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देश की पहली महिला नाई | mahila nai
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‘शांता बाई’ देश की पहली महिला नाई

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‘शांता बाई’ देश की पहली महिला नाई

जहां एक ओर महिलाओं और पुरुषों में समानता का मुद्दा आए दिनों खबरों छाया रहता है वहीं देश के दूर दराज इलाके कि शांताबाई बरसों से ऐसा काम कर रहीं है, जिसे करते हुए आज कि मॉडर्न लड़कियां को भी एक झिझक होगी।

जी हां, क्योंकि शांताबाई देश कि पहली महिला नाई है और मर्दो कि शेविंग यानी हजामत करती है। भारत में अक्सर हमें सैलून पर आदमी ही हजामत करते नजर आते हैं। इसलिए जिस समाज में सालों से इसे मर्दों ही का काम समझा जाता है। वहीं 40 साल पहले महाराष्ट्र की शां​ता बाई ने इस मानसिकता को तोड़ा।

शांता बाई ने यह काम चार बेटियों को पालने के लिए शुरू किया है और अब कहती हैं कि अब ये सिर्फ उस्तरा नहीं, मेरी आजादी का प्रतीक है। उनकी इसी हिम्मत और लगन के चलते उन्हें पुरस्कार भी मिल चुका है।

पति के मौत के बाद टूट परेशानियों का पहाड़

12 साल की उम्र में शांता बाई कि शादी श्रीपति यादव से हुई, जो कि नाई का काम किया करते थे। साथ ही नाई के अलावा खेती भी किया करते थे, श्रीपति की काम के प्रति लगन देखकर हसुरसासगिरी गांव के सभापति हरिभाऊ कदुकर ने उसे परिवार समेत अपने यहां बुला लिया।

इस गांव में एक भी नाई नहीं होने से श्रीपति की अच्छी कमाई होने लगी, लेकिन धीरे-धीरे परिवार और खर्च बढ़ते गए। 1984 में हार्ट अटैक से श्रीपति की मौत हो गई। इसके बाद शांताबाई के सामने रोजी-रोटी की परेशानी आ गई। गरीबी और तंगहाली से परेशान होकर एक बार तो शांताबाई ने बेटियों के साथ जहर खाने का फैसला कर लिया, लेकिन अंत में शांता ने हार न मानकर उस्तरा थाम कर नाई का काम शुरू कर दिया।

इतना ही नहीं शांता ने 50 रु पर मजदूरी भी की। गांव की होकर एक विधवा अगर नाई का काम करे तो आप समझ सकते हैं कि यह कितना चुनौतीपुर्ण रहा होगा। शांता बाई का कहती है कि मैं नहीं सोचती कि लोग मेरे काम को लेकर क्या बोलते हैं, या क्या सोचते हैं। मैं बस अपना काम करूंगी और करती रहूंगी।

मिल चुका है पुरस्कार

गांव के लोगों ने उसका जमकर मजाक उड़ाया। कहा कि क्या बेहुदा काम करने लगी है ये औरत। ऐसे में शांताबाई के पहले कस्टमर बने गांव के सभापति। इसके बाद वह बच्चों को पड़ोसी के घर छोड़कर 4-5 गांवों में हजामत के लिए जाने लगी। वह कटिंग और सेविंग के लिए 1 रुपए चार्ज करती थीं। जल्द ही मवेशियों के भी बाल काटने लगीं, इसके लिए 5 रुपए मिल जाते थे। शांताबाई की कहानी धीरे-धीरे लोगों के बीच चर्चा बन गई।

तब एक लोकल अखबार ने इसे कवर पेज पर छापा। नाई समाज के लिए एक प्रेरणादायक काम करने के लिए उन्हें रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इस घरेलु महिला ने कभी सोचा नहीं था कि उसे ऐसा भी काम करना पड़ेगा, जो समाज के लिए एक मिसाल होगा। वे अब करीबन 70 साल की हो चुकी हैं, लेकिन आज भी लोगों की हजामत करती हैं। उनकी चारों बेटियों की शादी हो गई।