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अधिकारियों के नकारेपन से रूबरू हुए प्रभारी सचिव - Sabguru News
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अधिकारियों के नकारेपन से रूबरू हुए प्रभारी सचिव

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अधिकारियों के नकारेपन से रूबरू हुए प्रभारी सचिव

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सबगुरु न्यूज-सिरोही। आखिर प्रभारी सचिव भी शुक्रवार को सर्किट हाउस में यह तो समझ गए कि सिरोही जिला मुख्यालय पर नकारे अधिकारियों का जमावड़ा लगा हुआ है।
सिटीजन फॉरम के सदस्य जब शुक्रवार को सर्किट हाउस में प्रभारी सचिव आनन्द कुमार से मिले और सिरोही की समस्याओं से अवगत करवाया तो उनके हाव भाव और मौके पर मौजूद अधिकारियों के जवाबों से उन्होंने यह तो भांप लिया कि सरकार और प्रशासन की छवि को जनता की नजर में दुरुस्त करने वाला कोई जिम्मेदार अधिकारी जिले में तैनात नहीं है, इसके बावजूद यह बात समझ से परे है कि यह अधिकारी यहां पर टिके हुए किसकी शह पर हैं। वहीं शनिवार को प्रभारी मंत्री से सिटीजन फॉरम की मुलाकात के दौरान भी अधिकारियों के नकारापन की बात प्रमुखता से सामने आई।
अब ऐसे में सवाल यह है कि आखिर सरकार की छवि खराब करने वाले अधिकारियों की जिले में के टिके हुए होने के पीछे सरकार की क्या भूमिका है, यदि सरकार या भाजपा का सिरोही की जनता को ऐसे नकारे अधिकारियों की फौज से उत्पीडि़त करवाने की मंशा नहीं है तो आखिर सिरोही को नकारे अधिकारियों का अभयारण्य कैसे बनाया हुआ है।
सरकार के मंत्री शुद्धीकरण की बात करते हैं तो सिरोही से नकारे नौकरशाहों की ओवर ऑयलिंग करके यहां की प्रशासनिक मशीनरी को जनहित में काम करने के लिए रवा करने की सख्त आवश्यकता है। पूर्व विधायक संयम लोढ़ा कांग्रेस के समय में जिले को प्रशासनिक अधिकारियों को डस्टबिन करार दे चुके हैं और भाजपा में भी जिला डस्टबिन ही बना हुआ है।
सचिव की नजर में यूं संदिग्ध बने अधिकारी
दरअसल, सिटीजन फॉरम के सदस्यों ने जब खसरा नम्बर 1218 की जांच को छह महीने से पूरी नहीं करने की बात कही तो प्रभारी सचिव ने मौके पर ही जांचकर्ता अधिकारी से इसका कारण पूछ लिया। जवाब मिला कि सर ऑरीजनल फाइल नहीं है। तो सचिव ने कहा कि दस्तावेज ही सील कर दो। इतना अधिकार तो है ही।
जांचकर्ता अधिकारी बोले कि राज्य सरकार को भी लिखकर भेजा है। प्रभारी सचिव ने भी सवाल दाग दिया कि ऐसी स्थिति में क्या किया जाना चाहिए वह किया जाना चाहिए, जांच को लम्बित रखने का कोई औचित्य ही नहीं है।
अब सवाल यह उठता है कि जिले के प्रशासनिक अधिकारियों को यह पता है कि लम्बे समय से कब्जे में चल रही दुकान को सीआरपीसी की धारा 133 के तहत न्यूसेंस बताकर कैसे पंद्रह अगस्त को तुड़वाकर किरायेदार को बेदखल किया जाता है यह भी पता है कि शांतिभंग के आरोपी को किस तरह से पांच दिन तक जमानत नहीं होने देने के लिए परेशान किया जाता है। तो क्या यह नहीं पता है कि किस तरह से सरकारी जमीनों को खुर्द-बुर्द करने वालों के खिलाफ जांच को पूरी करने के लिए किस तरह से दस्तावेजों को हासिल किया जाता है।
दूसरा मामला चिकित्सालय का था, जिसमें बताया गया कि किस तरह से एक चिकित्सक के ऑपरेशन करवाने के लिए ऐनेस्थिसिया उपलब्ध करवा दिया जाता है और दूसरे के लिए मना करके गरीब मरीजों का उत्पीडऩ किया जाता है। इस तरह की स्थानीय स्तर पर सुलझने वाली समस्याओं के उन तक पहुंचने पर प्रभारी सचिव आनन्दकुमार को यह कहना पड़ा कि जिला मुख्यालय पर ही हल की जा सकने वाली समस्याएं उन तक नहीं आने देनी चाहिए।

वैसे चर्चा यह भी है कि मालाओं के बोझ के तले दबे जांच अधिकारी जानबूझकर इसमें देरी कर रहे हैं। वैसे नगर परिषद के खातों की जांच करके यह पता लगाया जाए कि नगर परिषद के बजट से किन-किन प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों ने अपने घर और दफ्तर चमकाए हैं तो अपने आप ही नगर परिषद के फर्जीवाड़ों की जांच में की जा रही देरी कीे पोल खुल जाएगी।

प्रभारी मंत्री भी प्रशासनिक गैरजवाबदेही से शिकार
इसमें कोई दो राय नहीं है कि जिले में प्रभारी मंत्री आम जनता में अपनी साख पूरी तरह से खो चुके हैं। उन्हें इस स्थिति में पहुंचाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण भूमिका अकर्मण्य बहरी हो चुकी सरकार की आलाकमान के साथ-साथ इन अधिकारियों की भी भूमिका है।
डाक बंगले में शनिवार को सिटीजन फॉरम की प्रभारी मंत्री के साथ बैठक के दौरान जिले के प्रशासन और पुलिस के आला अधिकारियेां की अकर्मण्यता की बात उदाहरणों के साथ बताई गई तो खुद प्रभारी मंत्री भी लाजवाब हो गए। उन्होंने भी इन अधिकारियों पर अंकुश लगाने के लिए अपने वैयक्तिक सहायक को नियमित रूप से अखबारों में प्रकाशित होने वाली जनसमस्याओं को अपने ही कार्यालय से जिला कलक्टर और संबंधित विभाग के सचिव को जयपुर भेजने के लिए आदेश भी दे दिए।
अब इस पर अमल कितना होता है यह वक्त बताएगा, लेकिन जिले में प्रशासनिक मशीनरी पर अपने कार्यालय से मॉनीटरिंग के आदेश दिए जाने से यह तो तय है कि अब वह भी मानने लगे हैं, जिले में गैर संवेदनशील अधिकारियों की फौज तैनात हुई है। ऐसे में सरकार प्रशासन और पुलिस में एक साल से ज्यादा समय से बैठकर कुर्सी तोडऩे और सत्ताधारी दल की कुर्सी खिसकाने में भूमिका निभाने वाले अधिकारियों की रवानगी की तैयारी करनी चाहिए।