पाली। भगवान के प्रसंगों को सुनकर मन पवित्र हो जाता है। श्रीमदभागवत कथा का रसपान कराते हुए गोभक्त श्रीराधाकृष्ण कहते हैं कि श्रीमदभागवत कथा एक बड़ी औषधि है, कथा में बदलाव नहीं होना चाहिए। सभी भक्तों को आवश्यकता है कि अपने स्वयं में बदलाव करें। अपने में सुधार का प्रयत्न करें।
भगवान चले जाएंगे हे उद्धव तेरा क्या होगा। अब उद्धव सोचते हैं। उधर सभी देवताओं ने प्रार्थना करके भगवान श्यामसुन्दर को बैकुंठधाम बुला लिया है।
श्रीकृष्ण उद्धव को समझाते हैं कि मेरे अवतार का प्रयोजन पूरा हुआ है, मुझे तो अवतार बदलना ही पड़ेगा। हे उद्धव में तुम्हें दिव्य ज्ञान उपदेश देता हूं। गुरु दत्तात्रेय के चौबीस गुरु हैं सबका दिया ज्ञान में तुम्हें बताता हूं। इन सबसे जो सीख मिली है यही आनंद का बड़ा का कारण है। उद्धव को वह दिव्य ज्ञान भगवान श्यामसुन्दर बताते हैं। जार सुनिये।
पृथ्वी को गुरु बनाकर शिक्षा लो सहनशीलता की। पृथ्वी जितना सहनशील कोई नहीं हो सकता। आज कल तो पृथ्वी पर भी इतना अत्याचार हो रहा है कि वह खुद भी सहन नहीं कर सकती। पृथ्वी गोवध को सहन नहीं कर सकती है, पृथ्वी मां है आज तो मां का मान सम्मान करना ही छोड़ दिया है।
प्रकृति गाय की बहन है वह सहन नहीं करती। अभक्ष वस्तुओं का त्याग करो। आज के बाजार में कुछ भी शुद्ध नहीं आ रहा है। अपने को ही ध्यान रखना है। यहां तक कि हवा भी दूषित है। वायु से शिक्षा लो गलत को छोड़ने की। मुसाफिर की तरह चलते चलो।
आकाश से निर्मलता की शिक्षा लो वह सदैव एक जैसा रहता है। मन को सदैव निर्मल रखो। सदभवना व्यक्त करो। सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मां कश्चिद दुःख भाग भवेत्। जल से निर्मलता की शिक्षा लो। साधक का नम सदैव निर्मल होता है। अग्नि से शिक्षा लो वह सदैव अपने रंग में ही रहती है। चन्द्रमा से आत्मा की, कबूतर से कुटुंबाशक्ति की, समुद्र से बाहर से हलचल और अंदर से गंभीर।
अजगर से सीख लो वह आलस्य में पड़ा ही रहता है फिर भी समय पर आहार मिल ही जाता है। पतंगे से वह दीपक को अपना समझता है फिर उसी लौ में जल कर स्वयं को मिटा लेता है ऐसा स्वयं की चाह में होता है। भ्रमर से सार ग्रहण करने की। हाथी से लालच में न पड़ने की। वह सर्वशक्ति का त्याग कर देता है। चरित्रवान होने की। वर्तमान में बनना है तो छत्रपति शिवाजी की तरह बनो। जैसी करनी भरनी। मान दिया पर उपकार नहीं दिया।
शहद से शिक्षा लो जैसे मक्खियां शहद ग्रहण करती हैं और व्यक्ति शहद की चाह में धुआं करता है मकिखयां उड़ जाती हैं, शहद चला जाता है। हिरण से शिक्षा लो कि सुन्दर संगीत में न पड़ो, हिरण सुन्दर संगीत की चाह में शिकार हो जाता है। मछली से सीखो खाने के लालच छोड़ो वह खाने के चाह में ही शिकार हो जाती है। जीभ पर, वाणी पर नियंत्रण करो।
पिंगला वैश्या से भक्ति सीखो। वह पैसे की चाह में घर के बाहर ढोल रख देती है जो भी आयेगा ढोल बजाएगा और पैसे देगा एक बार भगवान स्वयं लगातार ढोल का बजाते रहे और चले गए उधर पिंगला खुश हो रही थी कि आज तो बहुत सारा पैसा मिलेगा पर मिला कुछ नहीं, उसने सेाचा इतना तो भगवान के लिए सोचती तो मेरा उद्धार हो जाता। उसे बैराग्य हो जाता है। आतुरता से कभी फैसला मत लो।
कुरर पक्षी जब तक उसके पास मांस का टुकड़ा होता है सब उसका पीछा करते हैं। संग्रह के पीछे सभी पड़ जाते हैं। आज कल माया पैसा की है। उसके पीछे सभी दौड़ते हैं। बालक से सीखना चहिये सदैव मन को निर्मल रखना, बच्चे के मन में कपट नहीं होता। कुंवारी कन्या से भक्ति भाव सीखो, वाण बनाने वाले से एकाग्रता, मकड़ी से वह स्वयं जाला बनाती है और स्वयं मुंह में समेट लेती है।
सर्प कभी घर नहीं बनाता, जहां भी मिल जाता जैसा भी उसी में जीवन गुजार देता है। भृंगी कीड़े से वह दीवार में पहले से घुसे अपने मित्र के पीछें पड़ जाता है उसी छेद के चारों तरफ चक्कर काटता रहता है और अंदर जाकर मानता है और उसी में घुस जाता है। दत्त भगवान कहते हैं कि सामान्य कीड़ा भी भृंगी बन जाता है तो भक्ति के बल पर हम क्यों नहीं।
हे उद्धव सत्संग से अच्छा कुछ भी नहीं है। भगवान में मन लगाते रहो। इस दिव्यज्ञान को संभालकर रखना। बद्रिकाश्रम जाओ और भक्ति करो। भगवान श्रीकृष्ण उद्धव को अपनी चरणपादुका देते हैं और उद्धव उन्हें अपने साथ ले जाते हैं। बलदाउ भगवान धाम जाते हैं भगवान की लीला सोचते हैं कि क्या करें।
ब्रहमाजी, इन्द्रजी, वरुण, यम आदि आदि देवता अपने अपने धाम सजाते हैं कि और सोचते हैं कि भगवान श्यामसुन्दर हमारे यहां आएं हर कोई यही सोच रहा है। बादलों से बिजली चमकती है और भगवान कहां चले जाते हैं किसी को पता ही नहीं चलता। भगवान प्रेम भक्तों के हृदय में जाकर बैठ जाते हैं। और गोमाता भगवान का असली घर है।
कथा के दौरान गोभक्त श्रीराधकृष्ण ने सभी से व्यसन त्यागने की अपील की। भगवान का नाम ही सार है। अठारह पुराणों में श्रीमदभागवत कथा सर्वश्रेष्ठ है। जिसने इसका रसपान कर लिया उसके लिए बाकी कुछ नहीं रह जाता, आरती के बाद सभी ने पूर्णाहुति दी। इस अवसर पर रामेश्वर प्रसाद गोयल, कैलाशचन्द्र गोष्ल, कमल किशोर गोयल, गोपाल गोयल, संत सूरजनदास महाराज, समस्त ताड़केश्वर रामेश्वर चेरिटेबल ट्स्ट के पदाधिकारी, परमेश्वर जोशी, अशोक जोशी, वीरेन्द्रपाल शर्मा, हरवंशदवे, मास्टर शंकरलाल जोशी, दामोदर शर्मा, विजयराज सोनी सहित हजारों श्रद्धालुओं ने भक्ति की गंगा में डुबकी लगाई।