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revenue officer transfer forest land to muncipality, contempt SC order
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माउण्ट आबू सेंचुरी की जमीन नहीं लौटाई तो सजा पा सकता है कोई ना कोई IAS अधिकारी

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माउण्ट आबू सेंचुरी की जमीन नहीं लौटाई तो सजा पा सकता है कोई ना कोई IAS अधिकारी
order by supreme court on 12 december 1996 in godhaverman v/s state of maharashtra not to de-reserve of forest land in india
provision of punishment under section 3A of forest conservation act 1980 for dereservation of forest land

परीक्षित मिश्रा-सिरोही/माउण्ट आबू। माउण्ट आबू वन विभाग को नोटिफिकेशन के माध्यम से दी गई करीब 300 बीघा से ज्यादा जमीन को राजस्व अधिकारियो ने मात्र एदक सर्कुलर के आधार पर वन विभाग की जगह माउंट आबू नगर पालिका के खाते मे चढा दी है ।  राजस्व विभाग की जमीन को फिर से माउण्ट आबू सेंचुरी में नहीं शामिल किया गया तो फाॅरेस्ट कंजरवेशन एक्ट 1980 और सुप्रीम कोर्ट द्वारा 12 दिसम्बर, 1996 को पारित आदेशानुसार जिले में तैनात कोई ना कोई पूर्व आईएएस अधिकारी सजा भी पा सकता है। उल्लेखनीय है कि माउंट आबू मे एसडीएम के रूप मे अधिकांश IAS ही लगते है, और जमीनो की अमल दरामद का काम के लिये अलॉट्मेंट ऑर्डेर जारी करने को अधिकृत होने के कारण जवाबदेह भी होते है।

फिलहाल वन विभाग ही इस जमीन को जिला कलक्टर और माउण्ट आबू एसडीएम से वापस मांग रहा है, यदि पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र मे ंकाम करने वाली कोई निजी एजेंसी इस प्रकरण को किसी न्यायालय में ले गई तो इस प्रकरण में किसी न किसी आईएएस, आरटीएस और पटवारी पर गाज गिरना तय है।

ऐसे में एक अधिकारी का अपने पहले वाले अधिकारी या कार्मिक को बचाने की कवायद उन्हीं पर भी भारी पड सकता है क्योंकि लगातार पत्राचार के बाद भी जमाबंदी नहीं बदलने को सर्वोच्च न्यायालय गंभीर मान सकती है। यह बताना जरूरी है कि माउण्ट आबू के ही कुछ लोग नौकरशाहों के नियमविरूद्ध कामों के लिए एनजीटी जा चुके हैं।

prohibition of dereservation of forest land for non-forest purpose under section 2 of forest conservation act 1980

-क्या है प्रकरण
आबूरोड उपखण्ड क्षेत्र के माउण्ट आबू नगर पालिका और माउण्ट आबू सेंचुरी से जुडी सानीगांव के खसरा संख्या 332, 333, 334, 260 समेत करीब पांच खसरों की करीब तीन सौ बीघा भूमि 2009 में आए एक सर्कुलर के आधार पर फरवरी 2010 में नगर पालिका माउण्ट आबू के नाम से स्थानांतरित कर दी गई है।

माउण्ट आबू वन विभाग के सूत्रों के अनुसार यह जमीन राज्य सरकार के 5 मार्च, 1986 और 15 अप्रेल 2008 के नोटिफिकेशन के माध्यम से माउण्ट आबू वन्यजीव सेंचुरी को सौंप दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट के 12 दिसम्बर, 1996 को गोदावरमन बनाम महाराष्ट्र सरकार के मामले में दिए अपने आदेश में स्पष्ट कर दिया है कि वन विभाग की किसी भी तरह की भूमि चाहे उस पर पौधे उगे हुए हों या नहीं हों, उसके कोई भी राज्य सरकार, ट्रिब्यूनल, हाईकोर्ट, अधीनस्थ न्यायालय, अधिकरण आदि किसी दूसरे के नाम से आवंटित नहीं कर सकती है।

वहीं फाॅरेस्ट कंजरवेशन एक्ट 1980 की धारा 2 के अनुसार वन के लिए आरक्षित हो चुकी भूमि को कोई भी आॅथोरिटी अनारक्षित नहीं कर सकती है। इसकी धारा 3-ए में उल्लेख है कि यदि कोई सरकार या हेड आॅफ डिपार्टमेंट ऐसा करता है तो उसका यह अपराध 15 दिन तक जेल की सजा भी दिलवा सकता है। उल्लेख्ननीय ये है कि कोई भी गजट नोटिफिकेशन किसी सर्कुलर से खत्म नही किया जा सकता है, ये जानते हुए भी माउंट आबू मे तैनात राजस्व विभाग के अधिकारियो ने ये काम किया।

order by supreme court on 12 december 1996 in godhaverman v/s state of maharashtra not to de-reserve of forest land in india

-राज्य सरकार को लिखा यह जमीन नगर पालिका को दे
दरअसल, नोटिफाइड जमीन को नगर पालिका के नाम से अमल दरामद किए जाने की बात सामने आने पर माउण्ट आबू सेंचुरी के पूर्व और वर्तमान एसीएफ इस बात को जिला कलक्टर सिरोही और माउण्ट आबू उपखण्ड अधिकारी के संज्ञान में लाए। इसके लिए पत्राचार करके इस जमीन को पुनः वन विभाग के नाम से अमल दरामद किए जाने का अनुरोध किया, लेकिन अभी तक यह कार्य नहीं किया गया है।

वैसे वर्तमान कलक्टर ने इसके लिए 7 जून, 2017 को माउण्ट आबू उपखण्ड अधिकारी को पत्र लिखकर इस प्रकरण को देखने और दोषी अधिकारियों व कार्मिकों के खिलाफ कार्रवाई प्रस्तावित करने को कहा था, लेकिन अभी तक इस जमीन की जमाबंदी परिवर्तित नहीं हुई है।

राजस्व विभाग के सूत्रों के अनुसार इस पत्र के बाद राजस्व अधिकारियों ने रिपोर्ट तैयार करके इस जमीन को नगर पालिका को ही दिए जाने की राज्य सरकार से सिफारिश कर दी है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार राज्य सरकारें सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बिना ऐसा नहीं कर सकती। फॉरेस्ट कंजर्वेशन एक्ट के तहत कोई भी रज्य सर्कार केन्द्र सरकार के आदेश के बिना ऐसा नही कर सकती।

सूत्रों की मानें तो वर्तमान अधिकारी इस गलत अमल दरामद करने वाले अधिकारियों व कार्मिकों को बचाने की कवायद में ऐसा प्रयास कर रहे हैं, लेकिन वह इस बात से अनजान है कि जब तक यह पत्रावली विभागों में चल रही हैं तब तक तो ठीक है, जैसे ही इसमें किसी बाहरी एजेंसी का हस्तक्षेप हुआ सभी के लिए समस्या हो सकती है।
-अतिक्रमण का शिकार आवंटित भूमि
राजस्व विभाग के अधिकारी इस नामांतरण के पीछे यह दलील दे रहे हैं कि यह जमीन कभी भी वन विभाग के नाम पर नहीं चढी थी। इसलिए 2009 के सर्कुलर के बाद इसे नगर पालिका माउण्ट आबू के नाम से जमाबंदी में अमल दरामद कर दी गई थी। वैसे राज्य सरकार का कोई भी नोटिफिकेशन सबसे पहले जिला कलक्टर के पास आता है और वहा से उपखन्ड अधिकारी के यहा।

ऐसे में नोटिफाइड जमीन को वन विभाग के नाम नामांतरित नहीं करने के लिए भी नोटिफिकेशन जारी होने के समय के कलक्टर और उपखण्ड अधिकारी की जवाबदेही बनती है। ऐसे में यह कह कर पल्ला झाडना कि यह जमीन वन विभाग के नाम से कभी रही ही नहीं, जवाबदेही से मुंह मोडने और अपने साथियों को बचाने की कवायद ज्यादा है। वैसे ये जमीन भी अतिक्रमण की जद मे आ चुकी है।

हाल ही में शिवगंज में भी इस तरह का मामला आया था, जिसके अनुसार शिवगंज के पूर्व उपखण्ड अधिकारी ने वेराविलपुर के निकट गोचर और वन विभाग की भूमि की किस्म परिवर्तित कर दी थी। तत्कालीन जिला कलक्टर अभिमन्युकुमार के संज्ञान में आने के बाद उस जमीन का किस्म परिवर्तन तुरंत निरस्त किया गया। हा, ये बात जरूर है कि इसमे शमिल कर्मिको को उन्होने भी अभय्दान दे दिया।
-पत्राचार किया है….
हमने सानीगांव की भूमि को फिर से वन विभाग के नाम से हस्तांरित किए जाने के लिए जिला कलक्टर को पत्र लिखा है। शीघ्र ही यह कार्य होने की संभावना है।
हेमंतसिंह
एसीएफ, माउण्ट आबू सेंचुरी।