नाडोल। लोकमान्य संत वरिष्ठ प्रवर्तक शेरे राजस्थान रूपमुनि महाराज ने कहा कि निपुल काम, भोग, सुख सम्ंपदा और पुत्र मित्र आदि परिजन हमेशा मिल जाएंगे किन्तु एक धर्म दुर्लभ्भ है जो हमेशा नहीं मिलता है। उतम धर्म का श्रवण करना निश्चय ही दुर्लभ्भ है धर्म को सुनकर इस पर श्रृद्धा करना और अधिक दुर्लभ्भ है वे मुक्ता मिश्री रूपसुकन दरबार मे मंगलवार को आयोजित धर्मसभा में प्रवचन कर रहे थे। उन्होंने कहा कि श्रृद्धा आ जाने पर उसका आचरण करना और अधिक कठीन है।…
धर्म की उत्पति उसका विकास उसकी स्थापना और उनका विनाश कैसे होता है इस प्रश्न के उतर में कहा गया है कि सत्य से धर्म की उत्पति, दया दान से बढ़ता है। क्षमा द्वारा उसकी स्थापना होती है और लोभ्भ के द्वारा धर्म का नाश होता है। छोटे से दीपक से अंधकार, थोड़े अमृत से रोग, अगिन के कण से लृण, वारा समूहों का नाश हो जाता है ठीक वैसे ही धर्म का सेवन करने से पाप पुन्ज का नाश हो जाता है। धर्म का लक्षण अहिंसा है।
वस्तु के स्वभ्भाव को सेवन कहते हैं, जिससे आत्मा की शुद्धि हो गई है वह धर्म है। धर्म पवित्र जीवन जीने की कला का नाम है। अंहिसा, संयम, तपरूप, धर्म है। उत्कृष्ट मंगल है। अन्न के बिना शरीर को बल नहीं मिलता है और धर्म के बिना व्यक्ति समाज राष्ट्र को बल नहीं मिलता है।
इस अवसर पर तपस्वी अमृतमुनि, अमलेशमुनि, मुकेशमुनि, हितेषमुनि, डॉ. दिपेशमुनि, अखलेशमुनि आदि संतों ने भी प्रवचन किए। बाहर से आए भक्तों का रूपसुकन चातुर्मास समिति नाडोल के अध्यक्ष कांतीलाल जैन, महामंत्री हितैष चौहान, सहमंत्री जगदीशसिंह राजपुरोहित, उपाध्यक्ष देवीचन्द बोहरा, सह संयोजक पोमाराम चौधरी, किशोर अग्रवाल, छगनलाल मेवाडा, रूपमुनि महराज के निजी सचिव नरेन्द्र देवासी सहित समिति सदस्यों द्वारा शॉल व माल्यार्पण से स्वागत किया गया।