूप के सागर के ढलने पर दर्पण खुद को ही डराने लगते हैं। ऐसा लगता है कि आने वाला कल अन्धेरा बन कर सताने लगेगा।
ऐसी स्थिति में हे परमात्मा केवल मात्र तुम ही मेरा अन्तिम पडाव बनोगे लेकिन तब भी मेरे दिल की धड़कन तुम्हारे आगोश मे रहने के बाद भी तुम्हारी आवाज नहीं सुनकर खुद को बनाए रखने का एक नाकाम प्रयास करेगी।
इस सत्य को जानते हुए भी मैं ना जाने क्यो मिथ्या के गलियारे मे भटक रहा था, सामान सौ बरस का हो पास मेरे, इस लोभ में अटक रहा था। प्रकृति ये नजारे देख हंस रही थी फिर भी मेरे जीवन की बेटरी को बार बार रीचार्ज कर रही थी।
प्रकृति के हर मौके को मैं गफलत में ही गुजार रहा था फिर भी हे मेरे परमात्मा के सत्य के मार्ग पर नही आ पा रहा था।
क्या विधि ने मेरे भाग्य को ऐसा ही लिखा है या यह पूर्वजन्म के कर्मो का फल है। नहीं ये सब बाते मात्र आस्था ही हैं ओर इसी कारण मेरी तुम से लगातार दूरी मेरी बढती जा रही है।
सत्य को जानते हुए भी व्यक्ति अनावश्यक रूप से बलशाली बन कर प्रकृति को गौण मानकर अति अंहकारी बन अन्तिम समय तक भी परमात्मा के नाम का स्मरण नहीं करता तथा मृत्यु शय्या पर बेजान की तरह पडा रहता है।
इस कारण हमारे जीवन की परिपूर्णता का फूल खिल नहीं पाता ओर हम मिट्टी में मिलकर मिट्टी में ही विलीन हो जाते हैं।
एक समय की बात है कि एक व्यक्ति अंहकारी व मनमानी तरीके से रहता है। सत्य, परमात्मा व हकीकत को वह ठोकर मारता है। जब वह अत्यधिक बीमार था और मौत से मुंह मे पहुंच गया, लेकिन प्राण नहीं निकल पा रहे थे तब भी उसने राम का नाम नहीं लिया।
उसके चार लडकियां थीं, उनमें से एक के पति का नाम “राम नारायण” था। सबने योजना बना कर उस वृद्ध बीमार व्यक्ति के सामने “राम नारायण “को खड़ा करके पूछा बताओ ये कौन है।
वृद्ध बीमार व्यक्ति सबको देखता रहा ओर बोला मेरी पुत्री का पति है। फिर सब बोले इनका नाम क्या है तो उसे गुस्सा आया और बोला कि कह दिया ना की यह मेरी पुत्री का पति है अब यहा से चले जाओ।
आखिरी समय तक भी किसी भी तरीके से उसने “राम “का नाम नहीं लिया। इस दुनिया में सदियों से अंहकार जिन्दा है और वह जिन्दा ही रहेगा क्योंकि अंहकार के बिना कोई भी किसी भी प्रकार की सृष्टि का सृजन नहीं कर सकता है।
बस संदेश कथा में इस बात का है कि व्यक्ति को अति अंहकारी बन कर नहीं रहना चाहिए अन्यथा सभ्यता व संस्कृति का वो विनाशक ही साबित होगा।