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remembering gulshan bawra on his death anniversary
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गुलशन बावरा : जिनकी कलम से शब्द नहीं भावनाएं बयां होती थीं

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गुलशन बावरा : जिनकी कलम से शब्द नहीं भावनाएं बयां होती थीं
remembering gulshan bawra on his death anniversary
gulshan bawra
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मुंबई। ‘मेरे देश की धरती, सोना उगले उगले हीरे मोती ‘ और ‘यारी है ईमान मेरा’ जैसी भावपूर्ण गीतों को कलमबद्ध करने वाले गुलशन बावरा को एक ऐसे गीतकार के तौर पर याद किया जाता है, जिनके लिखे गीत आज की युवा पीढ़ी के लिए भी अब भी प्रासंगिक बने हुए हैं।

हिन्दी भाषा और साहित्य के करिश्मायी व्यक्तित्व गुलशन कुमार मेहता उर्फ गुलशन बावरा का जन्म 12 अप्रैल 1937 को लाहौर शहर के निकट शेखपुरा मे हुआ था।

महज छह वर्ष की उम्र से ही गुलशन बावरा का रूझान कविता लिखने की ओर था। उनकी मां विद्यावती धार्मिक कार्यकलापों के साथ साथ संगीत में भी काफी रूचि रखती थी। गुलशन बावरा अक्सर मां के साथ भजन$-कीर्तन जैसे धार्मिक कार्यक्रमों में जाया करते थे।

देश के विभाजन के समय हुए सांप्रदायिक दंगों में उनके माता-पिता की पिता की हत्या उनकी नजरों के सामने ही हो गई। इसके बाद वह अपनी बड़ी बहन के पास दिल्ली आ गए। गुलशन बावरा ने अपनी स्नातक की पढ़ाई दिल्ली विश्वविद्यालय से पूरी की। कॉलेज की पढ़ाई के दौरान उनकी रूचि कविता लिखने में हो गई।

अपने परिवार की घिसी पिटी परंपरा को निभाते हुये गुलशन मेहता ने वर्ष 1955 में अपने कैरियर की शुरूआत मुंबई में एक लिपिक की नौकरी से की। उनका मानना था कि सरकारी नौकरी करने से उनका भविष्य सुरक्षित रहेगा। लिपिक की नौकरी उनके स्वभाव के अनुकूल नहीं थी।

गुलशन मेहता ने रेलवे में लिपिक की नौकरी छोड़ दी और अपना ध्यान फिल्म इंडस्ट्री की ओर लगाना शुरू कर दिया। फिल्म इंडस्ट्री में उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उन्होंने अपना संघर्ष जारी रखा और कई छोटे बजट की फिल्में भी कीं, जिनसे उन्हें कुछ खास फायदा नहीं हुआ।

इस बीच गुलशन की मुलाकात संगीतकार जोड़ी कल्याण जी- आनंद जी से हुई, जिनके संगीत निर्देशन में गुलशन मेहता ने फिल्म सट्टा-बाजार के लिए तुम्हें याद होगा कभी हम मिले थे गीत लिखा लेकिन इस फिल्म के जरिये वह कुछ खास पहचान नहीं बना पाए।

फिल्म सट्टा बाजार में उनके गीत को सुनकर फिल्म के वितरक शांतिभाई दबे काफी खुश हुए। उन्हें विश्वास नहीं हुआ कि इतनी छोटी सी उम्र में कोई व्यक्ति इस गीत को इतनी गहराई के साथ लिख सकता है।

शांति भाई ने गुलशन मेहता को बावरा कहकर संबोधित किया। इसके बाद से गुलशन मेहता गुलशन बावरा के रूप में फिल्म इंडस्ट्री में प्रसिद्ध हो गए। लगभग आठ वर्ष तक मायानगरी मुंबई में गुलशन बावरा ने अथक परिश्रम किया।

आखिरकार उनकी मेहनत रंग लाई और उन्हें कल्याण जी-आनंद जी के संगीत निर्देशन में निर्माता-निर्देशक मनोज कुमार की फिल्म उपकार में गीत लिखने का मौका मिला। मनोज कुमार ने गुलशन बावरा के साथ फिल्म इंडस्ट्री में संघर्ष किया था और दोनों में काफी घनिष्ठता थी।

मनोज कुमार ने गुलशन बावरा से गीत की कोई पंक्ति सुनाने के लिए कहा तब गुलशन बावरा ने मेरे देश की धरती सोना उगले गाकर सुनाया। गीत के बोल सुनने के बाद मनोज कुमार बहुत खुश हुये और उन्होंने गुलशन बावरा से फिल्म उपकार में गीत लिखने की पेशकश की।

फिल्म उपकार में अपने गीत मेरे देश की धरती सोना उगले की सफलता के बाद गुलशन बावरा ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। गुलशन बावरा को इसके बाद कई अच्छी फिल्मों के प्रस्ताव मिलने शुरू हो गए।

वर्ष 1969 में प्रदर्शित फिल्म विश्वास में कल्याण जी आनंद जी के हीं संगीत निर्देशन में गुलशन बावरा ने चांदी की दीवार ना तोड़ी जैसे भावपूर्ण गीत की रचना कर अपना अलग ही समां बांधा। इसके बाद गुलशन बावरा ने सफलता की नई बुलंदियों को छुआ और एक से बढ़कर एक गीत लिखे।

बहुमुखी प्रतिभा के धनी गुलशन बावरा ने कई फिल्मों में अभिनय भी किया है। इन फिल्मों मे उपकार, विश्वास ,पवित्र पापी, बेइमान, जंजीर, अगर तुम ना होते, बीवी हो तो ऐसी, इंद्रजीत आदि प्रमुख हैं। इसके अलावा गुलशन बावरा ने पुकार, सत्ते पे सत्ता में पार्श्वगायन भी किया।

गुलशन बावरा को दो बार फिल्म फेयर के सर्वश्रेष्ठ गीतकार से नवाजा गया। इनमें वर्ष 1967 में प्रदर्शित फिल्म उपकार का गीत मेरे देश की धरती सोना उगले वर्ष 1973 में प्रदर्शित फिल्म जंजीर का गीत यारी है ईमान मेरा यार मेरी जिंदगी शामिल है। अपने रचित गीतों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करने वाले गुलशन बावरा 07 अगस्त 2009 को इस दुनिया को अलविदा कह गए।