लखनऊ। समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह के कुनबे के बीच चल रहे महाभारत के पांचवे दिन पार्टी दफ्तर पहुंचे मुलायम सिंह यादव ने कहा कि हमारे रहते पार्टी में कोई फूट नहीं हो सकती। पार्टी में कहीं कोई मतभेद नहीं है। वे शुक्रवार को पार्टी कार्यकर्ताओं व मीडिया के सामने अपना पक्ष रख रहे थे।
सपा सूत्रों की मानें तो मुलायम और अखिलेश के बीच समझौता हो गया है। पार्टी नेता शिवपाल सिंह यादव सरकार के सभी पदों पर बने रहेंगे। इसके साथ ही पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पर भी शिवपाल बने रहेंगे। सपा सुप्रीमो ने गायत्री प्रजापति को भी फिर से सरकार में शामिल करने का एलान किया।
सपा सुप्रीमों ने अखिलेश-शिवपाल के बीच चल रहे मतभेद को भी सिरे से खारिज करते हुए कहा कि उन दोनों के बीच कोई झगड़ा नहीं है। प्रो. रामगोपाल यादव से भी नहीं है कोई झगड़ा।
मुलायम ने कहा कि गायत्री प्रजापति की फिर से सरकार में वापसी होगी। अखिलेश मेरी बात नहीं टालेगा। उन्होंने अखिलेश यादव से भी किसी प्रकार का मतभेद होने से इनकार किया। कहा कि बाप-बेटे के बीच कभी-कभार ऐसा होता रहता है। मुलायम ने समर्थकों द्वारा नारे लगाने पर उन्हें फटकार भी लगाई।
इस पारिवारिक संघर्ष के पीछे मीडिया का हाथ होने को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि इस मामले में मीडिया का कोई दोष नहीं है, परिवार की गलती है जो बातें बाहर गईं।
मालूम हो कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और चाचा शिवपाल यादव पिछले चार वर्षों से सरकार और संगठन के भीतर दो ‘पाॅवर सेंटर‘ बने हुए हैं। कई बार अलग-अलग मुददों को लेकर ये दोनों आमने-सामने आ चुके हैं।
हर बार नेताजी (मुलायम सिंह) ने आगे आकर दोनों के बीच सुलह कराई लेकिन इस बार स्थिति इस कदर विस्फोटक हो गई है कि पार्टी के भीतर ही अखिलेश और रामगोपाल के खिलाफ भी आवाज उठने लगी है।
पार्टी कार्यालय के बाहर जमे शिवपाल समर्थकों ने प्रो. रामगोपाल और अखिलेश पर भी निशाना साधा। समर्थकों ने कहा कि रामगोपाल को पार्टी से बाहर किया जाना चाहिए और अखिलेश की जगह शिवपाल यादव को मुख्यमंत्री बनाया जाए।
दरअसल, अखिलेश यादव और शिवपाल के बीच पिछले चार वर्षों में दर्जनों सियासी खींचतान देखने को मिली है। सपा के भीतर जो तूफान उठा है उसकी शुरुआत कौमी एकता दल के विलय को लेकर हुई थी।
कौमी एकता दल का विलय
शिवपाल यादव चाहते थे कि कौमी एकता दल का समाजवादी पार्टी में विलय हो जाए। इसकी पूरी तैयारी भी हो गई, लेकिन ऐन मौके पर अखिलेश यादव ने इसका विरोध कर दिया। इतना ही नहीं, इसमें भूमिका निभाने वाले बलराम यादव तक को अखिलेश ने बर्खास्त कर दिया। हालांकि, शिवपाल बार-बार ये कहते रहे कि ये निर्णय मुलायम सिंह की अनुमति पर लिया गया है। इसके बाद भी अखिलेश नहीं माने और विलय रद्द हो गया।
अमर सिंह की वापसी
रामगोपाल और आजम खान सपा नेता अमर सिंह को पार्टी और राज्यसभा में भेजने के विरोध में थे। विरोध की वजह से अखिलेश भी इस पर सहमत नहीं थे, जबकि शिवपाल चाहते थे कि अमर सिंह की वापसी हो। इतना ही नहीं, जब शिवपाल के बेटे आदित्य की शादी हुई तो अमर सिंह ने बकायदा दिल्ली में रिसेप्शन भी दिया। अखिलेश के विरोध के बावजूद अमर सिंह को न केवल राज्यसभा भेजा गया, बल्कि पार्टी में भी उनकी वापसी हो गई।
अखिलेश समर्थकों की बर्खास्तगी
अखिलेश के करीबी माने जाने वाले और वर्ष 2012 में विकास यात्रा में अखिलेश के साथ रहे सुनील साजन और आनंद भदौरिया को शिवपाल ने बाहर का रास्ता दिखा दिया तो एक बार फिर शिवपाल-अखिलेश आमने-सामने हो गए। इस फैसले के बाद अखिलेश नाराज हो गए और वे सैफई महोत्सव के उद्घाटन कार्यक्रम में भी नहीं गए। हालांकि, उनकी नाराजगी को देखते हुए दोनों ही नेताओं का तीन दिन के अंदर निष्कासन रद्द कर दिया गया।
शिवपाल ने दी इस्तीफे की धमकी
शिवपाल कई बार खुद अखिलेश की सरकार को कठघरे में करते रहे हैं। उन्होने 14 अगस्त को मैनपुरी में एक कार्यक्रम में कहा कि अधिकारी उनकी बात नही सुन रहे है । पार्टी के नेता जमीन कब्जाने में लगे हुए है। ये कहकर एक तरह से उन्होने अखिलेश पर निशाना साधा था क्योकि जहां सरकार में मुख्यमंत्री अखिलेश है वहीं पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी तब अखिलेश ही थे। उन्होंने ये भी कहा कि अगर ऐसा ही रहा तो वो अपने पद से इस्तीफा दे देगें।
मुख्य सचिव की तैनाती
आलोक रंजन के कार्यकाल खत्म होने के बाद अखिलेश यादव नहीं चाहते थे कि दीपक सिंघल को मुख्य सचिव बनाया जाए लेकिन शिवपाल के दबाव के चलते सिंघल को मुख्य सचिव बनाया गया। सिंघल पिछले 4 साल से शिवपाल के सिंचाई विभाग में प्रमुख सचिव थे। सिंघल के मुख्य सचिव बनने के बाद कई ऐसे मौके आए, जब सिंघल पर सीएम ने चुटकी ली। हालांकि, दो महीने भी नहीं बीते और अखिलेश ने सिंघल को हटाकर राहुल भटनागर को मुख्य सचिव बना दिया।
डीपी यादव का टिकट कटना
2012 में चुनाव के समय प्रचार की कमान अखिलेश यादव के हाथ में थी। ऐसे में जब माफिया डीपी यादव को टिकट देने का मामला आया तो उन्होंने इसका विरोध किया। जबकि शिवपाल चाहते थे कि डीपी यादव को टिकट दिया जाए। बाद में अखिलेश के विरोध के चलते शिवपाल की नहीं चल पाई और यादव को टिकट नहीं दिया गया।
बिहार चुनाव में गठबंधन पर आमने-सामने
जब बिहार में चुनाव हो रहे थे, उस समय महागठबंधन में सपा के शामिल होने पर शिवपाल सहमत थे, लेकिन अखिलेश और रामगोपाल यादव इससे सहमत नहीं थे। बाद में सीटों के बंटवारे को लेकर सपा ने महागठबंधन से खुद को अलग कर लिया। वहीं, रामगोपाल को अखिलेश के पाले का और शिवपाल यादव का प्रतिद्वंदी माना जाता है।
फिल्म विकास परिषद के अध्यक्ष का मामला
फिल्म विकास परिषद के मामले में भी चाचा-भतीजे के बीच में 36 का आंकड़ा देखने को मिला। बताया जाता है कि शिवपाल के नजदीकी माने जाने वाले अमर सिंह चाहते थे कि जया प्रदा को फिल्म विकास परिषद का अध्यक्ष बनाया जाए। शिवपाल भी इस पर सहमत थे, लेकिन अखिलेश ने गोपाल दास नीरज को फिल्म विकास परिषद का अध्यक्ष बना दिया। इसके बाद अमर सिंह काफी आग बबूला भी हुए। फिर दबाव में आकर अखिलेश ने जया प्रदा को फिल्म विकास का वरिष्ठ उपाध्यक्ष बना दिया।
मथुरा का जवाहर कांड
मथुरा में हुए जवाहर कांड में भी शिवपाल और अखिलेश यादव के बीच अनबन दिखाई दी। दरअसल, मीडिया में जिस तरह से खबरें सामने आईं कि शिवपाल कई बार रामवृक्ष से मुलाकात कर चुके हैं, उससे अखिलेश बिल्कुल खुश नहीं थे।