नाडोल। लोकमान्य संत वरिष्ठ प्रवर्तक शेरे राजस्थान रूपमुनि महाराज ने कहा कि त्याग करने योग्य एवं ग्रहण करने योग्य वस्तु के ज्ञान को विवेक कहते हैं विवेक एक स्वाभाविक निर्मल नेत्र है। विवेक के बिना ज्ञान नहीं होता है। विवेक गुरू तरह कृत्य व अकृत्य का मार्ग दिखाता है। वे मुक्ता मिश्री रूपसुकन दरबार में रविवार को आयोजित धर्मसभा मे प्रवचन कर रहे थे।….
उप प्रवर्तक सलाहकार सुकनमुनि ने कहा कि विवेक पूर्ण से पाप प्रकृति भी पुण्य प्रकृति हो जाती है और अविवेकपूर्ण कार्य से पुण्य प्रकृति भी पाप प्रकृति हो जाती है। विवेक बिना धर्म अर्धम है। अविवेक आपत्तियो का मुख्य स्थान है विवेक मुक्ति का साधन है।
तपस्वी रत्न अमृतमुनि ने कहा कि जीवन का सबसे बड़ा रहस्य यह है कि जीवन किसी भी क्षण टूटेगा, यथापि आत्मा तो अजर अमर है किन्तु जीवन अमर नहीं है। क्षणभगुंटता जीवन की एक ऐसी सच्चाई है जिसे जानकर भी हम नहीं जानते हैं, जिसे समझकर भी हम नहीं समझते हैं।
डॉ. अमरेशमुनि निराला ने कहा कि जीवन का सार इतना है कि वस्तुओं की क्षणिकमा, जीवन की अनित्यता और मृत्यु का अनिवार्य चिन्तन करके जीवन को धन्य बनाओ। बालयोगी अखिलेशमुनि ने कहा कि पर्व उन्नति का पतन होता है। हर संग्रह का अन्त ये शय होता है हर सहयोग का एक दिन वियोग होता है और हर जीवन का अन्त मृत्यु से होता है।
बाहर से आए भक्तों का रूपसुकन चातुर्मास समिति नाडोल के अध्यक्ष कांतीलाल जैन, महामंत्री हितैष चौहान, प्रकाशचन्द छैल्लाणी, बाबूलाल सुराणा, हनुमान चन्द बोरून्दिया, पारसमल पटवा, जवरीलाल कटारिया, सहमंत्री जगदीशसिंह राजपुरोहित, सह संयोजक पोमाराम चौधरी, किशोर अग्रवाल, रूपमुनि महाराज के निजी सचिव नरेन्द्र देवासी, रामपुरी छगनलाल मेवाड़ा, उमाराम चौधरी, अमरसिंह राजपुरोहित, मनीष मेवाडा सहित समिति सदस्यों द्वारा शॉल व माल्यार्पण से स्वागत किया गया।