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मुंबई। अपने संजीदा अभिनय से दर्शकों के दिलों को छू लेने वाली महान अदाकारा मीना कुमारी रील लाइफ में ‘ट्रेजडी क्वीन’ के नाम से मशहूर हुई लेकिन रियल लाइफ में वह छह नामों से जानीं जाती थीं।
मुंबई मे 1 अगस्त 1932 को एक मध्यम वर्गीय मुस्लिम परिवार में मीना कुमारी का जब जन्म हुआ तो पिता अलीबख्श और मां इकबालबानो ने उनका नाम रखा माहजबीं बानो रखा।
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बचपन के दिनों में मीना कुमारी की आंखे बहुत छोटी थी इसलिए परिवार वाले उन्हें चीनी कहकर पुकारा करते थे। ऐसा इसलिए कि चीनी लोगों की आंखें छोटी हुआ करती है। लगभग चार साल की उम्र में ही मीना कुमारी ने फिल्मों में अभिनय करना शुरू कर दिया। प्रकाश पिक्चर के बैनर तले बनी फिल्म लेदरफेस में उनका नाम रखा गया बेबी मीना।
इसके बाद मीना ने बच्चों का खेल में बतौर अभिनेत्री काम किया। इस फिल्म में उन्हें मीना कुमारी का नाम दिया गया। मीना कुमारी को फिल्मों अभिनय करने के अलावा शेरो-शायरी का भी बेहद शौक था। इसके लिए वह नाज उपनाम का इस्तेमाल करती थी। मीना कुमारी के पति कमाल अमरोही प्यार से उन्हें मंजू कहकर बुलाया करते थे।
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…तो शायर के रूप में बनती पहचान
हिंदी फिल्मों में अपने दमदार और संजीदा अभिनय से दर्शकों को भावविभोर करने वाली अदाकारा मीना कुमारी यदि अभिनेत्री नहीं होती तो शायर के रूप में अपनी पहचान बनाती। ङ्क्षहदी फिल्मों के जाने माने गीतकार और शायर गुलजार से एक बार मीना कुमारी ने कहा था कि ये जो एङ्क्षक्टग मैं करती हूं उसमें एक कमी है, ये फन, ये आर्ट मुझसे नहीं जन्मा है, ख्याल दूसरे का, किरदार किसी का और निर्देशन किसी की। मेरे अंदर से जो जन्मा है वह लिखती हूं जो मैं कहना चाहती हूं वह लिखती हूं।
मीना कुमारी ने अपनी वसीयत में अपनी कविताएं छपवाने का जिम्मा गुलजार को दिया जिसे उन्होंने ‘नाज’ उपनाम से छपवाया। सदा तन्हा रहने वाली मीना कुमारी ने अपनी रचित एक गजल के जरिये अपनी जिंदगी का नजरिया पेश किया है। चांद तन्हा है आसमां तन्हा दिल मिला है कहां कहां तन्हा राह देखा करेगा सदियों तक छोड़ जाएंगे ये जहां तन्हा ..। रूपहले पर्दे पर दर्द भरे चरित्र को जीवंत करने वाली ट्रेजडी क्वीन मीना कुमारी ने 31 मार्च 1972 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया।