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remembering Lokmanya bal gangadhar tilak on his 160th birth anniversary
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हिन्दू राष्ट्रवाद के जनक थे बाल गंगाधर तिलक

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हिन्दू राष्ट्रवाद के जनक थे बाल गंगाधर तिलक
remembering Lokmanya bal gangadhar tilak on his 160th birth anniversary
remembering Lokmanya bal gangadhar tilak on his 160th birth anniversary
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रांची। बाल गंगाधर तिलक हिन्दुस्तान के एक प्रमुख नेता, समाज सुधारक और स्वतन्त्रता सेनानी थे। वह भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के पहले लोकप्रिय नेता थे। इन्होंने सबसे पहले ब्रिटिश राज के दौरान पूर्ण स्वराज की मांग उठाई।

इनका यह कथन कि स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा बहुत प्रसिद्ध हुआ। इन्हें आदर से लोकमान्य (पूरे संसार में सम्मानित) कहा जाता था। इन्हें हिन्दू राष्ट्रवाद का पिता भी कहा जाता है।

तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को ब्रिटिश भारत में वर्तमान महाराष्ट्र स्थित रत्नागिरी जिले के एक गांव चिखली में हुआ था। ये आधुनिक कॉलेज शिक्षा पाने वाली पहली भारतीय पीढ़ी में से एक थे। इन्होंने कुछ समय तक स्कूल और कॉलेजों में गणित पढ़ाया।

तिलक अंग्रेजी शिक्षा के घोर आलोचक थे और मानते थे कि यह भारतीय सभ्यता के प्रति अनादर सिखाती है। भारत में शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए इन्होंने दक्खन शिक्षा सोसायटी की स्थापना की। इसके अलावा तिलक ने मराठी में मराठा दर्पण और केसरी नाम से दो दैनिक समाचार पत्र शुरू किए जो जनता में बहुत लोकप्रिय हुए।

तिलक ने अंग्रेजी शासन की क्रूरता और उसकी भारतीय संस्कृति के प्रति हीन भावना की बहुत आलोचना की। इन्होंने मांग की कि ब्रिटिश सरकार तुरन्त भारतीयों को पूर्ण स्वराज दे। केसरी में छपने वाले उनके लेखों की वजह से उन्हें कई बार जेल भेजा गया।

तिलक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए लेकिन जल्द ही वे कांग्रेस के नरमपंथी रवैये के विरुद्ध बोलने लगे। 1907 में कांग्रेस गरम दल और नरम दल में विभाजित हो गई। गरम दल में तिलक के साथ लाला लाजपत राय और बिपिन चन्द्र पाल शामिल थे। इन तीनों को लाल-बाल-पाल के नाम से जाना जाने लगा।

1908 में तिलक ने क्रान्तिकारी प्रफुल्ल चाकी और खुदीराम बोस के बम हमले का समर्थन किया जिसकी वजह से उन्हें बर्मा (अब म्यांमार) स्थित मांडले की जेल भेज दिया गया। जेल से छूटकर वे फिर कांग्रेस में शामिल हो गए और 1916 में एनी बेसेंट और मुहम्मद अली जिन्ना के साथ अखिल भारतीय होम रूल लीग की स्थापना की।

तिलक ने भारतीय समाज में कई सुधार लाने के प्रयत्न किये। वे बाल विवाह के विरुद्ध थे। उन्होंने हिन्दी को सम्पूर्ण भारत की भाषा बनाने पर ज़ोर दिया। महाराष्ट्र में उन्होंने सार्वजनिक गणेशोत्सव की परम्परा प्रारम्भ की ताकि लोगों तक स्वराज का सन्देश पहुंचाने के लिए एक मंच उपलब्ध हो सके।

भारतीय संस्कृति, परम्परा और इतिहास पर लिखे उनके लेखों से भारत के लोगों में स्वाभिमान की भावना जागृत हुई। उनके निधन पर लगभग दो लाख लोगों ने उनकी अंत्येष्टि में हिस्सा लिया।

सन 1919 ई. में कांग्रेस की अमृतसर बैठक में हिस्सा लेने के लिए स्वदेश लौटने के समय तक तिलक इतने नरम हो गए थे कि उन्होंने मॉन्टेग्यू-चेम्सफ़ोर्ड सुधारों के ज़रिये स्थापित लेजिस्लेटिव कौंसिल (विधायी परिषद) के चुनाव के बहिष्कार की गांधी की नीति का विरोध ही नहीं किया।

इसके बजाय तिलक ने क्षेत्रीय सरकारों में कुछ हद तक भारतीयों की भागीदारी की शुरुआत करने वाले सुधारों को लागू करने के लिए प्रतिनिधियों को यह सलाह अवश्य दी कि वे उनके प्रत्युत्तरपूर्ण सहयोग की नीति का पालन करें। लेकिन नए सुधारों को निर्णायक दिशा देने से पहले ही 1 अगस्त, 1920 ई. को बम्बई में उनकी मृत्यु हो गई।

मरणोपरान्त श्रद्धांजलि देते हुए गांधी जी ने उन्हें आधुनिक भारत का निर्माता कहा और जवाहरलाल नेहरू ने भारतीय क्रान्ति का जनक बतलाया। स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा का नारे देने वाले हिन्दू राष्ट्रवाद के पितामह लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का 1 अगस्त,1920 ई. को मुंबई में देहान्त हुआ था।

तिलक ने यूं तो अनेक पुस्तकें लिखीं किन्तु श्रीमद्भगवद्गीता की व्याख्या को लेकर मांडले जेल में लिखी गयी गीता-रहस्य सर्वाेत्कृष्ट है जिसका कई भाषाओं में अनुवाद हुआ है। उन्होंने वेद काल का निर्णय, आर्यों का मूल निवास स्थान, श्रीमद्भागवतगीता रहस्य अथवा कर्मयोग शास्त्र, वेदों का काल-निर्णय और वेदांग ज्योतिष, हिन्दुत्व और श्यामजी कृष्ण वर्मा को लिखे तिलक के पत्र जैसी पुस्तकों की रचना की।