नई दिल्ली। कश्मीरी अलगाववादी नेता शब्बीर शाह और कथित हवाला कारोबारी मुहम्मद असलम वानी के खिलाफ मुकदमा चलाने का मार्ग कायम करते हुए बुधवार को दिल्ली की एक अदालत ने धन शोधन के एक मामले में आरोप तय कर दिए।
आरोपियों ने अपना दोष मानने से इंकार कर दिया और अपनी बेगुनाही साबित करने का दावा किया। इसके बाद अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सिद्धार्थ शर्मा ने मामले में गवाहों के बयान दर्ज करवाने के लिए तीन जनवरी की तिथि तय कर दी।
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने धनशोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत वानी और शाह के खिलाफ सितंबर में आरोप-पत्र दाखिल किए थे।
मामले में छह अगस्त को वानी को गिरफ्तार किया गया था, जिसने हवाला के जरिए शाह को 2.25 करोड़ रुपए देने की बात कबूल की थी।
2005 के धनशोधन के एक मामले में 25 जुलाई को शब्बीर को गिरफ्तार किया गया था। गौरतलब है कि 2005 में वानी को दिल्ली पुलिस के विशेष प्रकोष्ठ ने इसी मामले में गिरफ्तार किया था।
हालांकि अदालत ने आपराधिक साजिश व अन्य अपराधों में सह-आरोपी वानी को आरोपों से मुक्त करार दिया था। लेकिन आर्म्स एक्ट में उसे दोषी करार दिया गया था। यह जानकारी उसके वकील ने अदालत को दी।
प्रवर्तन निदेशालय ने पक्ष रखते हुए कहा है कि आयुध अधिनियम के तहत दोषी करार दिया जाना पीएमएलए के तहत कार्रवाई करने के लिए एक महत्वूर्ण सतर्कता का पहलू है।
दोनों आरोपियों ने अपने ऊपर लगे आरोपों से इन्कार किया है। अदालत के अवलोकन में पाया गया कि प्रतिबंधित आतंकी संगठप जैश-ए-मोहम्मद के सदस्य रहते हुए वानी ने दिल्ली से अवैध हलावा के जरिये धन इकट्ठा किया था, जोकि उसे पाकिस्तान के आतंकी गुटों व उनसे सहानुभूति रखने वालों से प्राप्त किया था। वानी ने यह धन विभिन्न मौकों पर सह-आरोपी शब्बीर शाह को कश्मीर में पहुंचाया था, जिसका मकसद घाटी में आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा देना था।
मामले में दोषी साबित होने पर शब्बीर शाह को कठोर कारावास की सजा हो सकती है, जोकि तीन साल से कम नहीं होगी। साथ ही, सजा सात साल तक भी हो सकती है। इसके अलावा उनपर जुर्माना भी लगाया जा सकता है।