उज्जैन/ भोपाल। प्रदेश के मुखिया शिवराजसिंह चौहान को पेटलावद हादसे ने इतना मार्मिक दर्द दिया कि वे अपने 10 साल के शासन काल में पहली बार जिलों के मुखियाओं (कलेक्टर-एसपी) पर दहाड़े। सीएम की गर्जना ने आम भाजपा कार्यकर्ता को तो ठीक, दायित्ववानों को भी खुश कर दिया।
वे चर्चा करते दिखे कि चलो हमारे मुख्यमंत्री कलेक्टरों-एसपीयों पर रूतबा तो रखते हैं? इस खुशी के बीच वे प्रतिप्रश्र भी करते दिखे कि क्या सच में मुख्यमंत्री इतने सख्त मिजाज हैं? साथ ही स्वयं जवाब देते दिखे कि पूरे प्रदेश में सरकार को भाजपा नहीं अफसर चला रहे हैं। ऐसे में देखते हैं सरकार के कामकाज में संगठन की कितनी चलती है?
प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान पर सरकारी मशीनरी की सलाह पर प्रदेश को चलाने के आरोप प्रारंभ से ही लगते रहे हैं। आम जनता से लेकर सरकारी अमले तक ने कभी मुख्यमंत्री को अफसरों के सामने इतना सख्त होते नहीं देखा।
हमेशा यही आरोप संगठन के बीच से भी गए कि सालों तक जमीनी मेहनत करके पार्टी को जिताएं हम और सरकार जब चले तो असरदार हो जाए अफसरशाही ? भाजपा नेताओं की पीड़ा रही है कि वे कोई भी संवेदनशील बात लेकर अफसरों के पास जाएं या सुझाव लेकर। उनकी बात को नकार दिया जाता है।
पहली नजर में ही उनके सुझावों को इतने हल्के से लिया जाता हैं मानो सारी दुनिया का अनुभव केवल अफसरों के पास ही है। उन्होंने पार्टी के लिए जो जमीनी मेहनत की, वह अनुभव का आधार नहीं हैं। यह पीड़ा वे बयान करते दिखते हैं कि शहर में जन्म उन्होने लिया,सारे सामाजिक कार्यो का जमीनी अनुभव उन्हे है और जब कोई सुझाव देते हैं तो कहा जाता है कि ऐसा नहीं हो सकता,आपका नजरिया गलत है।
वे प्रतिप्रश्र करते हैं कि चार दिन के आए अफसर उन्हे समझाते हैं कि नजरिया गलत है? यह कौन तय करेगा कि नजरिया किसका गलत है? सरकार तो अधिकारियों पर निर्भर है। ऐसे में सैंया भये कोतवाल वाली स्थिति निर्मित होने पर संगठन का काम करनेवालों को ही उल्टे पांव लौटना पड़ता है। जब उपर तक शिकायत करते हैं तो कोई प्रतिक्रिया नहीं आती।
ऐसे में मुख्यमंत्री की यह सख्त मिजाजी कि यदि पेटलावद या भोपाल जैसा हादसा होता है तो सीधे कलेक्टर,एसपी जिम्मेदार होंगे ने भाजपा नेताओं को थोड़ा सा बल दिया है। वे आशंका जताते हैं कि सिंहस्थ सिर पर है और जिसप्रकार से काम हो रहे हैं, समय पर पूरे होंगे या नहीं? सिंहस्थ में कोई हादसा न हो जाए, इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता।
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए वे सिंहस्थ क्षेत्र की योजना को लेकर टिप्पणी करते हैं कि इन योजनाओं को मूर्तरूप देने के लिए कभी शहर के पुराने, जमीनी कार्यकर्ताओं, दायित्ववानों, सामाजिक क्षेत्र के हस्ताक्षरों के सुझाव नहीं लिए गए हैं। अधिकारी केवल अपने अनुभव और इंजीनियरों के भरोसे पूरे सिंहस्थ की इंजीनियरिंग कर रहे हैं। जो अफसर प्लानिंग बना रहे हैं, उनसे पूछो कि कितने सिंहस्थ देखे उन्होने इस शहर में? कितने सिंहस्थ में वे पैदल चले और हकीकत जानी?
ऐसे में ज्योतिषियों द्वारा यह कहा जाता है कि सिंहस्थ में भीषण हादसा होने की आशंका है तो फिर किसे जिम्मेदार माना जाएगा उस समय? योजनाकारों को या फिर ग्रह-नक्षत्रों को? कोई घटना यदि घटित होती है तो ग्रह नक्षत्र भले ही उसके प्रेरक हो,भौतिक रूप से हुई गलतियां भी तो रहती है जिम्मेदार?