लखनऊ। शुक्रवार से चला समाजवादी का नाटकीय घटनाचक्र रविवार को मुख्यमंत्री अखिलेश व रामगोपाल द्वारा बुलाए गए विशेष अधिवेशन में अखिलेश को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने, शिवपाल को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाने तथा अमरसिंह को पार्टी से बर्खास्त करने के संकल्प प्रस्ताव के साथ ही पार्टी को दो फाड़ कर गया।
इस अधिवेशन के बाद यह तय हो गया कि जैसे शुक्रवार को मुलायमसिंह द्वारा अखिलेश-रामगोपाल को बर्खास्त करने का निर्णय अल्पकालिक था। उसी प्रकार शनिवार को आजम खां की मध्यस्थता से हुई एकता भी अल्पकालिक रही।
समाजवादी पार्टी में यूं तो यह घटनाक्रम बीते 6 माह से चल रहा था किन्तु समझा जा रहा था कि विधानसभा के चुनावों को देखते हुए पार्टी के महत्वाकांक्षी नेता एकता बनाए रखेंगे। किन्तु सपा के प्रदेश अध्यक्ष बनते ही शिवपाल द्वारा किए गए मनमाने निर्णयों ने बात इतनी आगे बढ़ा दी कि दोनों पक्ष एक-दूसरे के विरुद्ध आ गए।
इसी के चलते शुक्रवार को मुलायम से अखिलेश-रामगोपाल को 6 वर्ष के लिए निष्कासित कराया गया तो शनिवार को आजम खां की मध्यस्थता के चलते महज 24 घंटों के अंदर इसे वापस ले पार्टी में फिर से एकता के संदेश दिए जाने लगे।
किन्तु निलम्बन की तरह यह एकता भी 24 घंटे न चली और रविवार के अधिवेशन में अखिलेश को पार्टी अध्यक्ष बनाने, शिवपाल को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाने तथा अमरसिंह का निष्कासन किए जाने के प्रस्ताव के साथ पार्टी में अखिलेश ने अपनी अलग राह बना ली।
शिवपाल की प्रतिक्रिया का रहेगा इंतजार
यूं रविवार की सुबह मुलायमसिंह द्वारा रामगोपाल द्वारा बुलाए अधिवेशन में जाने वालों के खिलाफ कार्यवाही की चेतावनी देकर अपने इरादे स्पष्ट कर दिए गए थे। किन्तु देखना होगा कि समाजवादी पार्टी के अधिकतर नेताओं के अखिलेश के पक्ष में खड़े हो जाने के बाद मुलायमसिंह व शिवपाल सिंह क्या प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं।
सबसे बड़ा सवाल- किसे मिलेगा
साइकिल चिहन सपा के इस विभाजन के बाद एक बड़ा सवाल यह भी उभरा है कि समाजवादी पार्टी के किस गुट को चुनाव आयोग की मान्यता रहेगी तथा किसे साइकिल चुनाव चिहन के प्रयोग का अधिकार रहेगा।
अगर चुनाव आयोग द्वारा राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह द्वारा असंवैधानिक घोषित किए गए इस सम्मेलन के निर्णयों को अस्वीकार किया जाता है तो अखिलेश पार्टी के समक्ष एक बड़ा संकट खड़ा हो जाएगा।
वहीं, अगर आयोग इस अधिवेशन के प्रस्ताव के अनुरूप अखिलेश का दावा स्वीकार लेता है तो मुलायम सिंह-शिवपाल गुट के पास निर्दलीय लड़ने के अलावा दूसरा विकल्प नहीं बचेगा।