शिमला। हाईकोर्ट ने बीसीसीआई प्रमुख अनुराग ठाकुर व एचपीसीए के पीआरओ संजय शर्मा के खिलाफ सरकारी कार्य में बाधा डालने पर दर्ज प्राथमिकी को रद्द कर दिया।
न्यायाधीश राजीव शर्मा ने दोनों याचिककर्ताओं की याचिका को स्वीकार करते हुए प्राथमिकी रद्द करने के साथ साथ चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट धर्मशाला द्वारा इस मामले में समय समय पर दिए आदेशों को भी खारिज कर दिया।
कोर्ट ने अपने आदेशों में कहा कि मु य न्यायिक दंडाधिकारी धर्मशाला द्वारा एसएचओ. की अर्जी पर लिया गया संज्ञान मूलत: गलत था और इस कारण इसके बाद के आदेश भी शून्य हो गए।
न्यायाधीश शर्मा ने फैसले में कहा कि आरोपियों को समन जारी करते समय सीजेएम ने अपने दिमाग का इस्तेमाल नहीं किया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सीजेएम के समक्ष ऐसे पर्याप्त तथ्य ही नहीं थे जिनके आधार पर वह मामले की जांच के आदेश देता।
मामले के अनुसार अनुराग ठाकुर सहित पूर्व विधायक प्रवीण शर्मा, संजय शर्मा, कुटलैहड़ से विधायक वीरेंद्र कंवर, युवा मोर्चा के अध्यक्ष नरेंद्र अत्रि और विश्व ज्योति चक्षु के साथ दो सौ से ढाई सौ लोगों ने सतर्कता विभाग के धर्मशाला स्थित एसपी कार्यालय में नारेबाजी की और झूठे केस वापिस लेने संबंधी नारेबाजी की।
सभी लोगों ने करीब आधा घंटा एसपी ऑफिस धर्मशाला में नारेबाजी की और सरकारी कार्य में बाधा उत्पन की। सभी आरोपियों को एचपीसीए के एक मामले में पूछताछ के लिए 24 अक्टूबर 2013 के बजाय 31 अक्टूबर 2013 को एसपी ऑफिस बुलाया गया था।
परन्तु ये लोग दो ढाई सौ लोगों के लाव लश्कर के साथ 24 अक्तूबर को ही एसपी ऑफिस आ धमके। सभी ने आपत्तिजनक नारे लगाए, पटाखे चलाए और सरकारी कार्य में बाधा डाली।
28 अक्तूबर को धर्मशाला पुलिस स्टेशन के एसएचओ ने एक अर्जी सीजेएम धर्मशाला के समक्ष पेश कर सभी आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 186 के तहत मामला दर्ज कर जांच करने की स्वीकृति मांगी।
2 नवंबर 2013 को सीजेएम धर्मशाला ने अर्जी स्वीकारते हुए अभियोजन शुरू करने की स्वीकृति दे दी। 10 मार्च 2014 को सीजेएम धर्मशाला ने दोनों प्रार्थियों को प्रथम दृष्टया आरोपी मानते हुए समन जारी कर दिए।
सीजेएम ने अभियोजन पक्ष को 26 फरवरी 2016 के दिन अपने गवाह पेश करने के आदेश दिए। प्रार्थियों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर अपने खिलाफ चल रहे मामले को खारिज करने की गुहार लगाई।
प्रार्थियों के अनुसार उनके खिलाफ ऐसे कोई सबूत नहीं है जो यह साबित कर सके कि उन्होंने नारेबाजी की और सरकारी कार्य में बाधा पहुंचाई। प्रार्थियों ने सरकार पर आपराधिक कानूनों की विभिन्न धाराओं के दुरूपयोग के आरोप भी लगाए थे।