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शायरों ने गर्म की दिल्ली की सर्द शाम - Sabguru News
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शायरों ने गर्म की दिल्ली की सर्द शाम

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शायरों ने गर्म की दिल्ली की सर्द शाम
शायरों ने गर्म की दिल्ली की सर्द शाम
shaayaron ne garm kee dillee kee sard shaam
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दिल्ली के मशहूर शंकर-शाद मुशायरे में नामचीन शायरों ने अपने कलामों से सर्द शाम में गर्मी ला दी। हर साल की तरह शनिवार की शाम यहां उर्दू शायरी की 52वीं महफिल सजी और श्रोताओं ने उर्दू की अर्थपूर्ण रचनाओं में गहरी दिलचस्पी दिखाई।

महफिल में अनवर जलालपुरी (लखनऊ), प्रो. वासीम बरेलवी (बरेली), पॉपुलर मेरठी (मेरठ), मंजर भोपाली (भोपाल), इकबाल अशर (दिल्ली), डॉ. गौहर रजा (दिल्ली), इफ्फत जरीन (दिल्ली), नवाज देवबंदी (देवबंद), शीन काफ निजाम (जोधपुर), डॉ. कलीम कैसर (गोरखपुर), सबिका अब्बास नकवी (लखनऊ), अजहर इकबाल (मेरठ) खुशबीर सिंह शाद (जालंधर), नौमन शौक (दिल्ली) और मनीष शुक्ला (लखनऊ) ने खूब रंग जमाया।

शंकर लाल मुरलीधर सोसायटी द्वारा आयोजित शंकर-शाद मुशायरा डीसीएम की विरासत सर शंकरलाल शंकर और लाला मुरलीधर शाद की स्मृति में आयोजित किया जाता है। शंकर और शाद सामाजिक, शैक्षिक व दिल्ली की सांस्कृतिक धरोहर को बचाने में अपने योगदान के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने राष्ट्रीय राजधानी में सालाना मुशायरे की शुरुआत सन् 1953 में की थी।

इस मुशायरे का महत्व इसलिए है कि इसमें वर्षो पहले यहां जोश मलिहाबादी, जिगर मुरादाबादी, फैज अहमद फैज, कैफी आजमी, अली सरदार जाफरी जैसे प्रख्यात उर्दू कवि अपनी रचनाएं श्रोताओं के सामने पेश कर चुके हैं।

मुशायरे की शुरुआत शमा जलाने के साथ हुई, जिसके बाद प्रसिद्ध कवि व संचालक अनवर जलालपुरी ने उपस्थित मेहमानों को शायरों से रूबरू कराया। इस मुशायरे में ज्यादातर शायरी जिंदगी की कश्मकश को रोचक अंदाज में बयां कर गई।

लखनऊ की शायरा सबिका अब्बास नकवी ने कहा, “हम आजाद ख्याल की शायरी लिखते हैं और यही हमने आज यहां पेश की है। हमने जिंदगी के विभिन्न पहलुओं को छूने की कोशिश की। दिल्ली के लोगों ने बड़े इत्मीनान से हमें सुना, सराहा.. शुक्रिया!”

इस मौके पर शंकर लाल-मुरलीधर मेमोरियल सोसायटी के अध्यक्ष माधव बी. श्रीराम (डीसीएम श्रीराम इंडस्ट्रीज ग्रुप के निदेशक) ने कहा, “हमारे पूर्वजों द्वारा शुरू किया ऐसा समागम है, जिसे हम युवाओं के बीच लाते हैं और हमारी कोशिश है कि यह विरासत आगे बढ़ती रहे, जो तहजीब व भव्यता इस भाषा की है, वह जीवंत रहे। मुझे स्वयं इसका भाव और आत्मीयता प्रेरित करती है, मुझे लगता है कि इस संस्कृति और कला के सच्चे अंदाज को संजोना आज के दौर में बहुत जरूरी है।