कोलकाता। शारदा चिटफण्ड मामले की चार्जशीट में तृणमूल के निलम्बित सांसद कुणाल घोष का नाम नहीं होने पर नया राजनीतिक विवाद उत्पन्न हो गया है।
सीबीआई ने शारदा मामले की आखिरी चार्जशीट पेश की थी उसमें कुणाल घोष का नाम नहीं था। इसके चलते कलकत्ता हाईकोर्ट से कुणाल घोष को जमानत भी मिल गई। कुणाल घोष अबतक अन्तरिम जमानत पर थे।
इस बीच पूर्वी क्षेत्र बीएसएनएल की सलाहकार समिति के चेयरमैन के तौर पर कुणाल घोष को मनोनीत किए जाने की खबरों से राजनीतिक अटकलबाजी शुरू हो गई है।
पहले चार्जशीट से कुणाल घोष का नाम हटने और फिर केन्द्र सरकार के किसी उपक्रम में कुणाल घोष को प्रतिष्ठित पद दिए जाने से उनके भाजपा में जाने की अटकलें तेज हो गई हैं।
इससे पहले रोजवैली मामले में तृणमूल सांसद सुदीप बनर्जी की गिरफ्तारी के बाद राज्य में भाजपा कार्यालयों पर हुए हमले को लेकर कुणाल घोष ने तृणमूल पर निशाना साधा था। उन सभी घटनाओं को जोडकर राजनीतिक हलकों में कुणाल घोष के भाजपा में जाने की अटकलें लगाई जा रही हैं।
विरोधी पार्टियों का आरोप है कि राजनीतिक उद्देश्य से कुणाल घोष का नाम चार्जशीट से हटाया गया। कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का ये भी मानना है कि नोटबन्दी को लेकर तृणमूल कांग्रेस के विरोध को काबू करने में कुणाल घोष भाजपा के लिए उपयोगी हो सकते हैं। इसलिए उन्हें केन्द्र की ओर से छूट दी जा रही है।
इस बीच शुक्रवार को ही कलकत्ता हाईकोर्ट ने कुणाल घोष की जमानत मंजूर की थी। आरोप पत्र में नाम नहीं होने की वजह से कुणाल घोष की जमानत मंजूर की थी।
कुणाल घोष पिछले कुछ समय से अन्तरिम जमानत पर थे। हाल ही में उनकी अन्तरिम जमानत बढाई गई थी।