सिरोही। छोटे नेता बडी मुसीबत में फंसते नजर आ रहे हैं। हो यूं रहा है कि छुटके नेता के जीतने के बाद उनकी जाति वालों का आतंक बढ गया। पिछले महीने शहर में आतंक फैलाया तो शहरवासी आजीज आ गए। अब हाल ही में छुटके नेता की जाति के लोगों के साथ उनकी कथित समर्थक जाति के लोगों की मारपीट हो गई। अब छोटे नेता धर्मसंकट में आ गए हैं। वह किसकी तरफ से बोलें।…
अपनी जाति का विरोध कर नहीं सकते और उनकी कथित समर्थक जाति के लोगों पर भी कार्रवाई का दबाव नहीं बना सकते। यदि येनकेन प्रकारेण समझौता करवा भी लेते हैं तो एक जाति के लोगों के आत्मसम्मान को गिरवी रखना पडेगा। कुल मिलाकर समर्थन वह कर नही सकते तो आत्मसम्मान को गिरवी रखकर समझौता करना ही एक रास्ता बचेगा।
वैसे कथित समर्थक जाति के लोग भी छोटे नेता से सिरोही नगर परिशद के सभापति पद की उम्मीद लगाए बैठे हैं तो उन्हें भी अपनी जाति का अगुवा बनकर मामले को ठंडा करने की मजबूरी होगी। इन नेताओं की लालसा में दोनों में से किसी एक की जाति को खून का घूंट पीना पडेगा।
वैसे एक बात और गौर करने की है कि छह महीने पहले एक अन्य जाति से हुई मारपीट के मामले में छुटके नेता और उनकी कथित समर्थक जाति मे ं सिरोही नगर परिषद सभापति के सबसे बडे दावेदार माने जा रहे एक और नेता एक सुर में सुर मिलाकर उनके विरोध में अधिकारियों के सामने पैरवी करते कैमरे कैद हो गए थे। यह बात अलग है कि कैमरे में उनकी बात कैद होने की बात सार्वजनिक होने पर दोनों के पांव से जमीन सरक गई थी।
यह गंदगी दिखती नहीं
बडके और छुटके नेता अपने समर्थकों के साथ जुटे। संकल्प करने के लिए कि साहब सफाई करनी है। पूछा किसकी तो बात आई सडक पर फैली गंदगी की। खबरची से चुप नहीं रहा गया तो समर्थकों के बीच में ही जबान खोल दी।
पूछा कि भाई जो गंदगी बडके और छुटके नेता फैला रहे हैं उसकी सफाई कौन करेगा। तो समर्थक पूछ बैठे कि खबरिये ये तो बता कौनसी गंदगी। खबरची ने भी आइना दिखा दिया और बोला जातिवाद, भ्रश्टाचारियों को संरक्षण, अतिक्रमण, जनहित को तिलांजलि,षराब माफिया और न्यायालयों के निर्देषों को ठेंगा दिखाने वालों के पक्ष में पैरवी, देष के उच्च सदनों की गरिमा को ताक में रखने, अपने ही मंत्रियों की बातों को दरकिनार करने की गंदगी।
खबरची की बात सुनकर समर्थक भी चुप और बोले क्या करें भइया अंधेरगर्दी तो इन लोगों ने बढाई ही है और उपर भी सुनवाई नहीं है। अब तो स्थानीय निकाय और पंचायत चुनावों में जनता ही इनकी बुद्धि हरी करे तो इन्हें अक्ल आए।
नेताजी के बगल में शिक्षा की दुकान
नेताओं से एक और बात याद आ गई। जिले के छोटे नेताओ में से एक नेता के समर्थक छात्रसंघ चुनाव से पहले एक राग अलाप रहे थे। शिक्षा के व्यापार को रोकने की। टृयूशनखोरी रोकने की। खबरची के दिमाग में एक बात तब भी खटक रही थी और अब भी खट्क रही है।
वो ये कि छुटके नेता के बगल में शिक्षा की यह दुकान तब भी चल रही थी और अब भी चल रही है। एक बात और इस तरह के आन्दोलन पूर्व मे करने वाले अब खुद शिक्शा के सब्से बदे व्यवसायी हो गये है. यह बात अलग है कि छुटके नेता के सथर्मक टृयूशन की दुकान का राग साल में एक बार छात्रसंघ चुनाव से पहल ेही अलापते हैं,इसके बाद इनके सुर या तो बंद हो जाते हैं या कर दिए जाते है। कारण हमें पता है पर बता नहीं सकते क्योंकि यह पब्लिक सब जानती है।