नई दिल्ली। दिल्ली के निर्भया कांड में गृह मंत्रालय द्वारा नाबालिग दोषी से अच्छे आचरण का कानूनी बांड भरवाए जाने की खबरों की निर्भया के माता-पिता ने निंदा की है।
निर्भया के माता-पिता का कहना है कि जब सरकार या कानून कुछ नहीं कर सकता तो इस तरह के बांड को कोई मतलब नहीं है, सरकार आरोपी को बचाने का प्रयास कर रही है।
उन्होने मांग की है कि सरकार अगर दोषी को बांड भरवाकर रिहा करना चाहती है तो फिर उसका चेहरा सबसे सामने दिखाए ताकि लोगों को उसके बारे में पता चले औऱ वह खुद को सुरक्षित रख सकें।
निर्भया की मां ने गृह मंत्रालय की रिपोर्ट पर सरकार से सवाल किया है कि इस बात की गारन्टी है कि बांड भरने के बाद वह दूबारा अपराध नहीं करेगा। अगर सरकार को दोषी को रिहा ही करना है तो वह सीधे उसे रिहा करे दे लेकिन यह सब नाटक ना करे।
सरकार को किशोर दोषी को रिहा करने से पहले आम जनता के बारे में भी सोचना चाहिए। सरकार इस प्रकार का फैसला समाज को गलत संदेश देता है।
उन्होंने दावा किया कि नाबालिग दोषी तीन सालों की सजा के बाद भी नहीं सुधरा है। निर्भया की मां ने सावल किया कि क्या अपराधी ने मांफी मांगी ?,क्या उसमें पश्चाताप के कोई सकेंत दिखे ? हालांकि जेल के डर से वह दुबारा यह अपराध नहीं करेगा, लेकिन वह दूसरों से अपराध करवाएगा।
उन्होंने कहा कि सरकार को अपने दायित्व पर नाबालिग दोषी को रिहा करना चाहिए। अगर सरकार को महिलाओं के लिए सुरक्षित समाज का निर्माण करना है तो कानून में बदलाव किए जाने चाहिए।
वरना तब तक हमारी बेटियां अपनी जिन्दगी का बलिदान करती जाएंगी। हम सरकार के खिलाफ नही है, लेकिन जब तक हमारी बेटी को इंसाफ नहीं मिल जाता तब तक हम लड़ते रहेंगे।
इसी प्रकार निर्भया का पिता का कहना है कि न्याय देने के बजाय सरकार नाबालिग दोषी को बचाने के लिए उत्सुक है, इस दिशा में उसे जेड प्लस सुरक्षा दे देनी चाहिए। लोगों को 16 दिसम्बर के बाद से बेवकूफ बनाया जा रहा है।
सरकार ने अभी तक महिलाओं की सुरक्षा के लिए कोई कानून नहीं बनाया। अपराध करते समय जब दोषी खुद अपनी उम्र नहीं देख रहा तो न्यायालय क्यों उसकी उम्र देख रहा है। अपराध में अपराधी की उम्र नहीं देखनी चाहिए।
जानकारी हो कि निर्भया बलात्कार कांड के दोषी नाबालिग की रिहाई से पहले केंद्रीय गृह मंत्रालय उससे कानूनी बॉंड भरवा सकता है। ऐसा उसके चाल-चलन, आचरण और अच्छे व्यवहार को सुनिश्चित करने के लिए किया जा सकता है।
गृह मंत्रालय का मानना है कि इस मामले में रिहाई से पहले यह एक उचित विकल्प हो सकता है क्योंकि सजा अवधि पूरी हो जाने के बाद कानूनी रूप से उसे जेल में रखना सम्भव नहीं हो सकेगा।