नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि सुनंदा पुष्कर की मौत पर खबर प्रसारित करने के रिपब्लिक टीवी के अधिकार पर रोक नहीं लगाई जा सकती है, लेकिन खबर संतुलित होनी चाहिए।
अदालत ने यह भी कहा कि कांग्रेस सांसद शशि थरूर को इस मामले में बोलने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। हाईकोर्ट ने मीडिया को भी यह कहते हुए फटकार लगाई कि जांच के अधीन या विचाराधीन मामलों की खबरों में वह किसी को अभियुक्त करार नहीं दे सकता है और न ही किसी के बारे में दोषी होने का संकेत दे सकता है या अप्रमाणित दावे कर सकता है।
न्यायाधीश मनमोहन ने निर्देश दिया कि थरूर से संबंधित किसी खबर का प्रसारण करने से पहले समाचार चैनल थरूर की राय जानने के लिए उनको इलेक्ट्रॉनिक मोड में एक लिखित सूचना देगा।
अदालत ने कहा कि अगर वादी (थरूर) यथोचित समय के भीतर अपनी राय देने से इन्कार करते हैं या जवाब नहीं देते हैं तो उनको बाध्य नहीं किया जाएगा और खबर का प्रसारण यह बताते हुए किया जाएगा कि वादी ने प्रतिवादी (चैनल) को कुछ बताने से इन्कार किया है।
अदालत का यह आदेश थरूर की ओर से मानहानि के मुकदमे में दायर तीन याचिकाओं पर सुनवाई के बाद आया है। थरूर ने अपनी याचिका में पत्रकार अर्नब गोस्वामी और उनके समाचार चैनल रिपब्लिक टीवी पर कथित तौर पर उनकी पत्नी सुनंदा पुश्कर की मौत के संबंध में उनके खिलाफ मानहानि की टिप्पणी करने के लिए दो करोड़ रुपये की क्षतिपूर्ति की मांग की थी।
अदालत ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति/आरोपी को चुप रहने का अधिकार है। संविधान के तहत किसी भी व्यक्ति को ऐसे बयान देने या सवालों का जवाब देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता, जिनसे वह अव्यवस्थित महसूस करे।
न्यायाधीश मनमोहन ने कहा कि किसी व्यक्ति के मुंह के पास माइक्रोफोन ले जाकर उसे बोलने के लिए बाध्य करने की संस्कृति की निंदा की जानी चाहिए।
गौरतलब है कि रिपब्लिक टीवी ने सुनंदा पुष्कर की मौत से संबंधित एक खबर प्रसारित की थी, जिसमें एक पत्रकार और थरूर के सहायक नारायण के बीच बातचीत की रिकॉर्डिग का टेप चलाया गया था। यह रिकॉर्डिग उस रात की थी, जिस रात सुनंदा की मौत हुई थी। सुनंदा पुष्कर 17 जनवरी, 2014 की रात दक्षिणी दिल्ली के एक पांच सितारा होटल में मृत पाई गई थीं।