नाडोल।। लोकमान्य संत वरिष्ठ प्रवर्तक शेरे राजस्थान रूपमुनि महाराज ने कहा कि पूर्व में उपार्जीत कर्म को भाग्य कहते हैं। भाग्य अर्थात होनहार जीवन की घटनाओं को घटित करने वाला अदृश्य तल। सर्वत्र भाग्य ही देता है पुरुषार्थ नहीं। भाग्य की परिभाषा गढ़ते हुए उन्होंने कहा कि जो आकाश में विहार करता है अधंकार का नाश करता है हजार किरणों को धारण करता है।…
रविवार को मुक्ता मिश्री रूपसुकन दरबार में आयोजित धर्मसभा में प्रवचन करते हुए उन्होंने कहा कि नक्षत्रों के बीच विचरता चन्द्रमा भी विधि के वश में आकर राहु द्वारा वृषित हो जाता है, क्योकि ललाट पर लिखि हुई को कोई भी नहीं मिटा सकता है। अनुकुल भ्भाग्य होने पर अनिष्ट से भी इष्ट हो जाता है। शिव शंकर जहर पीकर तत्काल अमर हो गए।
भाग्य को देवता ही नहीं जानता है तो मनुष्य की बात ही क्या है। क्रोधित होने पर मित्र भी शत्रु बन जाते हैं। न तो सुन्दर आकृति फ ल देती है न कुल शील विधा यन्त्रों से की हुई सेवा। पूर्वकाल में तपस्या द्वारा संचित भाग्य ही समय आने पर वृक्षों की तरह फ ल प्राप्त करते हैं। भाग्य का रखा हुआ रक्षा नहीं करने पर भी रह जाता है भाग्य का मारा हुआ रक्षा करने पर भी नष्ट हो जाता है। मुकेशमुनि ने कहा कि भाग्य विमुक्त होने पर अमृत भी जहर का काम करता है। हितैषमुनि ने कहा कि भाग्य ही उलटा हो तो पुरुषार्थ क्या करेगा।
इस अवसर पर महेशमुनि, हरीशमुनि, सचिनमुनि, नानेशमुनि प्रवचन में उपस्थित थे। बाहर से आए भक्तों का रूपसुकन चातुर्मास समिति नाडोल के अध्यक्ष कांतीलाल जैन, सहमंत्री जगदीशसिंह राजपुरोहित, प्रकाश छल्लाणी, बाबूलाल सुराणा, पारसमल पटवा, उपाध्यक्ष देवीचन्द बोहरा, सह संयोजक पोमाराम, छगनलाल मेवाडा, रूपमुनि महराज के निजी सचिव नरेन्द्र देवासी सहित समिती सदस्यों द्वारा शॉल व माल्यार्पण से स्वागत किया गया।