मुंबई। भारतीय सिनेमा जगत में अनिल विश्वास को ऐसे संगीतकार के तौर पर याद किया जाता है जिन्होंने मुकेश, तलत महमूद समेत कई पार्श्वगायकों को कामयाबी के शिखर तक पहुंचाया।
मुकेश के रिश्तेदार मोतीलाल के कहने पर अनिल विश्वास ने मुकेश को अपनी एक फिल्म में गाने का अवसर दिया था लेकिन उन्हें मुकेश की आवाज पसंद नहीं आयी और बाद में उन्होंने मुकेश को वह गाना अपनी आवाज में गाकर दिखाया।
इस पर मुकेश ने अनिल विश्वास ने कहा कि दादा बताइये कि आपके जैसा गाना भला कौन गा सकता है यदि आप ही गाते रहेंगे तो भला हम जैसे लोगों को कैसे अवसर मिलेगा। मुकेश की इस बात ने अनिल विश्वास को सोचने के लिए मजबूर कर दिया और उन्हें रात भर नींद नही आई। अगले दिन उन्होंने अपनी फिल्म पहली नजर में मुकेश को बतौर पार्श्वगायक चुन लिया और निश्चय किया कि वह फिर कभी व्यावसायिक तौर पर पार्श्वगायन नहीं करेंगे।
अनिल विश्वास का जन्म 07 जुलाई 1914 को पूर्वी बंगाल के वारिसाल (अब बांग्लादेश) में हुआ था। बचपन से ही अनिल विश्वास का रूझान गीत संगीत की ओर था। महज 14 वर्ष की उम्र से ही उन्होंने संगीत समारोह में हिस्सा लेना शुरू कर दिया था जहां वह तबला बजाया करते थे।
वर्ष 1930 में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम अपने चरम पर था। देश को स्वतंत्र कराने के लिय छिड़ी मुहिम में अनिल विश्वास भी कूद पडे। इसके लिए उन्होंने अपनी कविताओं का सहारा लिया। कविताओं के माध्यम से अनिल विश्वास देशवासियों मे जागृति पैदा किया करते थे। इसके कारण उन्हें जेल भी जाना पड़ा।
वर्ष 1930 में अनिल विश्वास कलकत्ता के रंगमहल थियेटर से जुड़ गए जहां वह बतौर अभिनेता-पार्श्वगायक और सहायक संगीत निर्देशक काम करते थे। वर्ष 1932 से 1934 अनिल विश्वास थियेटर से जुड़े रहे। उन्होंने कई नाटको में अभिनय और पार्श्वगायन किया।
रंगमहल थियेटर के साथ ही अनिल विश्वास हिंदुस्तान रिकार्डिंग कंपनी से भी जुड़े। वर्ष 1935 में अपने सपनों को नया रूप देने के लिए वह कलकत्ता से मुंबई आ गए। वर्ष 1935 में प्रदर्शित फिल्म धरम की देवी से बतौर संगीत निर्देशक अनिल विश्वास ने अपने सिने कैरियर की शुरूआत की। साथ ही फिल्म में उन्होंने अभिनय भी किया।
वर्ष 1937 में महबूब खान निर्मित फिल्म जागीरदार अनिल विश्वास के सिने कैरियर की अहम फिल्म साबित हुई जिसकी सफलता के बाद बतौर संगीत निर्देशक वह फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गए। वर्ष 1942 में अनिल विश्वास बांबे टॉकीज से जुड़ गए और 2500 रूपए मासिक वेतन पर काम करने लगे।
वर्ष 1943 में अनिल विश्वास को बांबे टॉकीज निर्मित फिल्म किस्मत के लिए संगीत देने का मौका मिला। यूं तो फिल्म किस्मत में उनके संगीतबद्ध सभी गीत लोकप्रिय हुए लेकिन आज हिमालय की चोटी से फिर हमने ललकारा है दूर हटो ए दुनियां वालो हिंदुस्तान हमारा है.. के बोल वाले गीत ने आजादी के दीवानों में एक नया जोश भर दिया।
अपने गीतों को अनिल विश्वास ने गुलामी के खिलाफ आवाज बुलंद करने के हथियार के रूप में इस्तेमाल किया और उनके गीतों ने अंग्रेजों के विरूद्ध भारतीयों के संघर्ष को एक नर्ई दिशा दी। यह गीत इस कदर लोकप्रिय हुआ कि फिल्म की समाप्ति पर दर्शकों की फरमाईश पर इस सिनेमा हॉल में दुबारा सुनाया जाने लगा।
इसके साथ ही फिल्म किस्मत ने बॉक्स आफिस के सारे रिकार्ड तोड़ दिए। इस फिल्म ने कलकत्ता के एक सिनेमा हॉल में लगातार लगभग चार वर्ष तक चलने का रिकार्ड बनाया। वर्ष 1946 में अनिल विश्वास ने बांबे टॉकीज को अलविदा कह दिया और वह स्वतंत्र संगीतकार के तौर पर काम करने लगे।
स्वतंत्र संगीतकार के तौर पर अनिल विश्वास को सबसे पहले वर्ष 1947 में प्रदर्शित फिल्म भूख में संगीत देने का मौका मिला। रंगमहल थियेटर के बैनर तले बनी इस फिल्म में पार्श्वगायिका गीतादत्त की आवाज में संगीतबद्ध अनिल विश्वास का गीत आंखों में अश्क लब पे रहे हाय श्रोताओं में काफी लोकप्रिय हुआ।
वर्ष 1947 में ही अनिल विश्वास की एक और सुपरहिट फिल्म प्रदर्शित हुई थी नैय्या, जोहरा बाई की आवाज में अनिल विश्वास के संगीतबद्ध गीत सावन भादो नयन हमारे, आई मिलन की बहार रे ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
वर्ष 1948 में प्रदर्शित फिल्म अनोखा प्यार अनिल विश्वास के सिने कैरियर के साथ-साथ व्यक्तिगत जीवन में अहम फिल्म साबित हुई। फिल्म का संगीत तो हिट हुआ ही साथ ही फिल्म के निर्माण के दौरान उनका झुकाव भी पार्श्वगायिका मीना कपूर की ओर हो गया। बाद में अनिल विश्वास और मीना कपूर ने शादी कर ली।
साठ के दशक में अनिल विश्वास ने फिल्म इंडस्ट्री से लगभग किनारा कर लिया और मुंबई से दिल्ली आ गए। इस बीच उन्होंने सौतेला भाई, छोटी छोटी बाते जैसी फिल्मों को संगीतबद्ध किया। फिल्म छोटी छोटी बातें हालांकि बॉक्स ऑफिस पर कामयाब नहीं रही लेकिन इसका संगीत श्रोताओं को पसंद आया। इसके साथ ही फिल्म राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित की गई।
वर्ष 1963 में अनिल विश्वास दिल्ली प्रसार भारती में बतौर निदेशक काम करने लगे और वर्ष 1975 तक काम करते रहे। वर्ष 1986 में संगीत के क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय योगदान को देखते हुये उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। अपने संगीतबद्ध गीतों से लगभग तीन दशक तक श्रोताओं का दिल जीतने वाले यह महान संगीतकार 31 मई 2003 को इस दुनिया को अलविदा कह गए।