इन दिनों राज्यसभा की रिक्त सीटों के लिए चुनाव की गहमागहमी चल रही है। विभिन्न राजनीतिक दलों ने इसके लिये अपने उम्मीदवार खड़े किये हैं तथा उनका प्रयास है कि उनके उम्मीदवार संसद के इस उच्च सदन के सदस्य बन सकें।
राज्यसभा चुनाव के लिए कुछ राजनीतिक दलों व प्रत्याशियों के लिए अंक गणित अर्थात् वोटों का समीकरण पूरी तरह उनके अनुकूल है तथा उन्हें चुनाव जीतने में या राज्यसभा के लिये अपना निर्वाचन सुनिश्चित कराने में कोई मुश्किल नहीं होगी। साथ ही कुछ राजनीतिक दल व उम्मीदवार ऐसे भी हैं जिनका समीकरण पूरी तरह जोड़तोड़ व वोटों के खरीद फरोख्त पर ही टिका हुआ है।
भारतीय लोकतंत्र के यह धुंधले व लजाऊ किरदार राज्यसभा चुनाव के लिये जिस तरह से खरीद-फरोख्त व क्रास वोटिंग को बढ़ावा देने में लगे हुए हैं वह बेहद शर्मनाक है। साथ ही इससे इस बात का भी सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि अगर ऐसे राजनीतिक विदूषकों को राज्यसभा के लिये निर्वाचित होने का मौका मिल जाएगा तो यह देश एवं भारतीय लोकतंत्र के लिए किस हद तक घातक होगा।
क्योंकि अभी जब राज्यसभा के निर्वाचन के लिए उनके द्वारा इस हद तक पैसे व जुगाड़ का इस्तेमाल किया जा रहा है तो फिर निर्वाचन के बाद तो उनके द्वारा अनैतिकता को बढ़ावा दिए जाने का दौर चरम पर होगा।
उल्लेखनीय है कि चुनाव आयोग को 11 जून को होने वाले राज्यसभा चुनावों के लिए कर्नाटक में कुछ उम्मीदवारों के पक्ष में वोट डालने के लिए विधायकों को पैसे की पेशकश किए जाने के स्टिंग ऑपरेशन की जानकारी मिली है। चुनाव आयोग द्वारा तीन जून को कर्नाटक के मुख्य निर्वाचन अधिकारी सीईओ से मामले के तथ्यों पर रिपोर्ट देने को कहा गया था।
इस स्टिंग ऑपरेशन में कथित तौर पर विधायकों को राज्य की चार राज्यसभा सीटों के लिए होने वाले चुनाव में अपने वोटों के लिए पैसे के लेनदेन पर बात करते दिखाया गया था। वैसे यह प्रथम दृष्टया आचार संहिता के उल्लंघन का गंभीर मामला है।
चुनाव आयोग द्वारा स्टिंग ऑपरेशन की रॉ फुटेज मंगाकर जांच करने की बात कही जा रही है। रिपोर्ट तैयार करके उसे मुख्य चुनाव आयुक्त के समक्ष पेश किया जाएगा। इसके पश्चात चुनाव आयोग बैठक करेगा जिसमें रिपोर्ट पर चर्चा की जाएगी।
उल्लेखनीय है कि स्टिंग ऑपरेशन में राज्यसभा सदस्यों के चुनाव से पहले एचडी देवेगौड़ा की पार्टी जेडीएस के विधायक मल्लिकार्जुन खूबा, राम, बी आर पाटील और वर्थुर प्रकाश क्रास वोटिंग के लिए पैसे के लेन-देन की बात करते नजर आए।
कर्नाटक की चार राज्यसभा सीटें राजनीतिक दलों के लिए प्रतिष्ठा का मुद्दा बन गई हैं। यहां कांग्रेस ने ऑस्कर फर्नांडीस, जयराम रमेश और पूर्व आईपीएएस के सी रमामूर्ति को मैदान में उतारा है। भाजपा की ओर से निर्मला सीतारमण कर्नाटक से राज्यसभा उम्मीदवार हैं। इसके साथ ही रियल एस्टेट कारोबारी बी एम फारुक जेडीएस के प्रत्याशी हैं।
वैसे अगर देखा जाए तो देश की संसद के उच्च सदन अर्थात् राज्यसभा के चुनाव की प्रक्रिया पूर्णरूपेण शुचितापूर्ण होनी चाहिए। राज्यसभा की उपयोगिता व प्रासंगिकता ही इस अवधारणा पर केन्द्रित है कि संसद के उच्च सदन के लिये योग्य व्यक्ति निर्वाचित हों। जो देश एवं लोक महत्व के मुद्दों पर राज्यसभा में सार्थक चर्चा एवं बहस के माध्यम से देशहित व जनहित के लिये अपना योगदान सुनिश्चित कर सकें।
लेकिन पिछले कुछ वर्षों से राज्यसभा निर्वाचन के लिए जो गलत तरीके अपनाए जा रहे हैं, वह शर्मनाक हैं। स्थिति यह है कि राजनीतिक व लोक संस्कारों से पूरी तरह विमुख ऐसे लोग राज्यसभा सदस्य बनने में सफल हो रहे हैं जो आर्थिक कदाचार के आरोपी होने के साथ-साथ अन्य तरह के सवालों से घिरे हुए हैं लेकिन वह पैसे तथा अपने प्रभाव के दम पर यह चुनावी विजय हासिल करने में सफल हो रहे हैं।
कर्नाटक में राज्यसभा चुनाव के लिए विधायकों की खरीद-फरोख्त का यह जो ताजातरीन मामला उजागर हुआ है, यह तो एक बानगी है। कई बार तो ऐसा होता है कि ऐसे निर्वाचन के लिए तमाम तरह की धांधली को अंजाम दे दिया जाता है तथा मामले उजागर नहीं होते।
राज्यसभा निर्वाचन के लिए अपनाए जा रहे इन अनैतिक तरीकों के लिये पूरी तरह से देश के राजनीतिक दल व राजनेता जिम्मेदार हैं जो किसी भी तरह से राज्यसभा में अपना संख्याबल बढ़ाने के लिये पूरी ताकत झोंक देते हैं। आर्थिक समीकरणों के दम पर या अन्य उपलब्ध अवसरों की मदद से भले ही राज्यसभा के लिए वोटों का यह अंक गणित अपने अनुकूल बना लिया जाए लेकिन इसके दूरगामी नतीजे घातक ही होंगे।
वैसे चुनाव आयोग द्वारा देश की निर्वाचन व्यवस्था का स्वच्छ व शुचितापूर्ण बनाने के लिये जिस तरह से प्रयास किये जा रहे हैं उसी प्रकार के प्रयास राज्यसभा व विधान परिषदों के लिये भी होना चाहिये। जिसके तहत चुनाव आयोग द्वारा ऐसे मापदंड निर्धारित किए जाएं जो अवांछनीय लोगों को इन संवैधानिक निकायों का सदस्य बनने से रोकने में अपनी प्रभावी भूमिका निभाएं।
सुधांशु द्विवेदी