भोपाल। समाजदर्शन का मूल रजोदर्शन है अगर किसी महिला में रजोदर्शन नही होता तो उस महिला में अधूरापन होता है और जिस महिला में गर्भाशय नहीं है वो महिला स्वयं को पूर्ण नहीं समझती है।
उक्त बातें ‘‘मातृत्व गौरव’’ विषय पर व्याख्यान देते हुए गर्भ संस्कार विशेषज्ञा श्रीमती थानकी ने गर्भ संस्कार तपोवन केन्द्र, अटल बिहारी वाजेपयी हिंदी विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित एक दिवसीय व्याख्यान में कही।
पुरानी विधानसभा में स्थित केन्द्र में उन्होने कहा की जब बच्चा माँ के गर्भ में 9 महीनों तक रहता है तो उसे आहार पोषण और विचार, उसे माँ से जुडे नाभिनाल से प्राप्त होता है। जिस कारण जच्चा और बच्चा उस दौरान पूर्ण रूप से एक दूसरे से जुड़े रहते है। जिसके कारण जच्चा द्वारा किया गया विचार बच्चे पर पूर्ण रूप से पडता है।
अपनी संतती को हम धार्मिक और चरित्रवान प्राप्त कर सकते है। बशर्ते हम योग अभ्यास और ध्यान आदि करें। भगवान की व्यवस्था बड़ी अनोखी है। गर्भ के दौरान जो महिला धार्मिक प्रवृत्ति की होती है। उसकी पीयूष ग्रन्थि असाधारण रूप से सक्रिय हो जाती है जिससे भगवान द्वारा प्रदत्त आहार (माँ का दूध) सम्पूर्ण रूप से प्राप्त होता है।
थानकी ने कहा की यह अनुभव में आया हे की गुजरात के अग्निहोत्र परिवार सायं में 15 मिनट का यज्ञ करते थे और उनकी पत्नि गर्भस्थ थी तो पेट में पलने वाला गर्भस्थ शिशु यज्ञ में सहभागी होता था। अतः जच्चे और बच्चे का वैचारिक समन्वय होने से निष्चित रूप से संतति संस्कारित पैदा होती है। चाहे वह झोपड़ी में जन्म ले या महल में। उन्होने कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय गर्भ संस्कार तपोवन केन्द्र के द्वारा बीज बनाने का काम चल रहा है जैसा की फसल उपजाने वाले कुछ किसान किया करते है।
महिला एवं बाल विकास मंत्री माया सिंह ने कहा है कि शासन को जच्चा और बच्चा दोनों के स्वास्थ्य की चिंता रहती है। क्योंकि अगर माँ कुपोषित होगी तो बच्चा निष्चित रूप से कुपोषित होगा इसलिए सरकार पौष्टिक आहार से वंचित महिलाओं को पौष्टिक आहार उपलब्ध कराने के लिए दृढ़ संकल्पित है। उन्होने जोर देते हुए कहा की समाज का तानाबाना बिगड़ रहा है। समाज में विकृतियाँ पनप रही है। कन्या भ्रूण हत्या आम हो चुकी है।
जिस पुरूष को महिला जन्म देती है, वही पुरूष महिलाओं को अपना शिकार बनाते है। निर्भया काण्ड के बाद देखा गया की आने वाली पीढ़ी को संस्कारित करना चुनौती के रूप में सामनें आया है अतः गर्भ संस्कार के माध्यम से हिंदी विष्वविद्यालय के द्वारा आने वाली संतति को संस्कारित करने का जो संकल्प लिया है, उसको साकार करने के लिए महिला एवं बाल विकास विभाग मध्यप्रदेश शासन सहयोग करेगा।
महिला एवं बाल विकास विभाग के प्रधान सचिव जे. एन. कन्सोटिया ने कहा कि माँ के गर्भ में शिशु आने के साथ ही संस्कार का कार्य प्रारम्भ हो जाता है। शासन जच्चे-बच्चे की भौतिक व्यवस्था को देखती है, साथ ही मानसिक विकास के लिए प्रत्येक मंगलवार को गर्भस्थ महिला और शासन के बीच एक वार्तालाप का संचालन होता है।
जिसमें गोद भरायी और नामकरण का संस्कार का कार्यक्रम विधिवत रूप से पूर्ण किया जाता है। उन्होने कहा की आदिवासी क्षेत्र गरीबी से त्रस्त है। पोषा आहार की समस्या व्याप्त है, जिसे पूर्ति करने के लिए शासन दृढ़ संकल्पित है। मजदूरी करने वाले लोगों के लिए संस्कार एक गंभीर चुनौती है। जिससे निपटा जाना अत्यंत आवश्यक है।
विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. मोहनलाल छीपा ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कहा कि हम तपोवन केन्द्र के माध्यम से ऐसे संस्कारवान संतति चाहते है, मूल्यों की प्रतिष्ठा में अपना योगदान दे। उन्होने नव दम्पत्तियों से आग्रह किया कि उनकी संतति बाय चांस पैदा न होकर बाय चौइस पैदा हो। इसके लिए उन्होने शासन के साथ मिलकर काम करने का आग्रह किया।
इस अवसर पर केन्द्र द्वारा प्रशिक्षित रंजिता शर्मा के नवजात शिशु का नामकरण ’’शिरोधार्य’’ के रूप में महिला एवं बाल विकास मंत्री मायासिंह ने किया साथ ही इस अवसर पर स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. के. ढ़ोटकर और डॉ. सरिता अग्रवाल, व अर्चना तिवारी उपस्थित थे, तथा धन्यवाद ज्ञापन गर्भ संस्कार तपोवन की प्रशिक्षिका बबीता सोलंकी ने किया।