लखनऊ। सूबे में विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद सत्ता से बेदखल हुई समाजवादी पार्टी अब संगठन की मजबूती और उपचुनाव की तैयारी में जुट गई है।
पार्टी मुखिया अखिलेश यादव जहां हार के कारणों पर मन्थन कर रहे हैं, वहीं उन्होंने उपचुनाव को लेकर नेताओं-कार्यकर्ताओं को अभी से जुटने का निर्देश दिया है।
दरअसल मुख्यमंत्री आदित्यनाथ गोरखपुर और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य फूलपुर से सांसद हैं। ऐसे में इन दोनों ही सीटों पर छह महीने के अन्दर उपचुनाव होगा। इसलिए अखिलेश यादव की कोशिश है कि उनकी पार्टी उपचुनाव में दमदार प्रदर्शन कर हार के जख्मों पर कुछ मरहम लगा सकें। इसके लिए वह अभी से जुट गए हैं।
पार्टी अध्यक्ष ने इन दोनों सीटों पर फिलहाल अपना पूरा ध्यान केन्द्रित कर रखा है। उन्होंने इस सम्बन्ध में जनेश्वर मिश्र ट्रस्ट में कार्यकर्ताओं के साथ बैठक की और उन्हें चुनावी हार का दर्द भूलकर उपचुनाव की तैयारियों में जुटने का निर्देश दिया।
सपा अध्यक्ष ने कहा कि कार्यकर्ता संगठन की मजबूती पर ध्यान दें। बताया जा रहा है कि उन्होंने कार्यकर्ताओं को संघर्ष के लिए तैयार रहने का भी निर्देश दिया और कहा पार्टी जनहित से जुड़े किसी मुद्दे को हटाने से पीछे नहीं हटेगी।
अखिलेश ने कार्यकर्ताओं का सम्मान बनाये रखने की भी बात कही और पार्टी पदाधिकारियों से गोखरपुर तथा इलाहाबाद मण्डल में हार के कारणों पर फीडबैक लिया।
सूत्रों के मुताबिक अखिलेश यादव ने कार्यकर्ताओं को एक बार फिर सपा सरकार की योजनाओं की जनकारी आम जनता तक पहुंचाने को कहा है, जिससे उपचुनाव में जनता के बीच किसी तरह का भ्रम नहीं रहे। उनके द्वारा भाजपा पर जनता को बहका कर वोट हासिल करने का आरोप लगाने की भी बात कही जा रही है।
इसके साथ ही पार्टी अब भाजपा के शासन में अपराधों के आकंड़ों पर भी नजर रखेगी, जिससे उसे जनता की अदालत में सामने रखा जा सके। हालांकि उपचुनाव में सपा की राह बेहद कठिन होगी। आमतौर पर उपचुनाव में सत्तारूढ़ दल को लाभ मिलता है।
वहीं जिस तरह से गोरखपुर भाजपा का गढ़ रहा है और आदित्यनाथ यहां से अजेय रहते आए हैं, ऐसे में दूसरे दलों के लिए यहां जीत हासिल करना बहुत बड़ी चुनौती से कम नहीं है।
राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि खासतौर से जब गोरखपुर सीट से चुनाव लड़ने वाले को आदित्यनाथ के उत्तराधिकारी के तौर पर आंका जाएगा। वहीं फूलपुर से मौजूदा सांसद और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य भी बेहद लोकप्रिय हैं।
उन्होंने चुनाव के दौरान पार्टी के पक्ष में जिस तरह काम किया, उससे उनका कद और ऊंचा हुआ है। इसलिए सरकार बनने के छह महीने के अन्दर विरोधी दलों के लिए भाजपा को उसकी ही सीटों पर चुनौती देना बेहद मुश्किल होगा।
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