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मोदी प्रशंसकों पर चेतन भगत का एसिड अटैक.... - Sabguru News
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मोदी प्रशंसकों पर चेतन भगत का एसिड अटैक….

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मोदी प्रशंसकों पर चेतन भगत का एसिड अटैक….
revenge of modi bhakts : chetan bhagat gets trolled
revenge of modi bhakts : chetan bhagat gets trolled
revenge of modi bhakts : chetan bhagat gets trolled

एक स्थापित हिंदी समाचार पत्र में 9 जुलाई को चेतन भगत का एक आलेख प्रकाशित हुआ है, ‘सोशल मीडिया पर भक्तों की नई प्रजाति’। एसिड रस (साहित्य में नया रस) में डूबे इस लेख को मैंने बलात पढ़ा!

अंग्रेजी लेखकों के बौद्धिक दंभ का शिकार हम भारतीय कोई पहली बार नहीं हो रहें है, वी एस नायपाल से लेकर चेतन तक एक श्रंखला है, जो भारतीयता, हिंदी तथा हिन्दू के प्रति विद्रूप लेखन करती आई है। ये बौद्धिकता का दंभ भरते हैं, हेय दृष्टि से हिन्दुस्थान का देखतें हैं तथा अपनी केचुलियों को उतारते नया रूप धरते चलतें हैं।

बोल्ड एंड ब्युटीफुल जैसे रंडई शब्दों के सहारे भारतीय स्त्रीत्व तथा मातृत्व की परम्पराओं इन अंग्रेजीदां लेखकों ने किस प्रकार डिप्लोमेटिकली घेरा है उस पर विस्तृत चर्चा फिर कभी करूँगा। अभी मूल विषय यह कि चेतन भगत उन ठेठ, देहाती और गंवई विरोधी, प्रगतिशील लोगों की पीढ़ी के ऐसे नए उभरे चेहरे हैं, जो विद्रूपता से नहीं बल्कि चाशनी भरे अंदाज में अपनी अंग्रेजीदां बातों को जरा हौले हौले रख रहें है।

 

यहां इस देश में पिछले दशक से बढ़ रहे ऐसे प्रदर्शनों और प्रतिक्रियाओं की चर्चा आवश्यक है जिनके भय से भारतीय मिटटी, भदेस बातों, धार्मिक आख्यानों की आलोचना, परम्पराओं की खिल्ली उड़ाना कम नहीं हुआ बल्कि टीआरपी बढ़ाने या प्रसिद्ध होनें की चाह में बढ़ गया है। इस प्रकार के हीन कर्म को करके प्रसिद्धि पानें की चाह वाले लोग प्रतिक्रियाओं से भयभीत रहतें हैं किन्तु अल्प समय में प्रसिद्धि तथा धन पानें के लालच में वे ऐसा करते भी जातें हैं।
हिंदी, हिन्दू, हिन्दुस्थान की बात करना हमारें देश में पिछड़ापन समझा जाता है! ऐसा कहना आसान हो सकता है, किन्तु सभी जानतें हैं कि ऐसा सच नहीं है। भदेस, देहाती, ठेठ, गंवई, भैयन, अन्ना, अम्मा शैली में कही गई बातें पुरे भारत में न केवल सह्रदयता से सुनी जाती है बल्कि बहुधा ही सहज रूप से पालन-अनुपालन भी की जाती है। इस देहाती और भक्त ढंग से कही, सुनी और पालन की गई बातों को अंग्रेजियत से न कहा जा सकता है और न ही यह देश उसे सुन-समझ सकता है।
चेतन ने अपने इस लेख में जिन्हें लक्ष्य बनाया है वे वो लोग हैं जिन्होनें पिछले वर्ष भारत में हुए राजनैतिक परिवर्तन को, परिवर्तन के पूर्व तथा पश्चात भी सोशल मीडिया में व्यक्त किया है। दो बातों से पूरा देश और सभी राजनैतिक विश्लेषक सहमत हैं कि 1. भारत में तीस वर्षों के दीर्घ अंतराल के बाद जनता ने एक परिपक्व तथा अखंड जनादेश दिया है और

2. कि इस परिपक्व जनादेश के निर्माण में सोशल मीडिया तथा युवाओं की सर्वाधिक भूमिका है। इस लेख में कथित रूप से चेतन नें सोशल मीडिया में सक्रिय इन युवाओं को भक्त कहा है। इन भक्तों के संदर्भ में चेतन भगत ने बड़े ही ‘इंद्र भाव’ से हीनता, कुंठा, लघुता का ऐसा संसार सृजन किया है जो कतई विन्यास किया हुआ नहीं लगता, अपितु हीनता तथा कुंठा का यह संसार उनके भीतर से उत्सर्जित होता प्रतीत होता है।

सोशल मीडिया पर सक्रिय सम्पूर्ण वर्ग को वे एक ही लाठी से हकालनें के प्रयास में वे कहते हैं कि इन दक्षिणपंथी लोगों को प्राचीन हिन्दू राजा पसंद होतें हैं तथा ये प्रजाति ऐसी कथाएं पढ़ना पसंद करती है जिसमें भूतकाल में हिन्दुओं को धोखा देनें का उल्लेख हो।

अपनें इस घृणास्पद लेखन को न्यायसंगत बनानें के लिए चेतन उस घटना का उल्लेख करते हैं, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बेटी के साथ सेल्फी लेनें के आग्रह को, एक महिला निरर्थक बताती है और फिर उस महिला से कुछ लोग सोशल मीडिया पर वैचारिक असहमति अभिव्यक्त करते हैं।

chetan bhagat vs parveen gugnani
chetan bhagat vs parveen gugnani

यहां चेतन भगत, शब्दों से खेलते हुए, इस वैचारिक असहमति को ‘सायबर हमला’ कहकर अपनें आपको न्यायसंगत बतानें का असफल प्रयास करते हैं। बड़े ही निर्मम किंतु लिजलिजे ढंग से वे इन भक्तों के चार गुण बतातें हैं-

1. वे लगभग सभी पुरुष हैं

2. वे संवाद साधने के कौशल, अंगरेजी में, बहुत कमजोर है, उनमें हीनभाव है, उनमें पर्याप्त नफासत व व्यवहार कुशलता नहीं है।

3. उनमें महिलाओं से बात करने का सलीका नहीं है, महिलाओं से कैसे व्यवहार करना, कैसे उन्हें आकर्षित करना,  गर्लफ्रेंड बनाना, इसका उन्हें पता नहीं होता। ये कुंठित होतें हैं व महिलाओं से निकटता चाहते हैं पर ऐसा कर नहीं पाते।

4. इनमें हिंदू होने, हिंदी बोलने, भारतीय होने का शर्म भाव है। उन्हें यह अहसास है कि देश का गरीबतम तबका हिंदी बोलने वाला हिंदू ही है। इससे उपजी शर्म को छिपानें वे राष्ट्रवाद का सहारा लेतें हैं।
सोशल मीडिया पर सक्रिय ऐसे लोगों को मोदी के लिए अति सरंक्षणवादी बताते हुए चेतन कहते हैं कि कमजोर अंग्रेजी वाला, यौन कुंठित, अपनी पृष्ठभूमि पर शर्मिंदगी की भावना और हीनता से ग्रस्त भारतीय पुरुष ‘सच्चा भक्त’ बन गया है। अपनें लेख में इस कथित वर्ग के लिए, यौन कुंठा शब्द का प्रयोग चेतन भगत ने एसिड अटैक की तरह किया है।

इस एसिड अटैक को न्यायसंगत और भाजपा-मोदी के लिए हितकारी बतानें का बेशर्मी भरा प्रयास करते हुए चेतन तरह तरह की व्यंजना, लक्षणा, उपमा देतें हैं। चालाक लोमड़ी की भांति वे भाजपा नेतृत्व को डरा भी रहें हैं कि यदि उसनें अपनें आपको इन भक्तों से दूर नहीं किया तो मतदाता वापिस कांग्रेस की ओर चला जाएगा! हीनता, यौन कुंठा जैसे शब्दों का अति प्रयोग चेतन अनावश्यक क्यों कर रहें हैं यह कोई शोध विषय नहीं है, नव धनाड्यता, नव प्रतिष्ठा, नव सिद्धि, नव बौद्धिकता का ऐसा प्रदर्शन नया नहीं है।

प्रत्येक नगर में ऐसे ‘थोथा चना बाजे घना’ जैसे कुछ नमूनें होतें ही हैं। ‘मोदी भक्त’ जैसा कुटिलता भरा टर्म प्रयोग करते हुए चेतन नि:शुल्क परामर्श देते हैं कि स्मार्ट बनो, अंग्रेजी सीखो, महिला मित्र बनाओ, डेटिंग पर जाओ। बेहद हल्केपन से चेतन यह भी उगलते हैं कि आपके साथ डेटिंग पर कोई जानें को तैयार हो गया तो आपकी भी किस्मत चमक जायेगी।
मुझे चेतन भगत के आलेख के ‘लाश तत्व’ (संदर्भ शब्द : प्राणतत्व) का पुनर्लेखन करनें और आपको पढ़ने में पीड़ा हुई, ग्लानि हुई, वीभत्सता का दुर्भाव आया, हीनता जागृत हुई, लघुता का भाव उपजा तो अच्छा हुआ!! क्योंकि चेतन भगत जैसे नव धनाड्य और नव प्रसिद्ध लेखक यही चाहते हैं, इसलिए हमारे समाज को यह भोगना पड़ेगा!!

हमारें भारतीय पन, भोलेपन का मूल्य तो हमें चुकाना ही होगा। किन्तु मैं यह मूल्य चुकानें को तैयार नहीं हूँ, अत: उत्तर दे रहा हूँ कि यह लेख किसी महँगी विदेशी शराब के नशे के न उतरनें का दुष्परिणाम है। आपकी उल्लेखित प्रजाति अस्तित्व में हो सकती है किन्तु वह उस राजनैतिक परिवर्तन में प्रतिनिधित्व नहीं रखती जो गत वर्ष भारत में हुआ है। आपनें मोदी प्रशंसकों को जिस श्रेणी में रखा है उससे आपकी मन मलिनता प्रकट होती है।

 

मोदी-भाजपा का छदम मित्र बनते हुए, वोटों के नफे नुक्सान का जो भय चित्रित किया गया है, वह लोमड़ी द्वारा दो खरगोश भाइयों में बंटवारे की कहानी के बिम्ब को प्रकट करता है। स्वामी विवेकानंद का ब्रदर्स एंड सिस्टर्स वाला शिकागो व्याख्यान भारत को स्मरण है; जब वहां किसी महिला ने आकर्षित होकर स्वामी विवेकानंद से पुत्र की आशा की थी तब उनका कालजयी उत्तर भी भारत के स्मरण में है। ऐसे लाखों प्रेरक, नैतिक, गौरवशाली प्रसंग हमारें वायुमंडल में व्याप्त हैं।

 

चेतन भगत चिंता न करें, सोशल मीडिया पर सक्रिय रहनें वाले, राजनैतिक परिवर्तन के कारक रहे सकारात्मक तत्व, किसी भी प्रकार से कुंठित नहीं हैं। आप सर्वथा निश्चिंत रहें, वे सभी अपनी पत्नी से तथा मातृशक्ति से कुशलता पूर्ण व्यवहार करते हैं। महिला मित्र बनानें की चर्चा आपनें की है, वह परामर्श अपनें किसी पड़ोसी को दीजिये। डेटिंग पर जाकर सौभाग्यशाली होनें की कुत्सित कामना आपको ही समर्पित।

गलत नहीं लगता यदि आप सोशल मीडिया से समाज में आ रही बुराइयों तथा अधीरता का निदान बताते, किन्तु सबसे अधिक अधीर, इम्पैशेंट आप ही दिख रहें हैं जो भाजपा को मित्रवत होकर उसके वोट बैंक के कांग्रेस में चले जानें का बाजारू डर तथा उसका नुस्खा बता रहें हैं।

 

भाजपा के प्रति आपके इस मित्र भाव के जागरण का कारण सर्वविदित है! विश्वास पूर्वक कह रहा हूँ कि आप अनायास ही प्रसिद्ध नहीं हुयें हैं! आप मार्केटिंग के सूक्ष्म ज्ञाता हैं!! शब्दों में, वाक्य विन्यास में, अर्थ से अधिक बाजार की स्थापना, आपको भली भांति आती है; सोशल मीडिया पर एक नई प्रजाति जैसे लेख नें यह सिद्ध किया है।

-प्रवीण गुगनानी