नागौर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह भैय्याजी उपाख्य सुरेश जोशी ने कहा कि समाज के अंदर भेदभावपूर्ण वातावरण चिंतनीय है।
पिछड़े समाज की वेदनाओं को समझकर सबके साथ समानता का व्यवहार हो, परिस्थितियों को आधार बनाकर किसी के साथ भेदभाव नहीं होना चाहिए। मीरा की धरती से अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा ने एक प्रस्ताव पारित कर समाज में समरसता लाने का आव्हान किया है।
भैय्याजी जोशी रविवार को पत्रकारों से चर्चा कर रहे थे। उन्होंने कहा कि भारत का तत्व ज्ञान जो मनीषियों ने दिया है, हिन्दू चिंतन के नाम से जाना जाता है वो श्रेष्ठ है। समाज जीवन में कुछ गलत पंरपराओं के कारण मनुष्य मनुष्य में भेद करना ठीक नहीं है।
समाज के अंदर भेदभावपूर्ण वातावरण अपने ही बंधुओं के कारण आया है, जो उचित नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति को दैनंदिन जीवन में व्यक्तिगत, पारिवारिक, तथा सामाजिक समरसता पूर्ण आचरण करना चाहिए।
समाज में जाति भेद, अस्पृश्यता हटाकर शोषण मुक्त, एकात्म और समरस जीवन का निर्माण करना है। भेदभाव जैसी कुप्रथा का जड़ मूल से समाप्त होनी चाहिए। उन्होंने कहा व्यक्तिगत तथा सामूहिक आचरण में देशकाल परिस्थिति के अनुसार सुसंगत परिवर्तन होना चाहिए। इसके लिए समाज में कार्यरत धार्मिक एवं सामाजिक संस्थाओं को भी आगे आना होगा।
उल्लेखनीय है कि देशभर में समरसता का संदेश देने वाली कृष्णभक्त मीरा का जन्म करीब पाचं सौ पहले वर्ष पूर्व नागौर जिले के कुड़की गांव में हुआ था, जो कि राजा की पुत्री और चित्तौड़ की रानी भी थी।
मीरा ने संत रविदास के उपदेशों से प्रभावित होकर अपने परिवार की सहमति से रविदास को आध्यात्मिक गुरु बनाया। मीरा ने अपने गुरू के बारे में लिखा है- गुरु मिलीया रविदास जी दीनी ज्ञान की गुटकी, चोट लगी निजनाम हरी की महारे हिवरे खटकी। प्रस्ताव में पूज्य संतों, प्रवचनकारों, विद्वजनों, तथा सामाजिक कार्यकर्ताओं को समाज प्रबोधन के लिए सक्रिय सहयोग देने का अनुरोध किया है।
समृद्ध लोगों के लिए आरक्षण नहीं
हाल ही में जाट आरक्षण को लेकर हुए आंदोलन का परोक्ष रूप से संदर्भ रखते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने प्रभावशाली तबकों की आरक्षण की मांग को खारिज कर दिया और यह पता लगाने के लिए अध्ययन करने की वकालत की कि पिछड़े वर्ग के जरूरतमंद लोगों को आरक्षण का लाभ मिल रहा है या नहीं।
सामाजिक समरसता की वकालत करते हुए संघ के सरकार्यवाह सुरेश भैयाजी जोशी ने कहा कि जाति आधारित भेदभाव के लिए हिंदू समुदाय के सदस्य जिम्मेदार हैं और हमें सामाजिक न्याय के लिए इसे समाप्त करना होगा। उन्होंने इस बाबत बी आर अंबेडकर को याद किया।
संपन्न लोगों की आरक्षण की मांग को नामंजूर करते हुए जोशी ने कहा कि अंबेडकर ने सामाजिक न्याय के लिए आरक्षण के प्रावधान बनाए थे और आज आरक्षण की मांग कर रहे लोगों को इस अवधारणा को ध्यान में रखना चाहिए।
उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि यह सोच सही दिशा में नहीं है। ऐसे समृद्ध वर्ग के लोगों को अपने अधिकार छोड़ देने चाहिए और समाज के कमजोर तबके की मदद करनी चाहिए। लेकिन इसके बजाय वे अपने लिए आरक्षण की मांग कर रहे हैं जो सोच सही दिशा में नहीं है।
जोशी ने इस तरह की मांगों के लिए किसी वर्ग का सीधा उल्लेख नहीं किया लेकिन समझा जाता है कि उनका इशारा जाट समुदाय की ओर था जिसने हाल ही में आरक्षण के लिए हरियाणा में बड़ा हिंसक आंदोलन चलाया।
मंदिरों में महिलाओं के प्रवेश पर रोक अनुचित
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने कहा कि किसी मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक अनुचित है और ऐसी रोक लगाने वाले मंदिर प्रबंधनों को अपनी सोच बदलनी चाहिए। यह बयान पिछले दिनों महाराष्ट्र के दो मंदिरों में महिलाओं के प्रवेश के लिए चलाए गए आंदोलन की पृष्ठभूमि में आया है।
संघ के सरकार्यवाह सुरेश भैयाजी जोशी ने कहा कि कुछ अनुचित परंपराओं की वजह से कुछ स्थानों पर मंदिर में प्रवेश के सवाल पर आम सहमति नहीं रही है। ऐसे संवेदनशील विषयों को बातचीत और संवाद से सुलझाया जाना चाहिए, आंदोलनों से नहीं।
उन्होंने कहा कि देश में हजारों मंदिरों में महिलाएं जाती हैं लेकिन जहां कुछ मदिरों में उनके प्रवेश की बात है तो सोच बदलना जरूरी है। ऐसे मंदिरों के प्रबंधनों को भी यह समझना चाहिए।
संघ पदाधिकारी ने कहा कि महिलाएं वेद सीख रहीं हैं और धार्मिक कामकाज भी कर रहीं हैं।
दिल्ली में श्री श्री रविशंकर के सांस्कृतिक महोत्सव पर उठे विवाद के बीच जोशी ने कहा कि अगर पर्यावरण का कोई मुद्दा है तो सभी को नियमों का पालन करना चाहिए, चाहे कोई व्यक्ति हो या संगठन। हालांकि उसी समय उन्होंने यह भी कहा कि अगर जुर्माने ही लगाए जाते रहे तो समाज में बदलाव लाने की प्रणालियां कमजोर होंगी।