ज्योतिष मान्यता के अनुसार यदि शनि, राहू के साथ जन्म लग्न में साथ बैठे हैं। दृष्टि सम्बन्ध बना रहे हैं तो भी मंगल ग्रह युद्ध ग्रस्त होता हुआ विवाह में विलम्ब करता है। सप्तमेश या सप्तम भाव पर मंगल की दृष्टि विवाह में बाधा का कारण बनता है।
वास्तव में मंगल ग्रह विवाह मे बाधक नहीं होता क्योंकि जीवन भर दाम्पत्य जीवन को चलाने के लिए यही एक ग्रह सही मायने में जिम्मेदार होता है क्योंकि शुक्र ग्रह व मंगल का आकर्षण ही वैवाहिक जीवन को चला सकता है।
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जन्म लग्न मे यदि मंगल व शुक्र का ऋणात्मक सम्बन्ध है या मंगल जन्म लग्न मे कमजोर है या मंगल ग्रह शुक्र से दूसरा या आठवा सम्बन्ध बना रहा है तब मंगल जातक के विवाह में बाधा डालने की महत्वपूर्ण रोल अदा करता है।
ऐसे में उसे विवाह के नाम से दूर रहना पड़ता है और जीवन भर ऐसे ही निकाल देता है। फिर भी लग्नेश, सपतमेश और भाग्येश की मजबूत स्थिति यदि उसका विवाह करा देती है तो वह प्रकट रूप से दाम्पत्य में रूचि न रख कर मन ही मन सृष्टि सृजन करने से डरता है।
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सदियों से प्रकृति मंगल, शुक्र व चन्द्र के सहयोग से सृष्टि सृजन करती आई है और यह क्रम जारी रहेगा। मंगल से अर्थ शुभ करने से हैं अतः वह अमंगलकरी नहीं हो सकता है। मंगल का कुज अर्थात बुराईयो को उत्पन्न करने वाला फल तो जीवन के अन्य क्षेत्रो में देखा जाता है।
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जहा मंगल ग्रह के कारण विवाह में विलम्ब होता है तो मंगलवार के दिन भगवती पार्वती जी की मंगला गौरी के रूप मे जप, तप व हवन, अनुष्ठान कर लाभ ले सकते हैं और जो नास्तिक है वह भी गरीब और जरूरत वाले लोगों को निशुल्क चिकित्सा करा लाभ ले सकता है।
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