नागौर। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने अपने ड्रेस कोड में बडे बदलाव पर रविवार को मुहर लगा दी। स्वयंसेवक अब हाफ पेंट की जगह फुल खाकी पेंट पहनेंगे। साल 2010 में हाफपेंट के स्थान पर फुलपेंट ड्रेस कोड में शामिल करने की चर्चा चली थी, उस समय इस चर्चा पर पांच साल के लिए विराम लगा दिया था।
इस बीच पांच साल पूरे हुए और एक बार बार अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक का समय आ गया। इसमें ही संघ के बडे निर्णय लिए जाते रहे हैं। बैठक से पहले ही संकेत मिलने लगे थे कि संघ अपने ड्रेस कोड में बदलाव कर सकता है।
नागौर में चल रही संघ की प्रतिनिधि सभा की बैठक में ड्रेस कोड में बदलाव पर मंथन के बाद खाकी निक्कर के स्थान पर ब्राउन पैंट को गणवेश के रूप में शामिल कर लिए जाने की घोषण की गई। संघ के सरकार्यवाह भैय्याजी जोशी प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस बदलाव का ऐलान करते हुए कहा कि हमारी पहचान निक्कर से नहीं बनी है। हम जो वेश आज शुरू करेंगे वो आने वाले चार-छह माह में बन जाएगा।
उन्होंने कहा कि हम समय, काल और परिस्थितियों के अनुसार चलने वाले लोग हैं। उन्होंने साफ किया कि निक्कर के स्थान पर बनाई जाने वाली पेंट शारीरिक व्यायाम में सुविधा के अनुसार बनाई जाएगी।
साल 2010 में भी हुआ था बदलाव
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के ड्रेस कोड में इससे पहले बडा बदलाव साल 2010 में हुआ था। तब चमडे के बेल्ट को हटा कर उसकी जगह कैनवास की बेल्ट शामिल की गई। चमडे की बेल्ट को हटाने का निर्णय जैन मुनि तरुण सागर जी की सलाह पर हुआ।
साल 1977 में सफेद शर्ट शामिल
राष्ट्रीय सवयंसेवक संघ ने साल 1977 में भी ड्रेस कोड में बदलाव किया था। तब गणवेश के रूप में सफेद शर्ट को शामिल किया गया। इससे पहले स्वयंसेवक खाकी शर्ट पहना करते थे। संघ की गणवेश में 1973 तक यानी 43 साल पहले फौजी जूते भी शामिल थे। तब ड्रेस कोड में बदलाव करते हुए मिलिट्री शू के स्थान पर सामान्य जूते शामिल किए गए।
एक चीज जो आज तक नहीं बदली
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यूं तो समय समय पर गणवेश व नियमावली में संशोधन करता रहा है। लेकिन एकमात्र सिर पर पहनी जाने वाली काली टॉपी हमेशा ही संघ गणेवश का हिस्सा रही है। स्थापना से लेकर आज तक संघ के स्वयंसेवक काली टोपी पहनते हैं।