जानिए की कैसे और किस शुभ घड़ी में करें श्रावण मास में भगवान शिव का पूजन, भगवान शिव की भक्ति का प्रमुख माह श्रावण 20 जुलाई 2016 से प्रारंभ हो गया है। पूरे माह भर भोलेनाथ की पूजा-अर्चना का दौर जारी रहेगा।
सभी शिव मंदिरों में श्रावण मास के अंतर्गत विशेष तैयारियां की गई हैं। चारों ओर श्रद्धालुओं द्वारा ‘बम-बम भोले और ॐ नम: शिवाय’ की गूंज सुनाई देगी। शिवालयों में श्रद्धालुओं की अच्छी-खासी भीड़ नजर आएंगी। धार्मिक पुराणों के अनुसार श्रावण मास में शिवजी को एक बिल्वपत्र चढ़ाने से तीन जन्मों के पापों का नाश होता है।
एक अखंड बिल्वपत्र अर्पण करने से कोटि बिल्वपत्र चढ़ाने का फल प्राप्त होता है। साथ ही शिव को कच्चा दूध, सफेद फल, भस्म, भांग, धतूरा, श्वेत वस्त्र अधिक प्रिय होने के कारण यह सभी चीजों खास तौर पर अर्पित की जाती है।
इसके साथ ही श्रावण मास शिवपुराण, शिवलीलामृत, शिव कवच, शिव चालीसा, शिव पंचाक्षर मंत्र, शिव पंचाक्षर स्त्रोत, महामृत्युंजय मंत्र का पाठ एवं मंत्र जाप करने से मनुष्य के सारे पापों का नाश होता है।
वैसे इस बार श्रावण 18 अगस्त तक चलेगा। श्रावण का यह महीना भक्तों को अमोघ फल देने वाला है। माना जाता है कि भगवान शिव के त्रिशूल की एक नोक पर काशी विश्वनाथ की पूरी नगरी का भार है। उसमें श्रावण मास अपना विशेष महत्व रखता है। इस दफा 2 अगस्त 2016 (मंगलवार) को हरियाली अमावस्या, मंगला गोरी व्रत, पितृ कार्य अमवस्या भी आएगी। 05 अगस्त 2016 (शुक्रवार) को हरियाली तीज भी मनाई जाएगी।
ध्यान रखें
इस वर्ष श्रावण संक्रांति में सूर्य कर्क राशि में प्रवेश करेंगे। श्रावण संक्रान्ति का समय 16 जुलाई 2016, शनिवार के दिन, अनुराधा नक्षत्र कालीन समय पर आरंभ होगी। श्रावण संक्रांति का पुण्य काल प्रात: सूर्योदय से शाम 16:39 तक रहेगा और श्रावण मास में 21 जुलाई 2016 के दिन 27:42 से प्रारम्भ होंगे तथा ये 26 जुलाई 11:06 तक रहेंगे। इन पांच दिनों में शुभ कार्य करने से बचना चाहिए।
इस दौरान खास तौर पर महिलाएं श्रावण मास में विशेष पूजा-अर्चना और व्रत-उपवास रखकर पति की लंबी आयु की प्रार्थना भोलेनाथ से करती हैं। खास कर सभी व्रतों में सोलह सोमवार का व्रत श्रेष्ठ माना जाता है।
श्रावण शिव का अत्यंत प्रिय मास है। इस मास में शिव की भक्ति करने से उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है। उनके पूजन के लिए अलग-अलग विधान भी है। भक्त जैसे चाहे उनका अपनी कामनाओं के लिए उनका पूजन कर सकता है। इस मास में प्रतिदिन श्री शिवमहापुराण व शिव स्तोस्त्रों का विधिपूर्वक पाठ करके दुध, गंगा-जल, बिल्बपत्र, फलादि सहित शिवलिंग का पूजन करना चाहिए।
इसके साथ ही इस मास में “ऊँ नम: शिवाय:” मंत्र का जाप करते हुए शिव पूजन करना लाभकारी रहता है। इस मास के प्रत्येक मंगलवार को श्री मंगलागौरी का व्रत, पूजानादि विधिपूर्वक करने से स्त्रियों को विवाह, संतान व सौभाग्य में वृ्द्धि होती है।
शवे भक्ति:शिवे भक्ति:शिवे भक्तिर्भवे भवे ।
अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरंण मम्।।
उच्चारण में अत्यंत सरल शिव शब्द अति मधुर है। शिव शब्द की उत्पत्ति वश कान्तौ धातु से हुई हैं। जिसका तात्पर्य है जिसको सब चाहें वह शिव हैं ओर सब चाहते हैं आंनद को अर्थात शिव का अर्थ हुआ आंनद।
इस व्रत को वैशाख, श्रावण मास, कार्तिक मास और माघ मास में किसी भी सोमवार से प्रारंभ किया जा सकता है। इस व्रत की समाप्ति पर सत्रहवें सोमवार को सोलह दंपती को भोजन व किसी वस्तु का दान उपहार देकर उद्यापन किया जाता है।
सम्पूर्ण विश्व में शिवलिंग को शिव का साक्षात स्वरूप माना जाता है तभी तो शिवलिंग के दर्श न को स्वयं महादेव का दर्शन माना जाता है और इसी मान्यता के चलते भक्त शिवलिंग को मंदिर और घर में स्थापित कर उनकी पूजा अर्चना करते हैं। हिन्दू धर्म परंपराओं में प्रदोष काल यानी दिन-रात के मिलन की घड़ी में भगवान शिव की पूजा व उपासना बहुत शुभ फलदायी मानी गई है।
शिव पूजन से पहले काले तिल जल में मिलाकर स्नान करें। शिव पूजा में कनेर, मौलसिरी और बेलपत्र जरूर चढ़ावें। स्नान के बाद भगवान शंकर के साथ-साथ माता पार्वती और नंदी को गंगाजल या पवित्र जल चढ़ाएं। इससे संपन्नता आती है। सावन के महीने में बैंगन नहीं खाना चाहिए। बैंगन को अशुद्ध माना गया है इसलिए द्वादशी, चतुर्दशी के दिन और कार्तिक मास में भी इसे खाने की मनाही है।
– शिव जी की अराधना सुबह में पूर्व दिशा की ओर मुंह करके करनी चाहिए।
– शाम में शिव साधना पश्चिम दिशा की ओर मुंह करके करनी चाहिए।
– अगर आप रात्रि में शिव उपासना करते हैं तो आपका मुंह उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए।
श्रावण मास में भगवान शिव का श्रेष्ठ द्रव्यों से अभिषेक करने से अलग-अलग फलों की प्राप्ति होती है। जैसे जल अर्पित करने से वर्षा की प्राप्ति, कुश और जल से शांति, गन्ने के रस से लक्ष्मी, मधु व घी से धन की प्राप्ति, दूध से संतान सुख, जल की धारा और बेलपत्र से मन की शांति, एक हजार मंत्रों सहित घी की धारा से वंश वृद्धि एवं मृत्युंजय मंत्रों के जाप से रोगों से मुक्ति और स्वस्थ एवं सुखी जीवन की प्राप्ति होती है।
श्रावण मास में भगवान शिव का पंचाक्षरी मंत्र ऊं नम: शिवाय’ का नियमित जाप, तन-मन को शुद्ध करता है। विधि व सच्चें मन से की गई उपासना कभी व्यर्थ नहीं जाती और शिव जी अपने भक्तों की मनोकामना पूरी कर देते हैं।
सावन/श्रावण माह का महत्व
चैत्र माह से प्रारंभ होने वाले वर्ष का पांचवा महीना जो ईस्वी कलेंडर के जुलाई या अगस्त माह में पड़ता है, श्रावण माह कहलाता है। इसे वर्षा ऋतु का महीना भी कहा जाता है क्यों कि इस समय भारत में काफ़ी वर्षा होती है। सावन का महीना रिमझिम फुहारों और हरियाली से मन को आनंदित कर देता है। इसी महीने की पूर्णिमा को मनाया जाता है भारत में रक्षाबंधन के त्योहार के रूप में।
हमारे शास्त्रों में सावन के महात्म्य पर विस्तार पूर्वक उल्लेख मिलता है। श्रावण मास अपना एक विशिष्ट महत्व रखता है। श्रवण नक्षत्र तथा सोमवार से भगवान शिव शंकर का गहरा संबंध है। इस मास का प्रत्येक दिन पूर्णता लिए हुए होता है। धर्म और आस्था का अटूट गठजोड़ हमें इस माह में दिखाई देता है इस माह की प्रत्येक तिथि किसी न किसी धार्मिक महत्व के साथ जुडी़ हुई होती है. इसका हर दिन व्रत और पूजा पाठ के लिए महत्वपूर्ण रहता है। शास्त्रों के अनुसार सावन के महीने में दूध का सेवन अच्छा नहीं होता है। यही कारण है कि सावन में भगवान शिव का दूध से अभिषेक करने की बात कही गई है। इससे वात संबंधी दोष से बचाव होता है।
सभी हिंदी माह/मासों को किसी न किसी देवता के साथ संबंधित देखा जा सकता है उसी प्रकार श्रावण मास को भगवान शिव जी के साथ देखा जाता है इस समय शिव आराधना का विशेष महत्व होता है। यह माह आशाओं की पूर्ति का समय होता है जिस प्रकार प्रकृति ग्रीष्म के थपेडों को सहती उई सावन की बौछारों से अपनी प्यास बुझाती हुई असीम तृप्ति एवं आनंद को पाती है उसी प्रकार प्राणियों की इच्छाओं को सूनेपन को दूर करने हेतु यह माह भक्ति और पूर्ति का अनुठा संगम दिखाता है ओर सभी की अतृप्त इच्छाओं को पूर्ण करने की कोशिश करता है।
यूं तो परिवार में कलह को कभी भी अच्छा नहीं माना जाता है लेकिन सावन के महीने में जीवनसाथी के साथ वाद-विवाद और अपश्ब्दों का प्रयोग हानिकारक होता है। इन दिनों शिव पार्वती की पूजा से दांपत्य जीवन में प्रेम और तालमेल बढ़ता है इसलिए किसी बात से मन मुटाव की आशंका होने पर शिव पार्वती की पूजा करनी चाहिए और प्रेम एवं सामंजस्य के लिए प्रार्थना करनी चाहिए।
श्रावण पूर्णिमा को दक्षिण भारत में नारयली पूर्णिमा व अवनी अवित्तम, मध्य भारत में कजरी पूनम, उत्तर भारत में रक्षा बंधन और गुजरात में पवित्रोपना के रूप में मनाया जाता है। हमारे त्योहारों की यही विविधता ही तो भारत की विशिष्टता की पहचान है।
श्रावण – यह वर्षा ऋतू में प्रारंभ होता हैं। शिव जिनको श्रावण का देवता कहा जाता हैं उन्हें इस माह में भिन्न- भिन्न तरीकों से पूजा जाता हैं। पूरे माह धार्मिक उत्सव होते हैं शिव उपासना, व्रत, पवित्र नदियों में स्नान एवम शिव अभिषेक का महत्व हैं। विशेष तौर पर सावन सोमवार को पूजा जाता हैं। कई महिलाएं पूरा सावन महीना सूर्योदय के पूर्व स्नान कर उपवास रखती हैं। कुवारी कन्या अच्छे वर के लिए इस माह में उपवास एवम शिव की पूजा करती हैं। विवाहित स्त्री पति के लिए मंगल कामना करती हैं। भारत देश में पूरे उत्साह के साथ सावन महोत्सव मनाया जाता हैं।
पंडित दयानंद शास्त्री
लेखक पेशे से ज्योतिषाचार्य हैं